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चित्राधार

25 अप्रैल 2022

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पुन्य औ पाप न जान्यो जात।

सब तेरे ही काज करत है और न उन्हे सिरात ॥

सखा होय सुभ सीख देत कोउ काहू को मन लाय।

सो तुमरोही काज सँवारत ताकों बड़ो बनाय॥

भारत सिंह शिकारी बन-बन मृगया को आमोद।

सरल जीव की रक्षा तिनसे होत तिहारे गोद॥

स्वारथ औ परमारथ सबही तेरी स्वारथ मीत।

तब इतनी टेढी भृकुटी क्यों? देहु चरण में प्रीत॥


छिपी के झगड़ा क्यों फैलायो?

मन्दिर मसजिद गिरजा सब में खोजत सब भरमायो॥

अम्बर अवनि अनिल अनलादिक कौन भूमि नहि भायो।

कढ़ि पाहनहूँ ते पुकार बस सबसों भेद छिपायो॥

कूवाँ ही से प्यास बुझत जो, सागर खोजन जावै

ऐसो को है याते सबही निज निज मति गुन गावै॥

लीलामय सब ठौर अहो तुम, हमको यहै प्रतीत।

अहो प्राणधन, मीत हमारे, देहु चरण में प्रीत॥


ऐसो ब्रह्म लेइ का करिहैं?

जो नहि करत, सुनत नहि जो कुछ जो जन पीर न हरिहै॥

होय जो ऐसो ध्यान तुम्हारो ताहि दिखावो मुनि को।

हमरी मति तो, इन झगड़न को समुझि सकत नहि तनिको॥

परम स्वारथी तिनको अपनो आनंद रूप दिखायो।

उनको दुख, अपनो आश्वासन, मनते सुनौ सुनाओ॥

करत सुनत फल देत लेत सब तुमही, यहै प्रतीत।

बढ़ै हमारे हृदय सदा ही, देहु चरण में प्रीत॥


और जब कहिहै तब का रहिहै।

हमरे लिए प्रान प्रिय तुम सों, यह हम कैसे सहिहै॥

तव दरबारहू लगत सिपारत यह अचरज प्रिय कैसो?

कान फुकावै कौन, हम कि तुम! रुचे करो तुम तैसो॥

ये मन्त्री हमरो तुम्हरो कछु भेद न जानन पावें।

लहि 'प्रसाद' तुम्हरो जग में, प्रिय जूठ खान को जावें॥

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रचनाएँ
जयशंकर प्रसाद की रचनाएँ
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प्रसाद जी की रचनाओं में जीवन का विशाल क्षेत्र समाहित हुआ है। प्रेम, सौन्दर्य, देश–प्रेम, रहस्यानुभूति, दर्शन, प्रकृति चित्रण और धर्म आदि विविध विषयों को अभिनव और आकर्षक भंगिमा के साथ आपने काव्यप्रेमियों के सम्मुख प्रस्तुत किया है। ये सभी विषय कवि की शैली और भाषा की असाधारणता के कारण अछूते रूप में सामने आये हैं।
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पुन्य औ पाप न जान्यो जात। सब तेरे ही काज करत है और न उन्हे सिरात ॥ सखा होय सुभ सीख देत कोउ काहू को मन लाय। सो तुमरोही काज सँवारत ताकों बड़ो बनाय॥ भारत सिंह शिकारी बन-बन मृगया को आमोद। सरल जीव की

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आह ! वेदना मिली विदाई

25 अप्रैल 2022
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आह! वेदना मिली विदाई मैंने भ्रमवश जीवन संचित, मधुकरियों की भीख लुटाई छलछल थे संध्या के श्रमकण आँसू-से गिरते थे प्रतिक्षण मेरी यात्रा पर लेती थी नीरवता अनंत अँगड़ाई श्रमित स्वप्न की मधुमाया

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बीती विभावरी जाग री

25 अप्रैल 2022
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बीती विभावरी जाग री! अम्बर पनघट में डुबो रही तारा-घट ऊषा नागरी! खग-कुल कुल-कुल-सा बोल रहा किसलय का अंचल डोल रहा लो यह लतिका भी भर ला‌ई मधु मुकुल नवल रस गागरी अधरों में राग अमंद पिए अलकों

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दो बूँदें

25 अप्रैल 2022
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शरद का सुंदर नीलाकाश निशा निखरी, था निर्मल हास बह रही छाया पथ में स्वच्छ सुधा सरिता लेती उच्छ्वास पुलक कर लगी देखने धरा प्रकृति भी सकी न आँखें मूँद सु शीतलकारी शशि आया सुधा की मनो बड़ी सी बूँद!

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प्रयाणगीत

25 अप्रैल 2022
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हिमाद्रि तुंग शृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती स्वयंप्रभा समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़-प्रतिज्ञ सोच लो, प्रशस्त पुण्य पंथ हैं - बढ़े चलो बढ़े चलो। असंख्य कीर्ति-रश्मियाँ

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तुम कनक किरन

25 अप्रैल 2022
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तुम कनक किरन के अंतराल में लुक छिप कर चलते हो क्यों ? नत मस्तक गवर् वहन करते यौवन के घन रस कन झरते हे लाज भरे सौंदर्य बता दो मोन बने रहते हो क्यो? अधरों के मधुर कगारों में कल कल ध्वनि की गु

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भारत महिमा

25 अप्रैल 2022
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हिमालय के आँगन में उसे, प्रथम किरणों का दे उपहार उषा ने हँस अभिनंदन किया और पहनाया हीरक-हार जगे हम, लगे जगाने विश्व, लोक में फैला फिर आलोक व्योम-तम पुँज हुआ तब नष्ट, अखिल संसृति हो उठी अशोक वि

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अरुण यह मधुमय देश हमारा

25 अप्रैल 2022
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अरुण यह मधुमय देश हमारा। जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।। सरल तामरस गर्भ विभा पर, नाच रही तरुशिखा मनोहर। छिटका जीवन हरियाली पर, मंगल कुंकुम सारा।। लघु सुरधनु से पंख पसारे, शीतल मलय समी

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आत्‍मकथ्‍य

25 अप्रैल 2022
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मधुप गुन-गुनाकर कह जाता कौन कहानी अपनी यह, मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी। इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्‍य जीवन-इतिहास यह लो, करते ही रहते हैं अपने व्‍यंग्‍य मलिन उपहास तब भी कहते हो

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सब जीवन बीता जाता है

25 अप्रैल 2022
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सब जीवन बीता जाता है धूप छाँह के खेल सदॄश सब जीवन बीता जाता है समय भागता है प्रतिक्षण में, नव-अतीत के तुषार-कण में, हमें लगा कर भविष्य-रण में, आप कहाँ छिप जाता है सब जीवन बीता जाता है बुल्

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हिमाद्रि तुंग शृंग से

25 अप्रैल 2022
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हिमाद्रि तुंग शृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती स्वयं प्रभा समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती 'अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़- प्रतिज्ञ सोच लो, प्रशस्त पुण्य पंथ है, बढ़े चलो, बढ़े चलो!' असंख्य कीर्ति-रश्मिय

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