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"चलते जाना"

27 सितम्बर 2015

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अज़ीज़ दोस्तों , मंज़िल हासिल करने के लिए रास्ते तय करने पड़ते हैं।यही जिंदगी का फ़लसफ़ा है आगे कविता में पढ़िए:- चलते ही देखा है तुमको, और कहाँ तक चलते जाना । बोलो,बोलो कुछ तो बोलो , "पथिक"तुम्हारा कहाँ ठिकाना।। 1. जब से शुरू हुयी है यात्रा, कितने अवरोधक आये । कितने राह दिखाने वाले, कितने प्रतिशोधक आये।। पथ भटकाने वाले कितने, क्या तुमने जाना पहचाना। बोलो बोलो कु छ तो बोलो , "पथिक"तुम्हारा कहा ठिकाना।। 2. कौन कहाँ तक सहयात्री था, किसने साथ कहाँ पर छोड़ा। भटक गए कितने हमराही, किसने मंज़िल से मुख मोड़ा।। चलते रहना जीवनपथ पर लक्ष्य से ना खुद को भटकाना। बोलो बोलो कुछ तो बोलो, "पथिक"तुम्हारा कहाँ ठिकाना।। 3. पथ कितना दुर्गम है यहतो , भलीभांति तुम जान गए। कोई ना साथी साथ चलेगा, यह भी तुम पहचान गए ।। तय करनी मंज़िल की दूरी , तूमने अपने मन में ठाना। निश्चित मंज़िल हासिल होगी, "पथिक"तुम्हे बस चलते जाना।। "पथिक"तुम्हे बस चलते जाना ।। ......बस चलते जा ना। ***शुक्रिया दोस्तों।
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रचनाएँ
chaltejaanaa
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अन्याय के विरूद्ध आवाज बुलन्द करना सच्ची देशभक्ति हैमहिलाएं सदैव सम्मान की अधिकारिणी हैं।
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"चलते जाना"

27 सितम्बर 2015
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अज़ीज़ दोस्तों , मंज़िल हासिल करने के लिए रास्ते तय करने पड़ते हैं।यही जिंदगी का फ़लसफ़ा है आगे कविता में पढ़िए:-चलते ही देखा है तुमको,और कहाँ तक चलते जाना ।बोलो,बोलो कुछ तो बोलो ,"पथिक"तुम्हारा कहाँ ठिकाना।।1.जब से शुरू हुयी है यात्रा,कितने अवरोधक आये ।कितने राह दिखाने वाले,कितने प्रतिशोधक आये।।प

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"करिश्मा"

9 अक्टूबर 2015
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मेरे अज़ीज़ भाइयो/बहनोकरिश्मा शब्द ही आश्चर्यजनक कृत्यों का पूर्वाभाष कराता है फिर कुदरत केकरिश्मे की तो बात ही वर्णनातीत है ।कुछ ऐसा ही देखिये प्रस्तुत रचना में:-1.उस अमावस की काली घनी। रात में ,चाँद पूनम का छत पर चमकता रहा ।गुल न कोई वहा गुलचमन भी न था,फिर भी झोंका पवन का महकता रहा।।किसका एहसास उस

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"चलते जाना"

27 सितम्बर 2015
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अज़ीज़ दोस्तों , मंज़िल हासिल करने के लिए रास्ते तय करने पड़ते हैं।यही जिंदगी का फ़लसफ़ा है आगे कविता में पढ़िए:-चलते ही देखा है तुमको,और कहाँ तक चलते जाना ।बोलो,बोलो कुछ तो बोलो ,"पथिक"तुम्हारा कहाँ ठिकाना।।1.जब से शुरू हुयी है यात्रा,कितने अवरोधक आये ।कितने राह दिखाने वाले,कितने प्रतिशोधक आये।।प

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"चलते जाना"

27 सितम्बर 2015
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अज़ीज़ दोस्तों , मंज़िल हासिल करने के लिए रास्ते तय करने पड़ते हैं।यही जिंदगी का फ़लसफ़ा है आगे कविता में पढ़िए:-चलते ही देखा है तुमको,और कहाँ तक चलते जाना ।बोलो,बोलो कुछ तो बोलो ,"पथिक"तुम्हारा कहाँ ठिकाना।।1.जब से शुरू हुयी है यात्रा,कितने अवरोधक आये ।कितने राह दिखाने वाले,कितने प्रतिशोधक आये।।प

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"आस का दामन"

16 अक्टूबर 2015
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शब्दनगरी के मेरे अजीज़ भाइयो/बहनों …जिंदगी का सफर जितना सुहाना है उसकेरास्ते में उतने ही कांटे भी हैं पर मंजिल को हासिल करना हर पथिक का लक्ष्य होता है आगे देखिये प्रस्तुत रचना मे :-1.ज़ुल्म से जालिम के जब भी,रूबरू होना पड़े ।दोस्त,हमदम,रहनुमा का , साथ भी खोना पड़े।।दूर हमशाया भी हो,जो साथ रहता है सदा।

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"फिर से भारत को उसका 'कलाम'दे दे"

17 अक्टूबर 2015
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भारत को सतरंगी सपने दिखाने वाले महामानव डा.कलाम को खुदा ने जन्नत में तलब कर लिया ।भारतीयों के कुछ ख़्वाब पूरे हुए किन्तु कुछ अधूरे रह गए ।परसों डा.कलाम की ओम -ए-पैदाइश थी। भारतवासियों ने बड़ी शिद्दत के साथ उन्हें याद किया और फिर से भारत आने के लिएखुदा से कुछ इस तरह गुजारिश करते है :-ऐ खुदा तेरी ज़न्नत

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"समस्या नहीं सोच"

18 अक्टूबर 2015
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*****अंक10*****.......पंडित नंदकिशोर त्रिवेदी जी हायर सेकेण्डरी एजूकेसन के दौरान हिंदी के प्रवक्ता थे ।विषय को रोचक बनाने में छोटे छोटे किस्से कहानियाँ उनके व्याख्यान को उत्कृष्ट स्वरुप में ढाल देते थे।वह रोचक के साथ शिक्षाप्रद तो होते ही थे,उनपर अमल करने से समाज काकायाकल्प भी होता था।😢।..वह किस्स

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"विजय रथ"

22 अक्टूबर 2015
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श्रेष्ठ भाइयो/बहनो*****आज विजय का पर्व दशहरा है।विजय की गाथा जारी है ,प्रस्तुत हैंचंद पंक्तियाँ आप की तवज्जो के लिए :- 1.रणभेरी बज रही,विजयरथ घूम रहा है ।आसमान भी आल्हादित हो,दूर धरा को चूम रहा है ।।********विजय रथ गूम रहा है ।2.रथ पर सवार 'भारतमाता ',रक्षक इसके दिगपाल सभी । सारथी हैं सब भारतवासी,ना

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"गरीबी तो इनके साथ है"

25 अक्टूबर 2015
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शब्दनगरी के श्रेष्ठ भाइयो/बहनोभारत में गरीबी घट रही है या आंकड़े ही प्रस्तुत किये जाते रहे हैं यह चर्चा का विषय बना हुवा है किन्तु जो दिखाई पड़ता है उसे झुठलाया नहीं जा सकता।प्रस्तुत कविता इसी विषय को छूती हुई:-1.रास्ते तय करना इंसान की,फितरत भी है,मज़बूरी भी ।मंज़िलों के हासिले की,यह प्रक्रिया अपनान

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