अज़ीज़ दोस्तों ,
मंज़िल हासिल करने के लिए रास्ते तय करने पड़ते हैं।यही जिंदगी का फ़लसफ़ा है आगे कविता में पढ़िए:-
चलते ही देखा है तुमको,
और कहाँ तक चलते जाना ।
बोलो,बोलो कुछ तो बोलो ,
"पथिक"तुम्हारा कहाँ ठिकाना।।
1.
जब से शुरू हुयी है यात्रा,
कितने अवरोधक आये ।
कितने राह दिखाने वाले,
कितने प्रतिशोधक आये।।
पथ भटकाने वाले कितने,
क्या तुमने जाना पहचाना।
बोलो बोलो कु छ तो बोलो ,
"पथिक"तुम्हारा कहा ठिकाना।।
2.
कौन कहाँ तक सहयात्री था,
किसने साथ कहाँ पर छोड़ा।
भटक गए कितने हमराही,
किसने मंज़िल से मुख मोड़ा।।
चलते रहना जीवनपथ पर
लक्ष्य से ना खुद को भटकाना।
बोलो बोलो कुछ तो बोलो,
"पथिक"तुम्हारा कहाँ ठिकाना।।
3.
पथ कितना दुर्गम है यहतो ,
भलीभांति तुम जान गए।
कोई ना साथी साथ चलेगा,
यह भी तुम पहचान गए ।।
तय करनी मंज़िल की दूरी ,
तूमने अपने मन में ठाना।
निश्चित मंज़िल हासिल होगी,
"पथिक"तुम्हे बस चलते जाना।।
"पथिक"तुम्हे बस चलते जाना ।।
......बस चलते जा
ना।
***शुक्रिया दोस्तों।