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दर्द माँजता है

रण विजय

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17 जून 2022 को पूर्ण की गई
ISBN : 9789382597834

लिखना भी एकcatharsis है। विभिन्न लोग इसे विभिन्न तरह से हासिल करते हैं। मुझे लिखकर ही प्राप्त हुआ। ज़मीन को फोड़कर, सर उठकर बीज की तरह निकला हूँ और जाड़ा, गर्मी, बरसात, आंधी सहकर वृक्ष बना हूँ। गांव से शहर तक, नगर से महानगर तक, पैदल से साइकिल तक, फिर मोटरसाइकिल से कार तक, खेत से फार्महाउस तक, और आम से हुक्काम तक का सफर मैंने तय किया है। इस सफर में किरदार मिलते गये और कहानियाँ बनती गयीं। किरदार इतने सशक्त निकले कि वे मुझे बेचैन करते रहे और चैन तब मिला जब वे नेपथ्य से मंच पर आ गए।अब स्वयं हीबोलेंगे, सबके सामने। मैं मात्र सूत्रधार.... बोझ से केवल मुक्त हुआ हूँ।- रणविजय इस संग्रह में लगभग समाज का हर चेहरा मौजूद है। ‘मेरे भगवान’ में सामाजिक मूल्यों का विकास है, वंशी लाल जैसा भोला चरित्र है, वहीं ‘छ्द्म’ में रंजीत दत्त के छल , खल की पराकाष्ठा है। लातूर भूकम्प के भयावह विभीषिका के दर्द के बीच मे विश्वास और प्रेम का नन्हा बीज उगता है, ‘दर्द माँजता है’ में, परन्तु ‘एक तेरा ही साथ’ मे नायक के विश्वास का हनन हो जाता है और ततपश्चात प्रेम की उदारता और उदात्त स्वरूप दिखता है। ‘वंचित’ का नायक अपने ऐश और मौज के लिए जो व्यूह रचता है, उस मे वो अपने को स्वयं फंसा हुआ पाता है। ‘परिस्थितियां’ त्रासदी में उपजती कठिनाइयों और मानवीय क्षमताओं के बीच संघर्ष और संयोजन की कहानी है।‘ट्रेन, बस और लड़की’ का इंतज़ार नही करना चाहिए, क्यों कि एक जाती है तो दूसरी आती है, आत्म सन्तुष्टि के इसी दर्शन को ये कहानी साकार करती है। सरकारी व्यवस्था में व्याप्त चापलूसी, अकर्मण्यता तथा नियोजित भ्रष्टाचार का चित्रण है ‘राजकाज ‘में। ‘कागज़ी इंसाफ’ नियमों, कानूनों की अव्यवहारिकताओं तथा व्यवस्था पर प्रश्न उठाती और दर्द उकेरती है। 

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