नई दिल्ली: आज अक्षय तृतीया है. साल का सबसे शुभ दिन. मान्यता है कि इसी दिन परशुराम का जन्म हुआ था. इसलिए आज परशुराम जयंती भी मनाई जाती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि परशुराम कौन हैं और उनका महत्व क्या है.
कौन थे परशुराम
परशुराम का जन्म वैशाख शुक्ल तृतीया को हुआ था. इसलिए अक्षय तृतीया के दिन ही इनका जन्मदिवस मनाया जाता है. परशुराम त्रेता युग के एक मुनि थे. उन्हें भगवान विष्णु का छठा अवतार कहा जाता है. दरअसल, उनके पिता भृगुश्रेष्ठ महर्षि जमदग्नि और पत्नी रेणुका ने संतान प्राप्ति के लिए एक पुत्रेष्टि यज्ञ किया. इससे प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया था. इसके परिणामस्वरूप ही छठे अवतार के रूप में भगवान विष्णु का जन्म हुआ, जिसे बाद में परशुराम कहा गया.
परशुराम वीरता के सूचक माने जाते हैं. उन्होंने रामायण और महाभारत दोनों ही युगों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. परशुराम बहुत बड़े शिव भक्त थे. सीता के स्वयंवर में जब भगवान राम से शिवजी का पिनाक धनुष टूट गया था तब परशुराम बहुत क्रोधित हुए थे.
परशुराम का अर्थ
परशु का अर्थ होता है कुल्हाड़ी और राम विष्णु के अवतार हैं. परशुराम को भगवान शंकर से वरदान में परशु मिला था और वह भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं, इसलिए उन्हें परशुराम के नाम से पुकारा गया. वह विष्णुजी और रामजी की तरह ही शक्तिशाली और पूजनीय माने जाते हैं. परशुराम को रामभद्र, भार्गव, भृगुपति, भृगुवंशी, जमदग्न्य के नाम से भी जाना जाता है.
कैसे मिला था परशु का वरदान
परशुराम का जन्म ब्राह्मण कुल में हुआ था. लेकिन उनमें क्षत्रिय जैसी युद्ध रुचि थी. इसलिए उनके पूर्वज च्यावणा भृगु ने भगवान शंकर की तप करने की आज्ञा दी. परशुराम ने भगवान शंकर की तपस्या शुरू कर दी. भोलेनाथ परशुराम की तपस्या से प्रसन्न हुए और उनके सामने प्रकट हुए. परशुराम ने उनसे युद्ध में निपुध होने की कला और दिव्य अस्त्र वरदान स्वरूप मांगा. शिवजी ने उन्हें वरदान स्वरूप परशु दिया, जिसे फरसा या कुल्हाड़ी भी कहा जाता है.
ऐसी मान्यता है कि परशुराम ने भगवान शंकर से ही कठिनतम युद्धकला ‘कलारिपायट्टू’ की शिक्षा प्राप्त की थी. उन्हें विजया नामक धनुष कमान भी वरदान स्वरूप प्राप्त हुआ था.