मेरे अज़ीज़ भाइयो/बहनो
करिश्मा शब्द ही आश्चर्यजनक कृत्यों का पूर्वाभाष कराता है फिर कुदरत केकरिश्मे की तो बात ही वर्णनातीत है ।कुछ ऐसा ही
देखिये प्रस्तुत रचना में:-
1.
उस अमावस की काली घनी। रात में ,
चाँद पूनम का छत पर चमकता रहा ।
गुल न कोई वहा गुलचमन भी न था,
फिर भी झोंका पवन का महकता रहा।।
किसका एहसास उस दम फिज़ाओ में था,
कौन आया तेरी कल्पनाओं में था?
ग़म जुदाई का ज्यों ज्यों सताने लगा,
साँस थमती गयी दिल धड़कता रहा।।
....गुल न कोई वहां गुलचमनभी न था,
फिर भी झोंका पवन का। महेकतारहा।।
2.
तूने चाहा पिया से मिलन हो वहां,
मिल रही है ये धरती गगन से जहां।
तेरे प्रियतम ने डोली सजा राखी है,
सारी धरती की चादर बिछा राखी है।आसमाँ का है पर्दा सितारों जड़ा,
चाँद-सूरज से महफ़िल सजा रखी है।
आएंगे कब 'कहरवा'यही सोच कर,
तन सिहरता रहा,मनमचलता रहा ।।
।..गुल न कोई वहां गुलचमन भी न था,
फिर भी झोंका पवन का महकता रहा।।
3.
ढूंढ़ कस्तूरी को मृग रहा दर बदर ,
खुद में होने का उसको न एहसास है।
बस रहा है तेरे दिल मे वह जादूगर ,
जानता तू जिसे दूर वह पास है ।।
देख उसका 'करिश्मा' "पथिक"गौर से
मेघ छाये ना पानी बरसता रहा ।
।...गुल न कोई वहां गुलचमन भी न था
फिर भी झोंका पवन कामहकता रहा।
उस अमावस की काली घनी रात में ,
चाँद पूनम का छत पर चमकता रहा।
चाँद पूनम का छत पर चमकता रहा
।..........चमकता रहा......।।।
।..शुक्रिया दोस्तों।।।