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"करिश्मा"

9 अक्टूबर 2015

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मेरे अज़ीज़ भाइयो/बहनो करिश्मा शब्द ही आश्चर्यजनक कृत्यों का पूर्वाभाष कराता है फिर कुदरत केकरिश्मे की तो बात ही वर्णनातीत है ।कुछ ऐसा ही देखिये प्रस्तुत रचना में:- 1. उस अमावस की काली घनी। रात में , चाँद पूनम का छत पर चमकता रहा । गुल न कोई वहा गुलचमन भी न था, फिर भी झोंका पवन का महकता रहा।। किसका एहसास उस दम फिज़ाओ में था, कौन आया तेरी कल्पनाओं में था? ग़म जुदाई का ज्यों ज्यों सताने लगा, साँस थमती गयी दिल धड़कता रहा।। ....गुल न कोई वहां गुलचमनभी न था, फिर भी झोंका पवन का। महेकतारहा।। 2. तूने चाहा पिया से मिलन हो वहां, मिल रही है ये धरती गगन से जहां। तेरे प्रियतम ने डोली सजा राखी है, सारी धरती की चादर बिछा राखी है।आसमाँ का है पर्दा सितारों जड़ा, चाँद-सूरज से महफ़िल सजा रखी है। आएंगे कब 'कहरवा'यही सोच कर, तन सिहरता रहा,मनमचलता रहा ।। ।..गुल न कोई वहां गुलचमन भी न था, फिर भी झोंका पवन का महकता रहा।। 3. ढूंढ़ कस्तूरी को मृग रहा दर बदर , खुद में होने का उसको न एहसास है। बस रहा है तेरे दिल मे वह जादूगर , जानता तू जिसे दूर वह पास है ।। देख उसका 'करिश्मा' "पथिक"गौर से मेघ छाये ना पानी बरसता रहा । ।...गुल न कोई वहां गुलचमन भी न था फिर भी झोंका पवन कामहकता रहा। उस अमावस की काली घनी रात में , चाँद पूनम का छत पर चमकता रहा। चाँद पूनम का छत पर चमकता रहा ।..........चमकता रहा......।।। ।..शुक्रिया दोस्तों।।।
एबीसिंह

एबीसिंह

भाई अवधेश सिंह भदौरिया जी,आप द्वारा कीगई हौशलाआफ़ज़ाई से।हम अभिभूत हैं हार्दिक आभार।सादर।

10 अक्टूबर 2015

एबीसिंह

एबीसिंह

भाई ओमप्रकाश शर्मा जी ,रचना आपको अच्छी लगी हमारा अहोभाग्य।आतमीयआभार।

10 अक्टूबर 2015

ओम प्रकाश शर्मा

ओम प्रकाश शर्मा

"गुल न कोई वहां गुलचमन भी न था, फिर भी झोंका पवन का महकता रहा"... बहुत सुन्दर रचना, ए बी सिंह जी !

9 अक्टूबर 2015

अवधेश प्रताप सिंह भदौरिया 'अनुराग'

अवधेश प्रताप सिंह भदौरिया 'अनुराग'

वाह ,बहुत खूब सुन्दर गीत ,बधाई!

9 अक्टूबर 2015

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रचनाएँ
chaltejaanaa
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अन्याय के विरूद्ध आवाज बुलन्द करना सच्ची देशभक्ति हैमहिलाएं सदैव सम्मान की अधिकारिणी हैं।
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"चलते जाना"

27 सितम्बर 2015
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अज़ीज़ दोस्तों , मंज़िल हासिल करने के लिए रास्ते तय करने पड़ते हैं।यही जिंदगी का फ़लसफ़ा है आगे कविता में पढ़िए:-चलते ही देखा है तुमको,और कहाँ तक चलते जाना ।बोलो,बोलो कुछ तो बोलो ,"पथिक"तुम्हारा कहाँ ठिकाना।।1.जब से शुरू हुयी है यात्रा,कितने अवरोधक आये ।कितने राह दिखाने वाले,कितने प्रतिशोधक आये।।प

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"करिश्मा"

9 अक्टूबर 2015
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मेरे अज़ीज़ भाइयो/बहनोकरिश्मा शब्द ही आश्चर्यजनक कृत्यों का पूर्वाभाष कराता है फिर कुदरत केकरिश्मे की तो बात ही वर्णनातीत है ।कुछ ऐसा ही देखिये प्रस्तुत रचना में:-1.उस अमावस की काली घनी। रात में ,चाँद पूनम का छत पर चमकता रहा ।गुल न कोई वहा गुलचमन भी न था,फिर भी झोंका पवन का महकता रहा।।किसका एहसास उस

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"चलते जाना"

27 सितम्बर 2015
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अज़ीज़ दोस्तों , मंज़िल हासिल करने के लिए रास्ते तय करने पड़ते हैं।यही जिंदगी का फ़लसफ़ा है आगे कविता में पढ़िए:-चलते ही देखा है तुमको,और कहाँ तक चलते जाना ।बोलो,बोलो कुछ तो बोलो ,"पथिक"तुम्हारा कहाँ ठिकाना।।1.जब से शुरू हुयी है यात्रा,कितने अवरोधक आये ।कितने राह दिखाने वाले,कितने प्रतिशोधक आये।।प

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"चलते जाना"

27 सितम्बर 2015
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अज़ीज़ दोस्तों , मंज़िल हासिल करने के लिए रास्ते तय करने पड़ते हैं।यही जिंदगी का फ़लसफ़ा है आगे कविता में पढ़िए:-चलते ही देखा है तुमको,और कहाँ तक चलते जाना ।बोलो,बोलो कुछ तो बोलो ,"पथिक"तुम्हारा कहाँ ठिकाना।।1.जब से शुरू हुयी है यात्रा,कितने अवरोधक आये ।कितने राह दिखाने वाले,कितने प्रतिशोधक आये।।प

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"आस का दामन"

16 अक्टूबर 2015
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शब्दनगरी के मेरे अजीज़ भाइयो/बहनों …जिंदगी का सफर जितना सुहाना है उसकेरास्ते में उतने ही कांटे भी हैं पर मंजिल को हासिल करना हर पथिक का लक्ष्य होता है आगे देखिये प्रस्तुत रचना मे :-1.ज़ुल्म से जालिम के जब भी,रूबरू होना पड़े ।दोस्त,हमदम,रहनुमा का , साथ भी खोना पड़े।।दूर हमशाया भी हो,जो साथ रहता है सदा।

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"फिर से भारत को उसका 'कलाम'दे दे"

17 अक्टूबर 2015
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भारत को सतरंगी सपने दिखाने वाले महामानव डा.कलाम को खुदा ने जन्नत में तलब कर लिया ।भारतीयों के कुछ ख़्वाब पूरे हुए किन्तु कुछ अधूरे रह गए ।परसों डा.कलाम की ओम -ए-पैदाइश थी। भारतवासियों ने बड़ी शिद्दत के साथ उन्हें याद किया और फिर से भारत आने के लिएखुदा से कुछ इस तरह गुजारिश करते है :-ऐ खुदा तेरी ज़न्नत

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"समस्या नहीं सोच"

18 अक्टूबर 2015
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*****अंक10*****.......पंडित नंदकिशोर त्रिवेदी जी हायर सेकेण्डरी एजूकेसन के दौरान हिंदी के प्रवक्ता थे ।विषय को रोचक बनाने में छोटे छोटे किस्से कहानियाँ उनके व्याख्यान को उत्कृष्ट स्वरुप में ढाल देते थे।वह रोचक के साथ शिक्षाप्रद तो होते ही थे,उनपर अमल करने से समाज काकायाकल्प भी होता था।😢।..वह किस्स

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"विजय रथ"

22 अक्टूबर 2015
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श्रेष्ठ भाइयो/बहनो*****आज विजय का पर्व दशहरा है।विजय की गाथा जारी है ,प्रस्तुत हैंचंद पंक्तियाँ आप की तवज्जो के लिए :- 1.रणभेरी बज रही,विजयरथ घूम रहा है ।आसमान भी आल्हादित हो,दूर धरा को चूम रहा है ।।********विजय रथ गूम रहा है ।2.रथ पर सवार 'भारतमाता ',रक्षक इसके दिगपाल सभी । सारथी हैं सब भारतवासी,ना

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"गरीबी तो इनके साथ है"

25 अक्टूबर 2015
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शब्दनगरी के श्रेष्ठ भाइयो/बहनोभारत में गरीबी घट रही है या आंकड़े ही प्रस्तुत किये जाते रहे हैं यह चर्चा का विषय बना हुवा है किन्तु जो दिखाई पड़ता है उसे झुठलाया नहीं जा सकता।प्रस्तुत कविता इसी विषय को छूती हुई:-1.रास्ते तय करना इंसान की,फितरत भी है,मज़बूरी भी ।मंज़िलों के हासिले की,यह प्रक्रिया अपनान

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