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सती प्रताप

भारतेन्दु हरिश्चंद्र

4 अध्याय
2 लोगों ने लाइब्रेरी में जोड़ा
5 पाठक
20 अप्रैल 2022 को पूर्ण की गई
निःशुल्क

यह दुखांत नाटक की परंपरा के नजदीक है । ' भारत दुर्दशा ' में पराधीन भारत की दयनीय आर्थिक स्थिति एवं सामाजिक – सांस्कृतिक अधः पतन का चित्रण है । 'सती प्रताप' सावित्री के पौराणिक आख्यान पर लिखा गया है। भारतेंदु ने अंग्रेजी के ' मर्चेंट ऑफ वेनिस ' नाटक का ' दुर्लभबंधु ' नाम से अधूरा अनुवाद भी किया है। 

sati pratap

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पुस्तक के भाग

1

प्रथम दृश्य

27 जनवरी 2022
3
0
0

संवत् 1941 (एक गीतिरूपक) हिमालय का अधोभाग। तृण लता वेष्टित एक टीले पर बैठी हुई तीन अप्सरा गाती हैं।। br /> 1. अप्सरा- (राग झिझौंटी) जय जय श्री रुकमिन महारानी। निज पति त्रिभुअन पति हरि पद में छाय

2

दूसरा दृश्य

27 जनवरी 2022
2
0
0

तपोवन-लतामंडप में सत्यवान बैठा हुआ है। (रंग गीति-पीलू-धमार) ”क्यों फकीर बन आया वे मेरे वारे जोगी। नई बैस कोमल अंगन पर काहे भभूत रमाया वे ।। किन वे मात पिता तेरे जोगी जिन तोहि नाहि मनाया वे ।। काच

3

तीसरा दृश्य

27 जनवरी 2022
1
0
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जयन्ती नगर गृहोद्यान (जोगिन बनी हुई सावित्री ध्यान करती है) (नेपथ्य में बैतालिक गान) प्र. वै. : नैन लाल कुसुम पलास से रहे हैं फूलि फूल माल गरे बन झालरि सी लाई है। भंवर गुंजार हरि नाम की उचार तिमि

4

चौथा दृश्य

27 जनवरी 2022
1
0
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स्थान-तपोवन। द्युमत्सेन का आश्रम (द्युमत्सेन, उनकी स्त्री और ऋषि बैठे हैं) द्युमत्सेन : ऐसे ही अनेक प्रकार के कष्ट उठाए हैं, कहाँ तक वर्णन किया जाय। पहला ऋषि : यह आपकी सज्जनता का फल है। (छप्पय) क

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