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(एकांकी) बुढ़िया मां...।

12 सितम्बर 2021

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     रंगमंच

               मुख्य पात्र परिचय–:


1} सविता            :    गुप्ता परिवार की बड़ी बहू और लखन कि पत्नी।
2} लखन             :  बड़ा बेटा और मिस्टी का बाप।
3} शंभू                :   लखन का नौकर।
4} मिस्टी              : लखन और सविता कि एकमात्र    
                                               संतान 16 साल की।
5} दयावंती देवी     :  लखन कि  विधवा मां  ।
6} बॉस                 :  लखन का बॉस।




( एक घर बेहद बड़ा सा और लीपा– पुता हुआ। बड़ी बहू किचन से  चली आ रही है। साज –सज्जे से घर आकर्षक दिख रहा है।)

लखन :     शंभू, जरा वो अखबार लाना तो।
सविता :     (गुस्से से भरी आवाज)अखबार छोड़ो ,बुढ़िया (दयावंती देवी) को देखो।

लखन :     (थूक गटकते) क्यों? क्या हुआ?

मिस्टी :      (अपने कमरे से आकर तेज आवाज में) मम्मा! मुझे एक कॉपी चाहिए, अर्जेंट है।

सविता :     ( मिस्टी को देखते हुए शेरनी जैसी आवाज ) अपने बाप से कह। अखबार में उलझने को तैयार हैं खुद उलझन में हमे डालकर।( अखबार पकड़ कर चले आ रहे शंभू को सविता ने आंखे तरेर कर घुरा। उसकी घिग्घी बंध गई और वो जहां का तहां रुक गया।)

लखन :      ( भीगी बिल्ली सी आवाज लेकिन तेज)अब तुम  मां– बेटी पहेलियां न बुझाओ, जो कहना है साफ कहो।( उसने शंभू को इशारे से बुलाया और अखबार ले कर टेबल पर रखा। शंभू वहां से चला गया।)

सविता :    (उलाहने से भरी आवाज) बुढिया कह रही थी कि उसके हाथ– पैर कांप रहे हैं। थरथर्राती रहती हूं बोली। डॉक्टर के पास ले चलो कह रही थी बुढ़िया।(एकटक लखन को देखते हुए) तुम्ही बताओ, एकलौती बेटी कि पढ़ाई छुड़वा कर उस दो दिन कि मेहमान बुढ़िया कि देखभाल करू क्या?(कमर पर हाथ रखकर उसने मिस्टी को लखन के सामने एक झटके से लाकर खड़ा कर दिया)

मिस्टी :  (नरम आवाज) पापा!.... टीचर ने कहा है कि– किसी भी तरह से कॉपी लेनी होगी प्रैक्टिकल एग्जाम के लिए।(लखन का मुंह ताकने लगी)

लखन :    ( मुस्कुराने कि कोशिश करते हुए, हल्की आवाज) तो इसमें भला बड़ी बात क्या है? कितने मे आयेगी कॉपी?(मिस्टी के कंधो को पकड़ कर अपने सामने लाकर लखन ने सवालिया निगाहों से उसे देखा।)


मिस्टी :   (खुशी से भरी आवाज) 60 रुपए में।

सविता :   (गुस्से से भरी आवाज) 60 रुपए में कॉपी आ जायेगी, लेकिन इसकी फटी हुई स्कूल ड्रेस सिलवानी भी तो पड़ेगी। मेरे गहनों का क्या? आज ही फोन पर ऑर्डर दिया था सुबह। सोफा सेट का ऑर्डर दिया है मैंने। हॉल मे जो सोफा सेट है वो पुराना हो चुका है और हमारे घर में बिल्कुल भी नहीं जच रहा है। बुढ़िया ढोंग कर रही है और मै उसे लेकर हॉस्पिटल हरगिज नहीं जाऊंगी और न ही जाने दूंगी आपको। पैसे यूं ही बर्बाद हो जायेंगे बुढ़िया के चक्कर में।( सविता ने तीखी नजरे लखन पर डाली मानो वो उसे खा जायेगी।)


लखन  :     ( तेज आवाज)भाग्यवान ! तो किसने कहा कि बुढ़िया को हॉस्पिटल लेकर जायेंगे? मरने दो। दो दिन कि ही तो जिंदगी बची है।( पिंड छुड़ाते हुए उसने तेज आवाज में कहा जिसे शंभू ने भी सुन लिया। सविता के चेहरे पर मुस्कुराहट सज गई। मिस्टी वहां से दौड़कर दूसरी ओर सीढ़ियों से होते हुए ऊपर के कमरे कि ओर भाग गई।)


सविता :   (प्यारी और मधुर आवाज) रात के खाने में क्या बनाऊं?
लखन :    ( फीकी तरह से हंसी कि आवाज) कचौड़िया, छोले – भटूरे कि जायकेदार सब्जी और खीर के साथ पूड़ी बनाकर रखना और रायता भी ।( अखबार उठाकर पेज पलटते हुए) रात को मेरे बॉस आने वाले हैं डिनर पर।
कोई कमी नहीं होनी चाहिए।

सविता :    ( जोशीली और मीठी आवाज) जी बिल्कुल, मैं किसी भी चीज कि कमी नहीं होने दूंगी। शंभू डाइनिंग टेबल का और  मैं किचन का  सारा काम निपटा लेंगे। लेकिन समय तो बता दीजिए? कितने बजे आ रहे है?
( लखन को देखते हुए वो बोली और गहरी सांस ली।)

लखन :     ( सहजता से) यहीं करीबन 8 बजे आ जायेंगे। डिनर के बाद 9 बजते तक चले भी जायेंगे। अच्छे हैं बॉस, ज्यादा काम नही कराते और व्यवहार भी मिलनसार है उनका। (ही– ही– ही । हंसी कि आवाज आई)

सविता  :    (किचन कि ओर मुखातिब होते हुए) ठीक है मैं जा रही हूं अपना काम निपटाने।( वो चली जाती हैं किचन, जहां पर शंभू बर्तनों को सलीके से जमा कर रख रहा है।लखन ने चैन कि सांस ली और इत्मीनान से अखबार पढ़ने लगा।)

शंभू :       ( धीमे आवाज में) मैम जी, कौनसी सब्जी बनानी है रात के खाने में?

सविता :  ( उसे देखकर आज्ञात्मक आवाज) तू रहने दे। डाइनिंग टेबल वाले रूम को जाकर चमका डाल। तेरे साहब जी के बॉस आने वाले हैं तो घर चमकना चाहिये। अच्छे से टेबल और कुर्सी को साफ करके रख। खिड़की के पास जो कैनवास और फूलों का गमला है उसे भी ठीक कर दियों वरना रात में तुझे भूखा ही सोने को मिलेगा, समझा।( शंभू ने हां में सिर हिलाया और कंधे पर रखा हुआ गमछा पकड़ कर हाथ पोंछते हुए वो डाइनिंग टेबल वाले रूम कि ओर चला गया। सविता खाना बनाने लगी।)


मिस्टी :  (कमर पर हाथ रखे हुए, तेज आवाज)। "बुढ़िया मां! तेरी तबीयत ठीक तो हैं न?"
(एक पुराने से ,छोटे कमरे में खाट पर लेटी हुई दयावंती देवी कि आंख खुली। सामने पोती को देखकर उनके अधरों पर मुस्कान तैर गई।)

दयावंती देवी ( बुढ़िया) :  ( बर्फ –सी सर्द आवाज) तबीयत कहां ठीक रहती हैं रे , इस बुढ़िया कि वृद्ध उमरिया में। डाक्टर साहब से मिल आती। थोड़ी दवाई– दारू होती तो भली चंगी रहती ये बुढ़िया।( आंखे नम हो गईं। पोती ने मुंह टेढ़ा किया और दरवाजे पर दाएं हाथ को टिकाते हुए वो टेढ़ी खड़ी हो गई।)



मिस्टी :  हां– हां– हां ( हंसी से भरपूर आवाज) मेरी मां कि मति मारी गई है क्या? बुढ़िया! तू दो दिन कि मेहमान है और मैं तो बच्ची हूं अभी। पिताजी के पैसे मेरे और मेरी मां के है । तुझ बुढ़िया के लिए भला कौन, पैसे नदी के पानी कि तरह बहायेगा। यहीं पड़ी रह, इसी लायक है तू।
( मिस्टी ने ताना मारते हुए कहा। बुढ़िया के सुर्ख, निर्जीव –सी आंखे उसे निहारने लगी लेकिन कोई भाव नहीं चेहरे पर।)
दयावंती देवी : ( उठकर बैठते हुए, शिथिल आवाज) बेटा– बहू खुश रहे बस, और क्या चाहिए रे इस बुढ़िया को। दावा – दारू होती तो तेरा ब्याह देखकर मर जाती लेकिन अब तो कोई भी नहीं चाहता कि ये बुढ़िया जीवित रहे। सबका भला होगा मृत्यु आ जायेगी अगर इस बुढ़िया को तो।

(दयावंती देवी ने चेहरे पर मुस्कुराहट बिखेरी मानो उसे कोई फर्क नही पड़ता हैं इनके कठोर व्यवहार से। मिस्टी भले ही अपने माता – पिता जैसी है निर्दयी, लेकिन बुढ़िया से उसका थोड़ा लगाव भी हो गया है। माता – पिता से डांट पड़ती तो मिस्टी, बुढ़िया के पास आती। ऊंची आवाज में बुढ़िया को ताने मारती कि– कैसे बेटे को जना है देखो? बहू भी ढंग कि खोज न सकी? बच्चे को भला छोटी गलतियों पर क्यों इतना तना सुनाया जाता हैं, उफ! उफ! दिमाग का दही हो गया। वगैरह,,, वगैरह कहकर वो बुढ़िया पर सारा गुस्सा निकाल कर हल्की हो जाती थी। बुढ़िया कि सामर्थ्यता नही है कि वो प्रतिउत्तर दे सकें। अन्याय के विरुद्ध विद्रोह कर सकें। खुद के बनाए हुए आलीशान घर में ही वो सिर्फ एक पुराने से कमरे में खाट पर पड़ी रहती हैं। पानी को नौकर शंभू पूछता है कभी– कभी क्योंकि उसे घर के बाकी कामों में सविता उलझाए रखती हैं ताकि बुढ़िया अपने ही घर में पानी के लिए तरसे।
मिस्टी धीमे कदमों से चलकर बुढ़िया के खाट के नजदीक आकर खड़ी हो गई।)

मिस्टी :    (थोड़ी उदासी से भरी आवाज) ज्यादा तबीयत बिगड़ी हुई है क्या?

दयावंती देवी :  (होठों पर मुस्कान लिए, आर्द्र स्वर में) नही रे, बस हाथ– पैर में दर्द रहने लगा है आजकल। कमर झुक जाती हैं उठकर चलने को खड़ी होती हूं तो। धुंधला दिखाई देता हैं सबकुछ। गला सुख जाता हैं। शरीर में बल नही रह गया। इस बुढ़िया के शरीर के नाम पर बस झुर्रियों वाली ढीली– ढाली, लटकती हुई चमड़ियां बची है।
( मिस्टी नाक सिकोड़ते हुए बुढ़िया को घूरने लगी।)


मिस्टी :  ( दुत्कारती हुई तेज आवाज) थोड़ी दया करके तबीयत क्या पूछ ली, पूरी कि पूरी कुंडलियां निकालने लगी बुढ़िया। तेरे पर पैसे लगाएंगे न तो हम सड़क पे आ जायेंगे। इससे अच्छा है मर जा ,, मर जा बुढ़िया,,, मर जा।
( वो चीखी और वहां से भाग खड़ी हुई। बुढ़िया के दिल पर मानो किसी ने छुरी चलाई हो।अब तो ऊपर वाले से विनती कर रही है कि –" मुझ बुढ़िया को मौत आ जाए तो बेटा –बहू और पोती खुश रहेंगे।")


( रात हो गई। मिस्टी ने खाना खाया फिर टेरेस पर मोबाईल लेकर चली गई। सॉन्ग सुनते हुए वो टहलने लगी। इधर सविता और लखन बस टकटकी लगाए हुए बॉस का इंतजार कर रहे हैं। 8 बजकर पांच मिनट हो गए हैं। बुढ़िया को खाना तो दूर पानी तक नहीं दिया गया है। ढेर सारे पकवानों को डाइनिंग टेबल पर रखा हुआ है।)

लखन :  (तेज आवाज) शंभू! जाकर बुढ़िया को  आम के आचार के साथ दो रोटी और पानी दे आ। भूखी होगी। बोल देना कि– तबीयत ठीक न होने का ढोंग न करें। वैसे भी वो तो कुछ ही दिनों कि मेहमान है मरना ही तो है एक दिन।( कठोर भाव से लखन ने कहा।उसके चेहरे में पथरीले भाव उभर आए जिसे देखकर सविता के चेहरे पर मुस्कुराहट तैर गई तो वही दूसरी ओर शंभू के दिल में बुढ़िया के प्रति सहानुभूति भाव जागृत हुए। शंभू किचन में जाकर कहे अनुसार आम के आचार के साथ दो रोटी और पानी का जग ले लिया। फिर बुढ़िया मां के कमरे कि ओर सीढ़ियों से होते हुए वो चलता बना।)

(दरवाजे पर दस्तक हुई। सविता और लखन उस ओर गए। दरवाजा खोलने के बाद दंपति के होठों पर जबर्दस्त मुस्कान आई।सामने खीसे निपोरते हुए बॉस नजर आए। औपचारिकताएं पूरी करते हुए बॉस को डाइनिंग टेबल पर ले जाकर बैठने का आग्रह किया गया। बॉस ने गर्वीली मुस्कुराहट के साथ आग्रह को अंगीकार किया।)

बॉस :  (प्रसन्नता से भरी आवाज) बेहद खूबसूरत लखन! मुझे यही आशा थी आपसे।(सफेद रसगुल्ले को देखकर मुंह में आए हुए पानी को गटकते हुए बॉस ने चम्मच पकड़ी।) मेरी पत्नी मायके गई हुई है और आज दिक्कत भी होती खाना बनाने में, सो मुझे लखन ने यह आमंत्रण देकर ठीक ही किया। प्रमोशन कराने का सोच रहा हूं लखन तुम्हारा।
सविता :  (हंसी से भरी आवाज) आप पहले ठीक से खा लीजिए। बाकी बाते तो आराम से हो जायेगी। खाकर बताइएगा कि कैसा लगा मेरे हाथ का खाना?( जुल्फों को कान के दरकिनार करते हुए सविता कुटिलता से मुस्कुराई।)


लखन : (झूठी हंसी कि आवाज) हा– हा –हा ! कई स्टाफ वाले वर्कर्स आपको खडूस बोलते हैं लेकिन आप ऐसे बिल्कुल भी नहीं है। उन लोगो का नज़रिया गलत है लेकिन वे समझते कहां है किसी के स्वभाव को?

बॉस :  ( पूड़ी को खीर कि कटोरी में डुबाते हुए) वो लोग तो ऐसे ही लोफर टाईप के ख्यालात वाले हैं।कोई उनकी बातों में आकर मुझे खडूस समझने लगे तो ये उसकी बेवकूफी होगी। ही– ही– ही– ही।

लखन : ( खंखारकर, नरम आवाज) जी हां, बिल्कुल सही कहा आपने। आजकल तो ऐसे ही लोग समाज में देखने को मिलते है। संस्कार तो रत्ती भर भी नहीं बचा है।( सविता को देखने के बाद टेढ़ी नजर बॉस पर डालते हुए लखन ने समोसा उठाया। सविता पानी के मग को लेकर दो ग्लास में पानी डालने लगी। खाना– पीना हो गया।  लखन और बॉस नए सोफा सेट पर बैठे हुए बाते कर रहे है। सविता को भूख लग आई तो वो चली गई खाना खाने।)

शंभू : ( चिंतित स्वर में) बुढ़िया मां! तुझे तो बुखार चढ़ा हुआ है। चल डॉक्टर के पास हो आते हैं।( बुढ़िया के माथे पर हाथ फेरते हुए शंभू बोला। लेकिन बुढ़िया कुछ कह नहीं पा रही है।)

शंभू : ( रुंधी हुई आवाज) मैं अभी मैम जी और साहब जी से कह आता हूं,फिर डॉक्टर के पास आपको ले जाकर, आपका ईलाज करवा देंगे।
( शंभू दरवाजे कि ओर बढ़ता इससे पहले ही कांपते हुए हाथ उसे अपने सख्त हाथ के ऊपर महसूस हुए। बुढ़िया मां ने अपनी आंखे बड़ी मुश्किल से आधी खोली। सुर्ख होठ कांप रहे है। वे बोलना तो चाह रही है लेकिन मुंह भी मानों चेतन शून्य हो चुका है।)

दयावंती देवी :  ( बेहद हल्की आवाज लेकिन स्वाभिमान से परिपूर्ण) शंभू! इस दयावंती पर दया करके तू ये बात किसी से न कहना। तुझे क्या लगता हैं कि तेरे साहब डॉक्टर के पास इस बुढ़िया मां को लेगेगा? नहीं रे शंभू। बच्चों को जन्म दिया। पालन पोषण किया लेकिन जब वे ही मुझे बोझ समझ रहे है, दुत्कार रहे है तो भला उनसे मैं झूठी आश क्यों लगाऊं कि वो मेरा दवा – पानी कराएगा। इससे अच्छा तो मरना भला है। उनका बोझ हल्का हो जायेगा और मुझे मुक्ति मिल जाएगी। फिर किसी पर बोझ बनकर नही रहूंगी, सब खुशी से जीवन व्यतीत करेंगे अपनी मर्जी से।जा तू उसकी हाजरी बजा, "मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरों न कोई" यहीं सहारा है जिसके सहारे से जी रही थी और अब मरूंगी भी।( गला सूखने लगा और बुढ़िया मां खांसने लगी। आंसू बह कर गालों पर लुढ़क आए। शंभू ने पानी पिलाया। शंभू कि आंखे नम है और हाथ कांप रहे हैं। बुढ़िया मां बुखार से तप रही है और अब तो वे मरणासन्न अवस्था को प्राप्त होने वाली है।)


बॉस :   (मध्यम आवाज) हूं– हूं–हूं! पान है क्या? मैं ऑफिस में भी खाता हूं और हर रोज रात के खाने के बाद भी। बड़ा अच्छा लगता हैं मीठा पान चबाना। मैने तुम्हे भी खाते हुए देखा था एक बार,सो पूछ बैठा।( लखन के कानों के नजदीक अपने अधरोंं को ले जाकर बॉस ने कहा और हाथ मसलने लगा। बॉस के लाल होठों को देखकर ही वो समझ गया था कि जरूर ये पान खाने के शौकीन है और लखन खुद भी पान खाने का आदी हैं। पड़ोस में एक जगह पान कि दुकान है। जहां से शंभू के हाथों लखन पान मंगवाकर सलीके से अपने कमरे के ड्रॉर में रखा रहता है। उसने शंभू को बुलाने के उद्देश्य से नजरे सीढ़ियों कि ओर घुमाई।)

लखन : (शेर– जैसे तेज आवाज) शंभू,,, ओ शंभू! कहां मर गया? मेरे कमरे में जाकर ड्रॉर के पहले वाले खाने में पान रखा हुआ है उसे लेता आ।( घबराहट से शंभू कांपता हुआ सीढ़ियों से उतरा । शंभू , लखन के सामने जाकर उसे भीगी बिल्ली कि तरह सवालियां निगाहों से देखने लगा क्योंकि शंभू का ध्यान बुढ़िया मां कि ओर था, जिसके कारण उसे लखन कि बात सुनाई तो दी लेकिन समझ में नहीं आया। बुढ़िया मां कि हालत देखकर उसके आंखो से परनाले बह निकले थे, आंसू को पोंछना वो भूल गया है। अभी भी आंसू और नम आंखे साफ नजर आ रही है।)


लखन :  (गुस्से से भरी आवाज) बेवकूफ! क्या एक भी काम करना नही आता तुझे? ये आंसू क्यों बहा रहा हैं? तेरे कानों में डांट लगी है क्या? जा,, जाकर मेरे कमरे में ड्रॉर के पहले वाले खाने में पान रखा हुआ है उसे ले आ मेरे बाप।( लखन का चेहरा गुस्से से तमतमाया हुआ देखकर शंभू कि सिट्टी– पिट्टी गुम हो गई। सब कुछ भूल कर वो कमरे कि ओर ऐसे  दौड़ पड़ा मानो कोई पागल कुत्ता उसके पीछे भाग रहा हो। बॉस को देखते हुए लखन ने जबरदस्ती खींसे निपोरे और गुस्से वाले चेहरे पर फीकी मुस्कुराहट बिखेरी।)

लखन : ( नरम और लचीली आवाज) वो,,वो आजकल के नौकर ऐसे ही होते है। जरा सा डांट दो,तो आंसू निकल आते हैं और ना डांटो तो सिर पर चढ़ जाते है। ही –ही– ही।( दोनो ही हंस पड़े। शंभू पान लेकर दौड़ता हुआ आया। बर्तन मांजने का हुक्म देकर लखन गप्पे लड़ाने लगा अपने बॉस के साथ मिलकर। कुछ देर बाद लखन और सविता से विदा लेकर बॉस चले गए। शंभू को खाना खाने के बाद , पूरे घर के  लाईट्स बंद करके सोने को सविता ने आंखे तरेर कर कहा। मिस्टी अपने कमरे में और लखन– सविता अपने कमरे में जाकर सो गए। शंभू भी थक गया था इसलिए सो गया सविता कि हाजरी बजा कर यानि लाईट्स ऑफ करके।)


(अगली सुबह बुढ़िया मां के लिए बेहद दर्दनाक लग रही है।वे मरणासन्न अवस्था में है। कोई नहीं है उसकी खबर लेने वाला। शंभू घर के कामों में व्यस्त हैं। मिस्टी हॉल में सोफे पर बैठे हुए ,अपने प्रोजेक्ट कॉपी को देखते हुए खुश हो रही है। वो सोच रही है कि बुढ़िया मां को नई कॉपी दिखा आए और अपने दिल कि भड़ास निकाल ले। सुबह चाय का कप उसके हाथों फर्श पर गिर कर टूट गया था जिसके चलते मां और पिताजी से उसे खूब डांट पड़ी थी। शंभू ने लखन के कहने पर स्टेशनरी दुकान से वो 60 रूपए वाली कॉपी खरीद लाई और मिस्टी को दे दिया।वो उठी और सीढ़ियों से होते हुए बुढ़िया मां के कमरे कि ओर दौड़ पड़ी। लखन ऑफिस जाने के लिए तैयार हो रहा है। सविता गलीचे में चेयर पर बैठी हुई अपने नाखूनों में नेल पॉलिश चढ़ाने में व्यस्त हैं।)

मिस्टी :( हल्की तेज आवाज) बुढ़िया मां! देख मेरा कॉपी कितना अच्छा है। तू जल भुन रही होगी मुझे खुश देखकर है न?( वो एकदम से खाट के सामने खड़ी होकर, कॉपी हिलाते हुए बुढ़िया मां को दिखाने कि कोशिश करने लगी। परंतु बुढ़िया मां कि सांसे धीमी गति से चल रही है और आंखे आधी खुली हुई हैं जिससे उन्हें सबकुछ धुंधला दिखाई दे रहा है। मुंह खोल ही नहीं पा रही हैं बस मन ही मन में भगवान का सुमिरन कर रही हैं।)

( मिस्टी को बुढ़िया मां का यूं चुप रहना रास न आया। उसने कॉपी को गुस्से से मरोड़ते हुए एक स्टूल के ऊपर फेंक दिया। उसी स्टूल में बैठकर बुढ़िया मां अक्सर अपने हाथ– पैर पर तेल से मालिश करती थी। लेकिन तेल भी अब सविता ने देना बंद कर दिया था जिसके बाद खाट ही बुढ़िया मां को रूचने लगी।)

मिस्टी : (गुस्से से भरी आवाज) बुढ़िया उठ, आंखे खोल और देख तेरी पोती खड़ी है। कुछ क्यों नहीं बोल रही है? मैं लड़ाई करने आई हूं, चल उठकर बैठ।( नाक –मुंह सिकुड़ते और फुलाते हुए वो बुढ़िया मां के कंधो को हाथों से पकड़ कर हिलाने लगी। लेकिन बुढ़िया मां के मुंह से एक शब्द भी न निकला। मिस्टी ने देखा कि सांसे कम चल रही है और शरीर ठंडा पड़ता जा रहा है।वो डर गई और वहां से भागते हुए सीढ़ियों से उतरकर हॉल में पहुंची और बुरी तरह से कांपते हुए " बुढ़िया मां, बुढ़िया मां," चिल्लाने लगी। लखन, सविता और शंभू हॉल में भागे आए।

लखन : ( दांत पीसते हुए) क्या हुआ? 
सविता : (नाराजगी भरे स्वर)क्यों गला फाड़कर चिल्ला रही हैं?( शंभू मूक दर्शक बना हुआ हैं क्योंकि उसकी हैसियत नौकर कि है। )

मिस्टी :( रोनी आवाज) वो,, बुढ़िया मां कुछ बोल नहीं रही है। उसका शरीर ठंडा पड़ता जा रहा है,,वो,,,, मरने वाली है।( लखन और सविता के चेहरे पर परेशानियों वाले भाव उभरे। शंभू का दिल धक्क– सा करके रह गया। चारों बुढ़िया मां कि ओर भागे।)

( खाट पर पड़ी हुई अंतिम सांसे ले रही बुढ़िया मां को देखकर जहां शंभू के नेत्र आर्द्र हो गए वहीं लखन और सविता के चेहरे पर सुकून और गंभीरता के भाव नजर आए। मिस्टी को चुप होने को कहा सविता ने।)
लखन :( रुंधी हुई लेकिन फर्राटेदार आवाज) कार निकालो सविता,अभी हॉस्पिटल चलेंगे। मैं ड्राइव करूंगा और तुम इनके पास बैठना। चाबी लेकर जल्दी जाओ।(सविता को लखन ने घुरा लेकिन बदले में सविता ने आंखे तरेर कर गुस्से वाला चेहरा बनाया।)
सविता : (नाराजगी और गुस्से से भरी आवाज) कार के सीट को बदलवाकर नया करवाया है पैसे खर्च करके। इतने अच्छे कार में बुढ़िया को बिठाओगे। ये नहाई नही है बहुत दिनों से। अपवित्र हो जायेगी कार, और ये कार में मर गई तो और भी ज्यादा लेने के देने पड़ जायेंगे। एंबुलेंस बुलाना चाहिए हमे।( अड़ियल रवैया दिखाते हुए सविता ने घूरते हुए लखन को देखा खा जाने वाली निगाहों से तो वो सकपका कर रह गया।)
लखन : (गंभीरता युक्त आवाज) शंभू जाकर एंबुलेंस सेवा को जल्द से जल्द यहां आने को फोन करके कहो। मेरे कमरे में ड्रॉर में एक कॉपी है उसमे नंबर लिखा हुआ है। टेलीफोन से फोन करके तत्काल कहों।( लखन के कहते ही शंभू दौड़ पड़ा।)

सविता : ( सवालिया लहजे से) एंबुलेंस  के वर्कर्स स्ट्रेचर लेकर इस कमरे में आएंगे क्या? 
लखन :  (बनावटी गुस्से से भरी आवाज) तो क्या मेरे कमरे में जायेंगे?(सविता को देखने के बाद वो  माथा पीटने लगा।)
सविता : (समझाने के अंदाज में) मेरा कहने का मतलब ये है कि ये कमरा बहुत गन्दा दिख रहा है और खाट पर बुढ़िया पड़ी हुई है। इस कमरे को छोड़कर बाकी कमरों में पलंग रखे हुए है। हॉल भी बहुत सुंदर तरह से सजा हुआ है। ये कमरा हमारे घर के कमरे जैसा नही लगता क्योंकि बुढ़िया रहती हैं यहां। कौन सफाई करे इसके कमरे की? मकड़ी के जाले फैले हुए हैं और गंदगी सो अलग।(नाक सिकुड़कर माथे पर हाथ रखकर वो चारों ओर कि गंदगी को देखने लगी।)
लखन : (गुस्से से भरी आवाज) पागल हो गई हो क्या? बुढ़िया मरने को है और तुम्हे घर सजाने कि पड़ी है। पता नहीं कैसे इससे शादी हो गई। अक्ल से पैदल है ये पूरी तरह से।(आधे शब्दो को बुदबुदाते हुए लखन ने आंखे फेर ली।)
सविता : (गुस्से से भरी आवाज) पागल तो तुम हो गए हो, जो तुम्हे असल बात समझ में नहीं आ रही हैं।
मिस्टी : (चीखती हुई आवाज) शटअप! आप दोनो अभी भी, इस सिचुएशन में भी लड़ रहे है। कैसे लोग है आप दोनो।( मिस्टी ने सिर पकड़ लिया और गुस्से से नाक लाल हो गई।)

सविता : (धीमे स्वर में समझाते हुए) अगर एंबुलेंस वर्कर्स स्ट्रेचर लेकर इस कमरे में आए तो उन्हे समझने में देर नहीं लगेगी कि– हम लोग बुढ़िया को यहां गंदे कमरे में रखते हैं। इमेज खराब हो जायेगी हमारी। मीडिया वाले तिल का ताड़ बनाकर सवाल पे सवाल उठाएंगे। कहेंगे, " पूरा घर साफ – सुथरा है , सुंदर सजाया हुआ है लेकिन अपनी सगी मां को गंदे कमरे में बंद करके रखता था। थूं–थूं होगी आपकी और बॉस के सामने भी बेज्जत होना पड़ेगा।( एक– एक शब्द पर जोर डालते हुए और आंखो कि पुतलियां नचाते हुए सविता ने कह डाला। लखन और मिस्टी को अब समझ में आया कि सविता किस बात कि ओर इशारा कर रही हैं।)
लखन : ( गंभीरता से भरी आवाज) हॉल में सोफे पर लिटा देते हैं ले जाकर। फिर आराम से एंबुलेंस सेवा कर्मी स्ट्रेचर पर लिटाकर बुढ़िया को ले जा सकेंगे और कोई बदनामी भी नहीं होगी हमारी।(सविता के चेहरे पर सुकून का भाव आया। तीनों मिलकर बुढ़िया मां को उठाने लगे। तभी हाफते हुए शंभू आया।)

शंभू :  (तेज लेकिन कंपित आवाज) एंबुलेंस जल्दी ही आ जाएगी।

( शंभू ने भी उन तीनो कि सहायता की। हॉल में सोफे पर बुढ़िया को लिटाया गया। अंतिम श्वांसे चल रही हैं। नेत्र आर्द्र है। लखन और सविता नजरे दरवाजे पर टिकाए हुए बैठे हैं। शंभू को कुछ सूझ नहीं रहा है वो आंख बन्द करके भगवान से बुढ़िया मां के लिए दुआएं मांग रहा हैं और इसके अलावा कुछ और तो वो कर ही नही सकता।)

लखन : (हल्की आवाज) कोई आखिरी ईच्छा हो तो कहो?( बुढ़िया मां कि ओर नजरे इनायत करके उसने आश भरी निगाहें डाली। बुढ़िया मां कुछ बोल नहीं पा रही है।)

नजरे साथ छोड़ गई, कोई कुछ सुनता नही ,
अपने ही बच्चे पराए हो गए, मुझे  "मां " कोई कहता नही।।

( बुढ़िया मां के प्राण पखेरु उड़ गए। शरीर बर्फ कि मानिंद ठंडी पड़ गई। तभी खुले हुए दरवाजे से दो लोगों ने प्रवेश किया।)

स्ट्रेचर पकड़ा हुआ कर्मचारी :  (तेज आवाज गतिशीलता युक्त) कहां पर है मरीज?

( लखन, सविता, मिस्टी और शंभू कि आंखे नम हो गईं। बुढ़िया मां के बंद नेत्र देखकर। वे चल बसी इस निर्दयी संसार को छोड़कर और फिर पर्दा गिरता है।)



।।समाप्त।।


Pawan Pandit

Pawan Pandit

बहुत ही खूब निशब्द आपकी ए कांकी पढ़कर मेरे आंखो मे आंसू आ गए बहुत ही सुन्दर और एकदम सच कहा है

12 सितम्बर 2021

Jyoti

Jyoti

12 सितम्बर 2021

आपका आभार, आपने बहुमूल्य टिप्पणी देकर मेरा उत्साह वर्धन किया है।

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रचनाएँ
(एकांकी) बुढ़िया मां...।
5.0
एक बूढ़ी मां का दर्द।

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