यह व्यंग्य निबंध उन्होंने स्वामी दयानंद सरस्वती (1824-1883) और केशवचंद्र सेन (1838-1884) की मृत्यु के बाद लिखा था। इस निबंध में यह कल्पना की गयी है कि आर्यसमाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती और प्रख्यात ब्राह्म समाजी केशवचंद्र सेन जब स्वर्ग पहुंचे तो वहां किस तरह की स्थितियां पैदा हुईं।
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