बैसाख का महिना आने ही वाला है , फसलों की कटाई शुरू हो जाएगी। ऐसे में नागार्जुन की कविता "फसल" पढ़े बिना आप रह नहीं सकते | गॉव से जुड़े लोगों के दिल को छूने वाली है ये कविता -
एक के नहीं, दो के नहीं,
ढेर सारी नदियों के पानी का जादू:
एक के नहीं, दो के नहीं,
लाख-लाख कोटि-कोटि हाथों के स्पर्श की गरिमा:
एक के नहीं, दो के नहीं,
हज़ार-हज़ार खेतों की मिट्टी का गुण धर्म:
फसल क्या है?
और तो कुछ नहीं है वह
नदियों के पानी का जादू है वह
हाथों के स्पर्श की महिमा है
भूरी-काली-संदली मिट्टी का गुण धर्म है
रूपांतर है सूरज की किरणों का
सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का!