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अंधेर नगरी चौपट राजा

भारतेन्दु हरिश्चंद्र

7 अध्याय
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110 पाठक
7 मई 2022 को पूर्ण की गई
निःशुल्क

अँधेर नगरी प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार भारतेंदु हरिश्चंद्र का सर्वाधिक लोकप्रिय नाटक है। ६अंकों के इस नाटक में विवेकहीन और निरंकुश शासन व्यवस्था पर करारा व्यंग्य करते हुए उसे अपने ही कर्मों द्वारा नष्ट होते दिखाया गया है। 'अंधेर नगरी चौपट राजा, टके सेर भाजी टके सेर खाजा' इस प्रहसन में भारतेंदु जी ने उस समय के राज व्यवस्था, उच्चवर्गों की खुशामदी, जातिप्रथा की आलोचना की है।  

andher nagari chaupat raja

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पुस्तक के भाग

1

समर्पण

25 जनवरी 2022
42
3
0

मान्य योग्य नहिं होत कोऊ कोरो पद पाए। मान्य योग्य नर ते, जे केवल परहित जाए ॥ जे स्वारथ रत धूर्त हंस से काक-चरित-रत। ते औरन हति बंचि प्रभुहि नित होहिं समुन्नत ॥ जदपि लोक की रीति यही पै अन्त

2

प्रथम दृश्य (वाह्य प्रान्त)

25 जनवरी 2022
20
1
0

(महन्त जी दो चेलों के साथ गाते हुए आते हैं) सब : राम भजो राम भजो राम भजो भाई। राम के भजे से गनिका तर गई, राम के भजे से गीध गति पाई। राम के नाम से काम बनै सब, राम के भजन बिनु सबहि नसाई ॥ राम के न

3

दूसरा दृश्य (बाजार)

25 जनवरी 2022
15
2
0

कबाबवाला : कबाब गरमागरम मसालेदार-चैरासी मसाला बहत्तर आँच का-कबाब गरमागरम मसालेदार-खाय सो होंठ चाटै, न खाय सो जीभ काटै। कबाब लो, कबाब का ढेर-बेचा टके सेर। घासीराम : चना जोर गरम। चना बनावैं घासी राम।

4

तीसरा दृश्य (स्थान जंगल)

25 जनवरी 2022
11
3
0

(महन्त जी और नारायणदास एक ओर से 'राम भजो इत्यादि गीत गाते हुए आते हैं और एक ओर से गोबवर्धनदास अन्धेरनगरी गाते हुए आते हैं') महन्त : बच्चा गोवर्धन दास! कह क्या भिक्षा लाया? गठरी तो भारी मालूम पड़ती है

5

चौथा दृश्य (राजसभा)

25 जनवरी 2022
8
2
0

(राजा, मन्त्री और नौकर लोग यथास्थान स्थित हैं) 1 सेवक : (चिल्लाकर) पान खाइए महाराज। राजा : (पीनक से चैंक घबड़ाकर उठता है) क्या? सुपनखा आई ए महाराज। (भागता है)। मन्त्री : (राजा का हाथ पकड़कर) नहीं न

6

पांचवां दृश्य (अरण्य)

25 जनवरी 2022
8
1
0

(गोवर्धन दास गाते हुए आते हैं) (राग काफी) अंधेर नगरी अनबूझ राजा। टका सेर भाजी टका सेर खाजा॥ नीच ऊँच सब एकहि ऐसे। जैसे भड़ुए पंडित तैसे॥ कुल मरजाद न मान बड़ाई। सबैं एक से लोग लुगाई॥ जात पाँत पूछै

7

छठा दृश्य (स्थान श्मशान)

25 जनवरी 2022
7
3
0

(गोबर्धन दास को पकड़े हुए चार सिपाहियों का प्रवेश) गोवरधन दास : हाय बाप रे! मुझे बेकसूर ही फाँसी देते हैं। अरे भाइयो, कुछ तो धरम विचारो! अरे मुझ गरीब को फाँसी देकर तुम लोगों को क्या लाभ होगा? अरे मुझ

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