shabd-logo

"आस का दामन"

16 अक्टूबर 2015

206 बार देखा गया 206
शब्दनगरी के मेरे अजीज़ भाइयो/बहनों …जिंदगी का सफर जितना सुहाना है उसके रास्ते में उतने ही कांटे भी हैं पर मंजिल को हासिल करना हर पथिक का लक्ष्य होता है आगे देखिये प्रस्तुत रचना मे :- 1. ज़ुल्म से जालिम के जब भी, रूबरू होना पड़े । दोस्त,हमदम,रहनुमा का , साथ भी खोना पड़े।। दूर हमशाया भी हो, जो साथ रहता है सदा। जिंदगी के सफ़र में, मत हों निराश,ग़मज़दा।। 2. टिमटिमाते दीप जब, बुझने लगें होकर उदास। घिर गया हो तम, फ़िज़ाओं में तुम्हारे आस पास।। हर तरफ हो घोर सन्नाटा, अंधेरी रात सा। आँसुवों की धार से , मौसम लगे बरसात सा।। 3. ऎ"पथिक"तब'आस का दामन', पकड़ यह ठान लो। 'धर्म'दिखलायेगा तुमको, उचित पथ यह जान लो ।। 'धैर्य देगा जोश तुमको, उस समय यह जान लो। मुश्किले हालात में भी , अपना सीना तान लो ।। 4. ज्यों,कर रहा हो दुवा कोई, अपने हमदम के लिए। त्यों,बढ़ रही मंज़िल तुम्हारे, खैरमकदम के लिए।। तब! ठोकरें खाकर भी तुम, संभलो उठो चलते रहो। खुद क़ारवां बन जायगा, हिम्मत जवाँ करते रहो।। बस मंज़िले मक़सूदपर, चलते रहो,चलते रहो और हिम्मते मरदां की पक्की, दास्ताँ करते रहो। चलते रहो ,चलते रहो,चलते रहो,चलते रहो ।....चलते रहो।। शुक्रिया दोस्तों।

अन्य डायरी की किताबें

एबीसिंह

एबीसिंह

बहन वर्तिका जी तहेदिल से शुक्रिया।

17 अक्टूबर 2015

एबीसिंह

एबीसिंह

बहन वर्तिका जी तहेदिल से शुक्रिया।

17 अक्टूबर 2015

एबीसिंह

एबीसिंह

भाई ओमप्रकाश शर्मा जी उत्साहवर्धन के लिए हम बहुत बहुत आभार व्यक्त करते हैं ।

17 अक्टूबर 2015

एबीसिंह

एबीसिंह

भाई ओमप्रकाश शर्मा जी उत्साहवर्धन के लिए हम बहुत बहुत आभार व्यक्त करते हैं ।

17 अक्टूबर 2015

ओम प्रकाश शर्मा

ओम प्रकाश शर्मा

'ऎ पथिक तब आस का दामन पकड़ यह ठान लो, 'धर्म'दिखलायेगा तुमको, उचित पथ यह जान लो'.......... अत्यंत प्रेरक रचना ! बहुत सुन्दर, एबीसिंह जी ! रचना प्रकाशन हेतु बधाई !

17 अक्टूबर 2015

वर्तिका

वर्तिका

"खुद क़ारवां बन जायगा, हिम्मत जवाँ करते रहो, बस मंज़िले मक़सूदपर, चलते रहो, चलते रहो", सच में, चलना ही ज़िन्दगी हैं, चाहे कितनी भी मुश्किलें आएं जीवन में आगे बढ़ते रहो !

17 अक्टूबर 2015

9
रचनाएँ
chaltejaanaa
0.0
अन्याय के विरूद्ध आवाज बुलन्द करना सच्ची देशभक्ति हैमहिलाएं सदैव सम्मान की अधिकारिणी हैं।
1

"चलते जाना"

27 सितम्बर 2015
0
4
4

अज़ीज़ दोस्तों , मंज़िल हासिल करने के लिए रास्ते तय करने पड़ते हैं।यही जिंदगी का फ़लसफ़ा है आगे कविता में पढ़िए:-चलते ही देखा है तुमको,और कहाँ तक चलते जाना ।बोलो,बोलो कुछ तो बोलो ,"पथिक"तुम्हारा कहाँ ठिकाना।।1.जब से शुरू हुयी है यात्रा,कितने अवरोधक आये ।कितने राह दिखाने वाले,कितने प्रतिशोधक आये।।प

2

"करिश्मा"

9 अक्टूबर 2015
0
1
4

मेरे अज़ीज़ भाइयो/बहनोकरिश्मा शब्द ही आश्चर्यजनक कृत्यों का पूर्वाभाष कराता है फिर कुदरत केकरिश्मे की तो बात ही वर्णनातीत है ।कुछ ऐसा ही देखिये प्रस्तुत रचना में:-1.उस अमावस की काली घनी। रात में ,चाँद पूनम का छत पर चमकता रहा ।गुल न कोई वहा गुलचमन भी न था,फिर भी झोंका पवन का महकता रहा।।किसका एहसास उस

3

"चलते जाना"

27 सितम्बर 2015
0
4
0

अज़ीज़ दोस्तों , मंज़िल हासिल करने के लिए रास्ते तय करने पड़ते हैं।यही जिंदगी का फ़लसफ़ा है आगे कविता में पढ़िए:-चलते ही देखा है तुमको,और कहाँ तक चलते जाना ।बोलो,बोलो कुछ तो बोलो ,"पथिक"तुम्हारा कहाँ ठिकाना।।1.जब से शुरू हुयी है यात्रा,कितने अवरोधक आये ।कितने राह दिखाने वाले,कितने प्रतिशोधक आये।।प

4

"चलते जाना"

27 सितम्बर 2015
0
4
0

अज़ीज़ दोस्तों , मंज़िल हासिल करने के लिए रास्ते तय करने पड़ते हैं।यही जिंदगी का फ़लसफ़ा है आगे कविता में पढ़िए:-चलते ही देखा है तुमको,और कहाँ तक चलते जाना ।बोलो,बोलो कुछ तो बोलो ,"पथिक"तुम्हारा कहाँ ठिकाना।।1.जब से शुरू हुयी है यात्रा,कितने अवरोधक आये ।कितने राह दिखाने वाले,कितने प्रतिशोधक आये।।प

5

"आस का दामन"

16 अक्टूबर 2015
0
5
6

शब्दनगरी के मेरे अजीज़ भाइयो/बहनों …जिंदगी का सफर जितना सुहाना है उसकेरास्ते में उतने ही कांटे भी हैं पर मंजिल को हासिल करना हर पथिक का लक्ष्य होता है आगे देखिये प्रस्तुत रचना मे :-1.ज़ुल्म से जालिम के जब भी,रूबरू होना पड़े ।दोस्त,हमदम,रहनुमा का , साथ भी खोना पड़े।।दूर हमशाया भी हो,जो साथ रहता है सदा।

6

"फिर से भारत को उसका 'कलाम'दे दे"

17 अक्टूबर 2015
0
3
0

भारत को सतरंगी सपने दिखाने वाले महामानव डा.कलाम को खुदा ने जन्नत में तलब कर लिया ।भारतीयों के कुछ ख़्वाब पूरे हुए किन्तु कुछ अधूरे रह गए ।परसों डा.कलाम की ओम -ए-पैदाइश थी। भारतवासियों ने बड़ी शिद्दत के साथ उन्हें याद किया और फिर से भारत आने के लिएखुदा से कुछ इस तरह गुजारिश करते है :-ऐ खुदा तेरी ज़न्नत

7

"समस्या नहीं सोच"

18 अक्टूबर 2015
0
2
0

*****अंक10*****.......पंडित नंदकिशोर त्रिवेदी जी हायर सेकेण्डरी एजूकेसन के दौरान हिंदी के प्रवक्ता थे ।विषय को रोचक बनाने में छोटे छोटे किस्से कहानियाँ उनके व्याख्यान को उत्कृष्ट स्वरुप में ढाल देते थे।वह रोचक के साथ शिक्षाप्रद तो होते ही थे,उनपर अमल करने से समाज काकायाकल्प भी होता था।😢।..वह किस्स

8

"विजय रथ"

22 अक्टूबर 2015
0
3
2

श्रेष्ठ भाइयो/बहनो*****आज विजय का पर्व दशहरा है।विजय की गाथा जारी है ,प्रस्तुत हैंचंद पंक्तियाँ आप की तवज्जो के लिए :- 1.रणभेरी बज रही,विजयरथ घूम रहा है ।आसमान भी आल्हादित हो,दूर धरा को चूम रहा है ।।********विजय रथ गूम रहा है ।2.रथ पर सवार 'भारतमाता ',रक्षक इसके दिगपाल सभी । सारथी हैं सब भारतवासी,ना

9

"गरीबी तो इनके साथ है"

25 अक्टूबर 2015
0
0
0

शब्दनगरी के श्रेष्ठ भाइयो/बहनोभारत में गरीबी घट रही है या आंकड़े ही प्रस्तुत किये जाते रहे हैं यह चर्चा का विषय बना हुवा है किन्तु जो दिखाई पड़ता है उसे झुठलाया नहीं जा सकता।प्रस्तुत कविता इसी विषय को छूती हुई:-1.रास्ते तय करना इंसान की,फितरत भी है,मज़बूरी भी ।मंज़िलों के हासिले की,यह प्रक्रिया अपनान

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए