शब्दनगरी के श्रेष्ठ भाइयो/बहनो
भारत में गरीबी घट रही है या आंकड़े ही प्रस्तुत किये जाते रहे हैं यह चर्चा का विषय बना हुवा है किन्तु जो दिखाई पड़ता है उसे झुठलाया नहीं जा सकता।प्रस्तुत कविता इसी विषय को छूती हुई:-
1.
रास्ते तय करना इंसान की,
फितरत भी है,मज़बूरी भी ।
मंज़िलों के हासिले की,
यह प्रक्रिया अपनाना ज़रूरी भी।
2.
दोस्तों ! यह प्रक्रिया आप भी ,
ज़रूर अपनाते होंगे ।
किसी न किसी काम से रोज़ाना ,
ज़रूर बाहर जाते होंगे।।
3.
आप देखते होंगे उन लोगों का हजूम,
जिनकी रिहायश अभी भी फूटपाथ है।
यह किस्मत के धनी नहीं,
किन्तु कम से कम 'गरीबी तो इनके साथ है'।।
4.
यही धरती उनकी प्यारी माँ है,
जो अपनी गोद में सुलाती है।
सूरज,चाँद ,सितारों जड़ित ,आशमां की,
छत भी मुहैया कराती है ।।
5.
भूख,बीमारी,अशिक्षा,बेरोज़गारी जैसी,
सभी विशिष्ठ डिग्रियां इनके पास हैं।
किन्तु सरकारी मान्यता न मिल पाने से,
ऐसी सूचियों में नाम न आने से,बेहद निराश हैं।।
6.
कई शहरों में 'रैनबसेरों'का नाम,
जरूर सुनाई पड़ता है ।।
किन्तु तलाशने पर इनका वज़ूद भी,
बमुश्किल दिखाई पड़ता है।।
7.
तलाशने पर।मिल भी गए तो ,
आप देखेगे,यह खुद ही बीमार हैं।
सरकार और सरकारीतंत्र की ,
घोर मनमा नी और उपेक्षा के शिकार।हैं।।
8.
हर "पथिक"को अपनी अपनी ,
मंज़िल की तलाश है।
पर इन बेसहारा मज़लूमों को हरदिन,
आपसे सरपरस्ती की आस है।।।
***शुक्रिया दोस्त।