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तेरे मेरे बीच में बस प्यार रहने दे 💞...

12 फरवरी 2023

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 यह कहानी पूरी तरह से काल्पनीक है और ये सिर्फ मनोरंजन के लिए लिखा गया है । इस का किसी के लाइफ से कोई लेना देना नहीं हैं । हाँ ! अगर इस कहानी से आपको कुछ अच्छा सिखने को मिले , तो आप उसे अपने अंदर जरूर उतार सकते है | 😊 ये मेरी खुशनसीबी होगी ... जो आपको मेरी कहानी से कुछ सिखने को मिलेगा ।🤗
अच्छा तो अब हम चलते है अपनी कहानी की ओर ...🚶🏻‍♀️🚶🏻‍♀️

             ये लव स्टोरी है शिवेश और दिक्षा कि। जो बिल्कुल ही मुख्तलिफ है एक दूसरे से । चाहें वो दौलत हो ... शोहरत हो ... या चाहें कुछ भी हो ...  हर चिज़ में ... शिवेश दिक्षा से बहुत आगे था । 
शिवेश आसमान था तो दिक्षा जमीन थी ... लेकिन फिर भी दोनों को प्यार हो गया एक दूसरे से । बेइंतहा मोहब्बत करने लगे थे वो एक दूसरे से । एक दूसरे को देखे बिना चैन नहीं आता था इन्हें । ऑफिस हो , कैंटिन हो , मिटिंग हो या कभी किसी काम से कही बाहर जाना हो । हर जगह ये दोनों साथ जाते थे ।  सुबह 8:30  से शाम 6 बजे तक हर वक्त साथ रहते थे । ऑफिस में भी सबको पता चल गया था , कि दोनों साथ है । सब खुश भी थे दोनों के लिए । इनके प्यार को देख कर सब लोग यहीं कहते कि काश ! हमरा भी पार्टनर ऐसे ही मिलता । कितना खुश रहते है दोनों एक साथ । 
           वक्त हंसी - खुशी के साथ गुजरता गया । लेकिन ये खुशी के दिन दोनों के लाइफ में ज्यादा दिन तक नहीं रह सका । दोनों अलग हो गए ... एक दूसरे से ... फिर कभी दोबारा ना मिलने के लिए शायद । लेकिन तकदिर में क्या लिखा है ... इन दोनों में से किसी को कुछ भी पता नहीं था । 
    शिवेश अपने ही लोगों से छला गया था , उसको बर्बाद करने के लिए , उसके अपने उसके साथ एक बहुत बड़ा और गंदा खेल खेले थे । शिवेश को और उसके कंम्पनी को बर्बाद करने के लिए , वो लोग उससे ( शिवेश से ) ये बताए कि (दिक्षा ) जिसे तुम पागलों की तरह प्यार करते हो । वो दरअसल तुमसे नहीं ... तुम्हारें दौलत से प्यार करती है ।
       देखा नहीं हैं कितने गरीब घर से ताल्लुक रखती है वो ( दिक्षा )  । ऐसी लड़कियां ही तुम्हारे जैसे अमीर और हैंडसम लड़के को अपने जाल में फंसाती है । ताकि ये आगे की अपनी पूरी जिंदगी शान - वो - शौकत से गुजार सके । दिक्षा जैसी यहां हजारों लड़किया है , जो तुम जैसे लड़के को अपनी मासूमियत दिखा कर अपने इशारो पर नचाती है । 

       ऐसी  हजारों बाते .... वो रोज शिवेश से करने लगे थे । जो बात दिक्षा कभी सपने में भी नहीं सोच सकती थी । सिर्फ  उसे और उसकी कम्पनी को जड़ से उखाड़ फेकने के लिए । 
        हर रोज एक नई चाल चलने लगे थे , शिवेश  को तोड़ने के लिए । बिना ये सोचे की शिवेश उन्हे दिल से अपना मानता है और उन्हें कई बार मुस्किलो से बाहर निकाला है ।
    वो लोग निरन्तर उसे तोड़ने में लगे रहें , बिना ये सोचे समझे की वो कितना हर्ट हो रहा होगा । उसे कितनी तकलीफ हो रही होगी , अपने ही प्यार के बारे में ऐसा सुनकर । हालांकि शिवेश को कभी इनके ऐसी बातों पर भरोसा नहीं हुआ था । उसे पता था कि उसकी दिक्षा ऐसी बिल्कुल भी नहीं है ।  लेकिन कहते है ना ... " अगर हम किसी बात को हर वक्त सुनते रहे , चाहे वो गलत हो या चाहे सही । उसका असर हम पर धीरे - धीरे होने ही लगता है । जिसके वजह से हम निखर भी जाते है तो कभी हम बिखर भी जाते हैं . . . बर्बाद हो जाते हैं । " बस इसी मकसद से वो लोग शिवेश से दिक्षा की बुराइयां किया करते थे हर वक्त , कि कभी तो हम कामयाब हो जायेगें शिवेश को बुरी तरह से बर्बाद करने में । 


              शिवेश की ये बात बहुत अच्छी तरह से पता थी उन्हें , कि शिवेश जिससे भी प्यार करता हैं और अपना मानता है . . उन पर वो बहुत विश्वास करता हैं । किसी के उनके बारे में बुरा - भला कहने भर से वो उनसे अपना ताल्लुक एक झटके से खत्म नहीं करता हैं । वो बात के तह तक जाता है . . वो एक मौका देता हैं । खुद को और उस इंसान को जिसके प्रति लोग उसे भड़का रहे होते हैं । ताकि जो गलतफहमी है वो दूर हो जाए या जो सच है उसका पता चल जाए । 

अपने मकसद में जल्दी कामयाब होने के लिए , वो लोग दिक्षा की कोई भी एक कमजोरी ढूंढने में लगे थे । जल्दी ही उन्हें दिक्षा कि  एक कमजोरी का उन लोगों को पता चल गया ।  ये कि दिक्षा जिसे  अपना मानती हैं , उनसे वो तब दूरी बना लेती है ... जब अगर उस इंसान ने गलती से भी दिक्षा पर बेवजह शक किया हो या ऐसा कोई भी सवाल किया हो । जो वो कभी कर ही नहीं सकती हैं उस इंसान के साथ ।   
     बस इसी वजह से वो लोग शिवेश को लगातार भड़का रहे थे दिक्षा के प्रति । ताकि शिवेश उबकर दिक्षा से घटिया किसम का सवाल करे और दिक्षा उसे छोड़ दे , और दिक्षा का शिवेश के छोड़ने का मतलब था उसकी बर्बादी ... |

          लागातार ऐसी बाते सुन - सुन कर शिवेश का दिमाग फटने लगा था । उसका दिल और दिमाग अब हमेशा भारी - भारी सा रहने लगा था । पहले दिन से ही वो ये सारी बाते अपने तक ही रखा था । उसने दिक्षा से कभी भी उसके बारे कहीं गयी एक भी बात उसे नहीं बताया था । वो दिक्षा पर बहुत भरोषा करता था ।
      एक दिन ऐसा भी आया शिवेश के जिंदगी में .... वो पागल हो रहा था सारी बाते सोच - सोच कर । वो इन सब बातो को अब मजिद बर्दास्त नहीं कर सकता था । नतिजा ये हुआ कि वो खुद को मजिद नहीं  रोक नहीं सका और वो दिक्षा के पास गया और उससे वो सारा सवाल किया , जो दिक्षा सपने में भी नहीं कर सकती थी । दिक्षा तो बस शिवेश को देखती रही ... देखती रही ... लागातर देखती रहीं । 
     आज उसके  दिल को ढेस पहुंचा था । वो अंदर से धीरे - धीरे टूट रही थी । शिवेश के पूछे गए हर सवालों ने उसे टुकड़े - टुकडे कर दिए थे । वो शिवेश के किसी भी सवालों का जवाब नहीं दि । 
बस वो एक खामोशी की चादर अपने ऊपर ओढ़ें खड़ी रहीं । शिवेश ने हजारों सवाल किया और मिन्नतें भी कि , दिक्षा से कि दिक्षा Plz बता दो मुझे ... कुछ कहो मुझसे ... कहों कि ये सब तुमने नहीं किया है . . . Plz कह दो ...
       लेकिन दिक्षा चुप रही ... बिल्कुल चुप ... ऐसे जैसे उसने कुछ सुना ही नहीं हो । उसके दिमाग में एक ही बात चल रही थी ... वो ये कि शिवेश को उस पर भरोसा नहीं है . . . या शायद कभी मुझ पर उसने भरोसा ही नहीं किया हो ... ! ये भी तो हो सकता है । इसके इन बातों से तो यहीं लग रहा है । 
         दिक्षा की चुप्पी को शिवेश ने गलत समझा , उसे लगा शायद उससे जो बात कही गयी है , उनलोगों के द्वारा दिक्षा के बारे में .... वो सब सही है । शिवेश कुछ देर तक दिक्षा के बोलने का इंजार करता रहा । वो अपने मन में ये कह रहा था कि "तुम एक बार सिर्फ एक बार अपने मुंह से कह दोगी , तो मैं मान जाऊंगा । " 
       लेकिन जब दिक्षा ने कुछ भी नहीं कहा तो वो उसके तरफ एक उदास भरी नजरों से देख कर वहां से अपना भारी मन लिए चला गया । 
   हमेशा हमेशा के लिए ... शायद दिक्षा के जिंदगी में फिर कभी वापस ना आने के लिए । 
उसका आज फिर लोगों से विश्वास उठ गया । वो अपने किस्मत को कोश रहा था और सोचे जा रहा था , कि आखिर मेरे साथ ही हमेशा ऐसा क्यों होता हैं . . . ? क्यों मै जिसको अपना मानता हूँ , जो मुझे अच्छा लगता है , और जिसपर मैं विश्वास करना शुरू करता हूँ । वो मेरे साथ ऐसा क्यों कर जाता हैं ? क्यों धोखा दे जाते हैं हर बार ? ? क्यों ... क्यों ... आखीर क्यों मेरे साथ ही होता है ये सब ? पहले घरवाले , फिर दोस्त और अब दिक्षा भी यहीं की मेरे साथ । सब को मेरे दौलत से ही प्यार है ... मुझसे नहीं । क्या मैं किसी के प्यार करने के लायक नहीं हूँ ? क्यों कोई मुझे अपना नहीं मानता है ? क्या कमी है मुझ में ? 
   ऐसे ही हाजारों सवाल उसके जेहन में कौध रहे थे । 

दोनों ही अपनो के सताये हुए थे । अब वो अलग हो गए एक दूसरे के जिंदगी से ।
दीक्षा शिवांश की कंपनी को छोड़ दी । वह पूरी तरह से टूट चुकी थी । महीनों तक वह बीमार पड़ी रही । बिल्कुल कमजोर हो गयी थी । ना खाना खाती थी ना पीती थी । गुमसुम सी वह अपने बिस्तर पर पड़ी रहती थी । किसी से बात भी नहीं करती थी । घर में किसी को भी अपने इस हालत की वजह नहीं बताई थी । सबने उससे बहुत इसरार किया उसके इस हालत के बारे में जानने के लिए , मगर फिर भी वो नहीं बताई कि उसने कंपनी क्यों छोड़ा और इतनी उदास और बीमार कैसे हो गई । 
      महीनों तक अपने घर में एक ही बिस्तर पर पड़े पड़े जब वो उब गई , तो उसने अपनी एक नई जिंदगी की शुरूआत किया । हर चीज को पीछे छोड़ कर और भूल कर , जो उसके साथ माजी में हुआ था । 
       दीक्षा अपनी पुरानी यादों को भूलने के लिए कोई भी काम जल्दी से जल्दी शुरू कर देना चाहती थी । उसने कई कंपनियों में अप्लाई किया , यह सोच कर कि इसमें से किसी एक कंपनी में मेरा जॉब तो लगी सकता है । 

दो तीन दिन बाद एक कंपनी में उसे जॉब मिल गई । दीक्षा वहां फिलहाल के लिए असिस्टेंट मैनेजर की जॉब शुरू कर दी । यूं तो उसे असिस्टेंट की असिस्टेंट बनना बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था , लेकिन मजबूरी में वह यह जॉब कर रही थी । 
      
      शिवेश कि भी हालत कुछ ठीक नहीं था , वो अब कंपनी में हो कर भी नहीं होता था । उसका किसी भी काम में मन नहीं लग रहा था ।
 जब से वह दीक्षा से अलग हुआ था , तब से उससे एक भी डिजाइन अच्छा से नहीं बन पाया था । बहुत कोशिश करता था , ड्रॉ करने के लिए , लेकिन उसके सामने हर बार दीक्षा का चेहरा आ जाता था और वो तब गुस्से से पेन फेंक देता था तो कभी कागज फाड़ कर फेंक देता था । 
          शिवेश के कंपनी में उससे सब डरने लगे थे , क्योंकि वो हर वक्त गुस्से में रहता था । 

वक्त गुजरता गया ... और इस गुजरते वक्त के साथ दीक्षा और शिवेश के बीच आयी दूरियां और भी बढ़ती चली गई । 
      एक ही शहर में होने के बाद भी लगभग 8 या 9 माह तक दोनों एक दूसरे से नहीं मिले । यहां तक कि शिवेश को यह खबर भी नहीं था कि दीक्षा कहां काम करती है , या करती भी है या नहीं । 
       शिवेश को लगता था कि दीक्षा उसे अब भूल चुकी होगी शायद , सिर्फ मैं ही उसे याद करता हूँ और दीक्षा को लगता कि शिवेश उसे अब तक भूल चुका होगा शायद , सिर्फ मै ही उसे याद करती हूँ । 
         गुजरते वक्त के साथ शिवेश को अपने गलती का एहसास धीरे - धीरे होने लगा । कि वो चंद घटियां लोगों के बातों में आकर दीक्षा को दोषी मान लिया और उस पर ना जाने कितने गंदे और भदे किसम के इल्जाम लगा दिया । 
        वह बहुत पछता रहा था अपनी गलती पर । को सोच रहा था कि कैसे मैंने दीक्षा के बारे में इतना घटियां बात सुन कर चुप रह गया । अगर उस समय मैं उनलोगों जवाब दे देता तो आज दिक्षा यूं मुझसे दूर ना होती ... मैं क्यों नहीं समझ पाया उस समय कि ये लोग मेरी कंपनी को और मुझे बर्बाद करने के लिए इतना गंदा खेल खेल रहे थे मेरे साथ । 

       


क्रमशः

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