श्रेष्ठ भाइयो/बहनो
*****आज विजय का पर्व दशहरा है।विजय की गाथा जारी है ,प्रस्तुत हैंचंद पंक्तियाँ आप की तवज्जो के लिए :-
1.
रणभेरी बज रही,विजयरथ घूम रहा है ।
आसमान भी आल्हादित हो,
दूर धरा को चूम रहा है ।।
********विजय रथ गूम रहा है ।
2.
रथ पर सवार 'भारतमाता ',
रक्षक इसके दिगपाल सभी ।
सारथी हैं सब भारतवासी,
ना रण में पीछे मुड़ें कभी ।।
3.
स्वागत करने को रोज रोज ,
आते हैं सूरज, चाँद यहां ।
जाडा,गरमी,वर्षा ,बसंत,
इतने मौसम हैं और कहाँ?
"पथिक"निहारो इंद्रधनुष ,
यह पवन,वेग में झूम रहा है ।।
****विजयरथ घूम रहा है ।।।
शुक्रिया दोस्तों ।।