दो पड़ोसी
एक गांव में दो पड़ोसी थे। दोनों में गहरी दोस्ती भी थी। दोनों के पास अपने - अपने बागान थे और वे उनमें तरह - तरह के फलों के पौधे उगाते थे। यही बागान उनकी जीविका के साधन थे। उनमें से एक पड़ोसी बहुत सख्त था और अपने पौधों की जरूरत से ज्यादा देखभाल करता था। उसे लगता था कि पौधों की अगर ठीक से देखभाल नहीं की गयी तो वे नष्ट हो सकते हैं, लेकिन दूसरा पड़ोसी पौधों को प्राकृतिक रूप से विकसित होने देने पर विश्वास करता था। वह पौधों की उतनी ही देखभाल करता था, जितने कि उन्हें आवश्यकता थी, लेकिन वह अपने पौधे के तनों और टहनियों को कांट - छांट न करके अपनी मनमर्जी दिशा में बढ़ने देता था। इससे वे स्वाभाविक रूप से विकसित होते थे।
एक शाम, बहुत भीषण तूफान आया, जिसमें भारी बारिश हुई। तूफान ने कई पौधों को नष्ट कर दिया। अगली सुबह, जब सख्त पड़ोसी उठा, तो उसने पाया कि उसके सारे पौधे उखड़ गये और बर्बाद हो गये। वहीं, जब दूसरा पड़ोसी उठा, तो उसने पाया कि उसके पौधे अभी भी मिट्टी में मजबूती से लगे हुए हैं, इतने तूफान के बावजूद। सामान्य पड़ोसी के पौधे खुद ही चीजों का प्रबंधन करना सीख गये थे। इसलिए, इसने अपना काम किया, गहरी जड़ें उगायीं और मिट्टी में अपने लिए जगह बनायी। इस प्रकार, यह तूफान में भी मजबूती से खड़ा रहा। जबकि, उस सख्त पड़ोसी ने अपने पौधों का जरूरत से ज्यादा ख्याल रखा था, लेकिन शायद वह भूल गया सिखाना कि बुरे समय में खुद का ख्याल कैसे रखते हैं।
संदेश : अभी या बाद में, आपको खुद से ही सबकुछ करना होगा। जब तक माता- पिता अत्यधिक सख्त होना बंद नहीं करते, तब तक कोई अपनी समझ के अनुरूप काम करना नहीं सीख पाता।
-दिनेश कुमार कीर