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चौथा दृश्य (राजसभा)

25 जनवरी 2022

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(राजा, मन्त्री और नौकर लोग यथास्थान स्थित हैं)
1 सेवक : (चिल्लाकर) पान खाइए महाराज।
राजा : (पीनक से चैंक घबड़ाकर उठता है) क्या? सुपनखा आई ए महाराज। (भागता है)।
मन्त्री : (राजा का हाथ पकड़कर) नहीं नहीं, यह कहता है कि पान खाइए महाराज।
राजा : दुष्ट लुच्चा पाजी! नाहक हमको डरा दिया। मन्त्री इसको सौ कोडे लगैं।
मन्त्री : महाराज! इसका क्या दोष है? न तमोली पान लगाकर देता, न यह पुकारता।
राजा : अच्छा, तमोली को दो सौ कोड़े लगैं।
मन्त्री : पर महाराज, आप पान खाइए सुन कर थोडे ही डरे हैं, आप तो सुपनखा के नाम से डरे हैं, सुपनखा की सजा हो।
राजा : (घबड़ाकर) फिर वही नाम? मन्त्री तुम बड़े खराब आदमी हो। हम रानी से कह देंगे कि मन्त्री बेर बेर तुमको सौत बुलाने चाहता है। नौकर! नौकर! शराब।
2 नौकर : (एक सुराही में से एक गिलास में शराब उझल कर देता है।) लीजिए महाराज। पीजिए महाराज।
राजा : (मुँह बनाकर पीता है) और दे।
(नेपथ्य में-दुहाई है दुहाई-का शब्द होता है।)
कौन चिल्लाता है-पकड़ लाओ।
(दो नौकर एक फरियादी को पकड़ लाते हैं)
फरियादी : दोहाई है महाराज दोहाई है। हमारा न्याव होय।
राजा : चुप रहो। तुम्हारा न्याव यहाँ ऐसा होगा कि जैसा जम के यहाँ भी न होगा। बोलो क्या हुआ?
फरियादी : महाराजा कल्लू बनिया की दीवार गिर पड़ी सो मेरी बकरी उसके नीचे दब गई। दोहाई है महाराज न्याय हो।
राजा : (नौकर से) कल्लू बनिया की दीवार को अभी पकड़ लाओ।
मन्त्री : महाराज, दीवार नहीं लाई जा सकती।
राजा : अच्छा, उसका भाई, लड़का, दोस्त, आशना जो हो उसको पकड़ लाओ।
मन्त्री : महाराज! दीवार ईंट चूने की होती है, उसको भाई बेटा नहीं होता।
राजा : अच्छा कल्लू बनिये को पकड़ लाओ।
(नौकर लोग दौड़कर बाहर से बनिए को पकड़ लाते हैं) क्यों बे बनिए! इसकी लरकी, नहीं बरकी क्यों दबकर मर गई?
मन्त्री : बरकी नहीं महाराज, बकरी।
राजा : हाँ हाँ, बकरी क्यों मर गई-बोल, नहीं अभी फाँसी देता हूँ।
कल्लू : महाराज! मेरा कुछ दोष नहीं। कारीगर ने ऐसी दीवार बनाया कि गिर पड़ी।
राजा : अच्छा, इस मल्लू को छोड़ दो, कारीगर को पकड़ लाओ। (कल्लू जाता है, लोग कारीगर को पकड़ लाते हैं) क्यों बे कारीगर! इसकी बकरी किस तरह मर गई?
कारीगर : महाराज, मेरा कुछ कसूर नहीं, चूनेवाले ने ऐसा बोदा बनाया कि दीवार गिर पड़ी।
राजा : अच्छा, इस कारीगर को बुलाओ, नहीं नहीं निकालो, उस चूनेवाले को बुलाओ।
(कारीगर निकाला जाता है, चूनेवाला पकड़कर लाया जाता है) क्यों बे खैर सुपाड़ी चूनेवाले! इसकी कुबरी कैसे मर गई?
चूनेवाला : महाराज! मेरा कुछ दोष नहीं, भिश्ती ने चूने में पानी ढेर दे दिया, इसी से चूना कमजोर हो गया होगा।
राजा : अच्छा चुन्नीलाल को निकालो, भिश्ती को पकड़ो। (चूनेवाला निकाला जाता है भिश्ती, भिश्ती लाया जाता है) क्यों वे भिश्ती! गंगा जमुना की किश्ती! इतना पानी क्यों दिया कि इसकी बकरी गिर पड़ी और दीवार दब गई।
भिश्ती : महाराज! गुलाम का कोई कसूर नहीं, कस्साई ने मसक इतनी बड़ी बना दिया कि उसमें पानी जादे आ गया।
राजा : अच्छा, कस्साई को लाओ, भिश्ती निकालो।
(लोग भिश्ती को निकालते हैं और कस्साई को लाते हैं)
क्यौं बे कस्साई मशक ऐसी क्यौं बनाई कि दीवार लगाई बकरी दबाई?
कस्साई : महाराज! गड़ेरिया ने टके पर ऐसी बड़ी भेंड़ मेरे हाथ बेंची की उसकी मशक बड़ी बन गई।
राजा : अच्छा कस्साई को निकालो, गड़ेरिये को लाओ।
(कस्साई निकाला जाता है गंडे़रिया आता है)
क्यों बे ऊखपौड़े के गंडेरिया। ऐसी बड़ी भेड़ क्यौं बेचा कि बकरी मर गई?
गड़ेरिया : महाराज! उधर से कोतवाल साहब की सवारी आई, सो उस के देखने में मैंने छोटी बड़ी भेड़ का ख्याल नहीं किया, मेरा कुछ कसूर नहीं।
राजा : अच्छा, इस को निकालो, कोतवाल को अभी सरबमुहर पकड़ लाओ।
(गंड़ेरिया निकाला जाता है, कोतवाल पकड़ा जाता है) क्यौं बे कोतवाल! तैंने सवारी ऐसी धूम से क्यों निकाली कि गड़ेरिये ने घबड़ा कर बड़ी भेड़ बेचा, जिस से बकरी गिर कर कल्लू बनियाँ दब गया?
कोतवाल : महाराज महाराज! मैंने तो कोई कसूर नहीं किया, मैं तो शहर के इन्तजाम के वास्ते जाता था।
मंत्री : (आप ही आप) यह तो बड़ा गजब हुआ, ऐसा न हो कि बेवकूफ इस बात पर सारे नगर को फूँक दे या फाँसी दे। (कोतवाल से) यह नहीं, तुम ने ऐसे धूम से सवारी क्यौं निकाली?
राजा : हाँ हाँ, यह नहीं, तुम ने ऐसे धूम से सवारी कयों निकाली कि उस की बकरी दबी।
कोतवाल : महाराज महाराज
राजा : कुछ नहीं, महाराज महाराज ले जाओ, कोतवाल को अभी फाँसी दो। दरबार बरखास्त।
(लोग एक तरफ से कोतवाल को पकड़ कर ले जाते हैं, दूसरी ओर से मंत्री को पकड़ कर राजा जाते हैं)
(पटाक्षेप) 

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रचनाएँ
अंधेर नगरी चौपट राजा
5.0
अँधेर नगरी प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार भारतेंदु हरिश्चंद्र का सर्वाधिक लोकप्रिय नाटक है। ६अंकों के इस नाटक में विवेकहीन और निरंकुश शासन व्यवस्था पर करारा व्यंग्य करते हुए उसे अपने ही कर्मों द्वारा नष्ट होते दिखाया गया है। 'अंधेर नगरी चौपट राजा, टके सेर भाजी टके सेर खाजा' इस प्रहसन में भारतेंदु जी ने उस समय के राज व्यवस्था, उच्चवर्गों की खुशामदी, जातिप्रथा की आलोचना की है।
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समर्पण

25 जनवरी 2022
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मान्य योग्य नहिं होत कोऊ कोरो पद पाए। मान्य योग्य नर ते, जे केवल परहित जाए ॥ जे स्वारथ रत धूर्त हंस से काक-चरित-रत। ते औरन हति बंचि प्रभुहि नित होहिं समुन्नत ॥ जदपि लोक की रीति यही पै अन्त

2

प्रथम दृश्य (वाह्य प्रान्त)

25 जनवरी 2022
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(महन्त जी दो चेलों के साथ गाते हुए आते हैं) सब : राम भजो राम भजो राम भजो भाई। राम के भजे से गनिका तर गई, राम के भजे से गीध गति पाई। राम के नाम से काम बनै सब, राम के भजन बिनु सबहि नसाई ॥ राम के न

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दूसरा दृश्य (बाजार)

25 जनवरी 2022
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कबाबवाला : कबाब गरमागरम मसालेदार-चैरासी मसाला बहत्तर आँच का-कबाब गरमागरम मसालेदार-खाय सो होंठ चाटै, न खाय सो जीभ काटै। कबाब लो, कबाब का ढेर-बेचा टके सेर। घासीराम : चना जोर गरम। चना बनावैं घासी राम।

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तीसरा दृश्य (स्थान जंगल)

25 जनवरी 2022
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(महन्त जी और नारायणदास एक ओर से 'राम भजो इत्यादि गीत गाते हुए आते हैं और एक ओर से गोबवर्धनदास अन्धेरनगरी गाते हुए आते हैं') महन्त : बच्चा गोवर्धन दास! कह क्या भिक्षा लाया? गठरी तो भारी मालूम पड़ती है

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चौथा दृश्य (राजसभा)

25 जनवरी 2022
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(राजा, मन्त्री और नौकर लोग यथास्थान स्थित हैं) 1 सेवक : (चिल्लाकर) पान खाइए महाराज। राजा : (पीनक से चैंक घबड़ाकर उठता है) क्या? सुपनखा आई ए महाराज। (भागता है)। मन्त्री : (राजा का हाथ पकड़कर) नहीं न

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पांचवां दृश्य (अरण्य)

25 जनवरी 2022
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(गोवर्धन दास गाते हुए आते हैं) (राग काफी) अंधेर नगरी अनबूझ राजा। टका सेर भाजी टका सेर खाजा॥ नीच ऊँच सब एकहि ऐसे। जैसे भड़ुए पंडित तैसे॥ कुल मरजाद न मान बड़ाई। सबैं एक से लोग लुगाई॥ जात पाँत पूछै

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छठा दृश्य (स्थान श्मशान)

25 जनवरी 2022
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(गोबर्धन दास को पकड़े हुए चार सिपाहियों का प्रवेश) गोवरधन दास : हाय बाप रे! मुझे बेकसूर ही फाँसी देते हैं। अरे भाइयो, कुछ तो धरम विचारो! अरे मुझ गरीब को फाँसी देकर तुम लोगों को क्या लाभ होगा? अरे मुझ

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