पिछले दिनों एक अंधेरी रात में भारत के ऊपर से एक उड़नतश्तरी गुज़री. उसने कोई अजीब ढंग का वायरस हमारे देश पर छिड़का. उससे हुआ ये कि एक बहुत बड़ा तबका मूर्खता की चपेट में आ गया. मैं मूर्खता जैसा तीखा शब्द इस्तेमाल कर रहा हूं लेकिन यकीन कीजिए ये ज़रूरी है. जैसा कि आप जानते ही होंगे इंडिया में दो प्रमुख टीमें हैं. एक हिंदुओं की टीम और एक मुसलमानों की टीम. बाकी भी हैं लेकिन उन्हें कोई इतना भाव नहीं देता. असल सांस-रोकू ट्वेंटी-ट्वेंटी मैच तो इन्हीं दो टीमों में चलता रहता है. हम सीधे-सीधे धर्मों का नाम ले रहे हैं क्योंकि टीमों के गठन का आधार ही मज़हब है. बहरहाल, दोनों ही टीमों में ऐसे मेंबर्स बहुत ज़्यादा हो गए हैं जो दूसरी पार्टी से ज़्यादा बड़ी मूर्खता दिखाने की कसम खाए हुए हैं.
कठुआ रेप केस से तो सारा हिंदुस्तान ही परिचित है. अभी पिछले दिनों रेप की एक और घटना ग़ाज़ियाबाद में हुई. एक दस-ग्यारह साल की लड़की दिल्ली से गायब हुई. गाज़ियाबाद के एक मदरसे में मिली. इस केस में पुलिस ने एक मौलवी और 17 साल के एक नाबालिग़ लड़के को गिरफ्तार कर लिया. पॉक्सो एक्ट में केस रजिस्टर कर लिया गया है और आगे की कार्रवाई जारी है. यहां से शुरू होती है पहली मूर्खता.
कुछ लोगों ने एक हैशटैग चलाना शुरू किया. जस्टिस फॉर… आगे लड़की का नाम लिखा था. जबकि ऐसे केसेस में लड़की का नाम छुपाया जाता है. उनका ऐतराज़ ये था कि कठुआ वाली बच्ची के लिए प्रदर्शन करने वाले ग़ाज़ियाबाद की बच्ची के बारे में क्यों नहीं बोल रहे? सोशल मीडिया पर ताने देती पोस्ट की झड़ी लग गई.
जो चीज़ इन लोगों की समझ में नहीं आई वो ये कि ऐसे तमाम प्रदर्शनकारी किसी सिलेक्टिव बच्ची के लिए नहीं खड़े थे. वो उस मानसिकता का विरोध कर रहे थे जो आरोपियों की हिमायत कर रही थी. कहीं दबी-छिपी ज़ुबान में तो कहीं खुल्लम-खुल्ला. इसीलिए तमाम संवेदनशील लोगों ने ज़रूरी समझा कि इस मेंटेलिटी का पुरज़ोर विरोध होना चाहिए. गाज़ियाबाद केस में ऐसा नहीं था. यहां कोई आरोपियों के सपोर्ट में नहीं था. पुलिस ने एक्शन ले लिया था और आगे भी जो कार्रवाई होनी है वो समय से हो ही जाएगी. इसीलिए इस केस में सिलेक्टिव आउटरेज का ताना वैलिड नहीं था.
बहरहाल, इस ताने की काट एक और तरीके से निकाली गई. ये तरीका घिनौना है. मुस्लिम समाज के कुछ लोगों ने सोशल मीडिया पर अपना हैशटैग शुरू किया. इसमें वो भी लड़की के लिए इंसाफ ही मांग रहे हैं. लेकिन अलग तरह का. लड़की के नाम के आगे भाभी लिखा जा रहा है. कहा जा रहा है कि लड़की का अपहरण नहीं हुआ था बल्कि वो प्रेम-संबंधों के चलते खुद आई थी. और जब ये प्रेम सबंधों का मामला है तो लड़की की लड़के से शादी कराकर इंसाफ किया जाए. कहने के लिहाज़ से ये एक बेहद घटिया बात है. अव्वल तो दस साल की लड़की की कोई प्रेम कहानी नहीं होती. वो नाबालिग़ है. इस मुल्क के क़ानून में नाबालिग़ के साथ किसी भी तरह की ज़बरदस्ती को सज़ा के काबिल गुनाह माना गया है. किसी भी सूरत में उन लोगों को डिफेंड नहीं किया जा सकता, जो इतनी छोटी बच्ची को उसके घर से दूर ले गए. शादी करवाना तो बहुत दूर की बात है.
इस तरह की तमाम पोस्टस का जो सुर था वो निहायत ही ओछा था. जैसे किसी ट्रेजेडी में कोई मज़ा ढूंढ रहा हो. मैंने इस वीडियो की शुरुआत में ही जो मूर्खता वाली बात कही थी वो यूं ही नहीं थी. ये जाहिल लोग समझ ही नहीं रहे हैं कि अपने इस टुच्चेपन से वो मुल्क के पहले से ख़राब माहौल को और भी बिगाड़ रहे हैं.
कुछ लोगों का सेकुलरिज्म सिर्फ इस बात में होता है कि उन्होंने भाजपा को वोट नहीं दिया. महज़ भाजपा विरोधी होकर वो खुद को सेक्युलर साबित कर लेते हैं. असल धर्मनिरपेक्षता से इनका दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं होता. होते ये भी साम्प्रदायिक ही हैं, बस इनकी साम्प्रदायिकता का रंग अलग होता है. इन लोगों की समझ में ये नहीं आ रहा कि ऐसी बेशर्म मांग खड़ी करके ये लोग उन तमाम लड़ाइयों को कमज़ोर किए दे रहे हैं जो हर मज़लूमों के हक़ में लड़ी जाती है. ये लोग भूल गए कि कठुआ वाली लड़की के लिए सड़क पर उतरने वाली भीड़ में ज़्यादातर लोग हिंदू ही थे.
इनका ये हैशटैग, ये कैम्पेन उन लोगों के साथ अन्याय है. जो लोग जो इस बात के लिए लड़ रहे हैं कि राष्ट्रवाद के, धार्मिक प्रतीकों के नाम पर मुल्क में कोई नाइंसाफी न हो जाए, उनका सर आप लोगों ने शर्म से झुका दिया है. आपके इस घिनौने बर्ताव ने उनकी स्थिति असहज कर दी है. वो किस मुंह से आप लोगों के लिए खड़े रहेंगे जब आप खुद ट्रोलर्स की भूमिका में हैं. ज़रा थम के सोचिएगा ज़रा.
Disgusting Campaign is running on social media for Ghaziabad rape victim girl