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एक सोच

3 मई 2022

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भारत की गलियों में भटकती हवा

चूल्हे की बुझती आग को कुरेदती

उधार लिए अन्न का

एक ग्रास तोड़ती

और घुटनों पे हाथ रखके

फिर उठती है


चीन के पीले

और ज़र्द होंटों के छाले

आज बिलखकर

एक आवाज़ देते हैं

वह जाती और

हर गले में एक सूखती

और चीख मारकर

वह वीयतनाम में गिरती है


श्मशान-घरों में से

एक गन्ध-सी आती

और सागर पार बैठे

श्मशान-घरों के वारिस

बारूद की इस गन्ध को

शराब की गन्ध में भिगोते हैं।


बिलकुल उस तरह, जिस तरह

कि श्मशान-घरों के दूसरे वारिस

भूख की एक गन्ध को

तक़दीर की गन्ध में भिगोते हैं

और लोगों के दुःखों की गन्ध को

तक़रीर की गन्ध में भिगोते हैं।


और इज़राइल की नयी-सी माटी

या पुरानी रेत अरब की

जो खून में है भीगती

और जिसकी गन्ध 

ख़ामख़ाह शहादत के जाम में है डूबती

छाती की गलियों में भटकती हवा

यह सभी गन्धें सूंघती और सोचती 

कि धरती के आंगन से

सूतक की महक कब आएगी?

कोई इड़ा – किसी माथे की नाड़ी

– कब गर्भवती होगी?

गुलाबी माँस का सपना

आज सदियों के ज्ञान से

वीर्य की बूंद मांगता

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रचनाएँ
रोचक कविताएँ
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कम उम्र में ही मां के चले जाने के कारण इन्हें जिम्मेदारियों को ना चाहते हुए भी उठाना पड़ा जिम्मेदारियों का भार और अकेलेपन के कारण इन्होंने कम उम्रमें ही लिखना शुरु कर दिया। इनकी कविताओं का पहला संकलन “अमृत लेहरन (अमर लहरें)” सन् 1936 में प्रकाशित हुई।
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वारिस शाह से

3 मई 2022
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आज वारिस शाह से कहती हूँ अपनी कब्र में से बोलो और इश्क की किताब का कोई नया वर्क खोलो पंजाब की एक बेटी रोई थी तूने एक लंबी दास्तान लिखी आज लाखों बेटियाँ रो रही हैं, वारिस शाह तुम से कह रही हैं

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एक मुलाकात

3 मई 2022
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मैं चुप शान्त और अडोल खड़ी थी सिर्फ पास बहते समुन्द्र में तूफान था……फिर समुन्द्र को खुदा जाने क्या ख्याल आया उसने तूफान की एक पोटली सी बांधी मेरे हाथों में थमाई और हंस कर कुछ दूर हो गया हैरान

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याद

3 मई 2022
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आज सूरज ने कुछ घबरा कर रोशनी की एक खिड़की खोली बादल की एक खिड़की बंद की और अंधेरे की सीढियां उतर गया… आसमान की भवों पर जाने क्यों पसीना आ गया सितारों के बटन खोल कर उसने चांद का कुर्ता उतार दि

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हादसा

3 मई 2022
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बरसों की आरी हंस रही थी घटनाओं के दांत नुकीले थे अकस्मात एक पाया टूट गया आसमान की चौकी पर से शीशे का सूरज फिसल गया आंखों में ककड़ छितरा गये और नजर जख्मी हो गयी कुछ दिखायी नहीं देता दुनिया शा

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आत्ममिलन

3 मई 2022
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मेरी सेज हाजिर है पर जूते और कमीज की तरह तू अपना बदन भी उतार दे उधर मूढ़े पर रख दे कोई खास बात नहीं बस अपने अपने देश का रिवाज है

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शहर

3 मई 2022
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मेरा शहर एक लम्बी बहस की तरह है सड़कें - बेतुकी दलीलों-सी और गलियाँ इस तरह जैसे एक बात को कोई इधर घसीटता कोई उधर हर मकान एक मुट्ठी-सा भिंचा हुआ दीवारें-किचकिचाती सी और नालियाँ, ज्यों मुँह से

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एक सोच

3 मई 2022
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भारत की गलियों में भटकती हवा चूल्हे की बुझती आग को कुरेदती उधार लिए अन्न का एक ग्रास तोड़ती और घुटनों पे हाथ रखके फिर उठती है चीन के पीले और ज़र्द होंटों के छाले आज बिलखकर एक आवाज़ देते हैं

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