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फिर भोर एकाएक

7 जुलाई 2022

16 बार देखा गया 16

‘भई, आज हम बहुत उदास हैं।’

‘क्यों? भूल गये या क्या सूख गये

आनन्द के वे सारे सोते

जो तुम्हारे इतनी पास हैं?’

‘हैं, तो, पर दीखें कैसे, जब तक

आँखों में तारा-रज का अंजन न हो?’

‘आँखें तुम्हारी तो स्वयं धारक हैं

उन के बारे में ऐसा मत कहो!’

‘सोते हैं तो सोते क्यों हैं? उमड़ते क्यों नहीं

कि हम अंजुरी भर सकें?

चलो, न भी बुझे प्यास, न सही 

ओठ तो तर कर सकें?

‘भई, एक बार धीरज से देखो तो 

उस से दीठ धुल जाएगी।

सोता है सोया नहीं, झरना है, झरता है 

देखो भर : अभी एक फुहार आएगी

बुझ ही नहीं, भूल भी जाएगी प्यास

‘हम नहीं, हम नहीं; हम हैं, हम रहेंगे उदास!’

यों बात (कुछ कही, कुछ अनकही)

रात बड़ी देर तक चलती रही,

चाँदनी अलक्षित उपेक्षित ढलती रही।

उदासी भी, मानो पाँसे की तरह खेली जाती रही

कभी इधर, कभी उधर : हम तुम दोनों को

एक महीन जाल में उलझाती रही

जिस से हम परस्पर एक-दूसरे को छुड़ाते रहे 

हारते रहे : पर जीत का आभास हर बार पाते रहे।

फिर भोर एकाएक ठगे-से हम आगे

तुम अपने हम अपने घर भागे।

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रचनाएँ
क्योंकि मैं उसे जानता हूँ
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अज्ञेय जी का पूरा नाम सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय है। इनका जन्म 7 मार्च 1911 में उत्तर प्रदेश के जिला देवरिया के कुशीनगर में हुआ। इस कविता का संदेश है कि व्यक्ति और समाज एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। इसलिए व्यक्ति का गुण उसका कौशल उसकी रचनात्मकता समाज के काम आनी चाहिए। जिस तरह एक दीपक के लिए अकेले जलने से बेहतर है, दीपकों की कतार में जलना। उसी तरह व्यक्ति के लिए समाज से जुड़े रहकर अपने जीवन को सार्थक बनना चाहिए। अज्ञेय की कई कविताएं काव्य-प्रक्रिया की ही कविताएं हैं। उनमें अधिकतर कविताएं अवधारणात्मक हैं जो व्यक्तित्व और सामाजिकता के द्वंद्व को, रोमांटिक आधुनिक के द्वंद्व को प्रत्यक्ष करती है। उन्हें सीख देता है कि सबको मुक्त रखें।” जिजीविषा अज्ञेय का अधिक प्रिय काव्य-मूल्य है। एक लंबी साधना प्रक्रिया से गुजरता है। वह अपने आत्म को उस परम सत्ता में विलीन कर देता है। इसलिए आत्म विसर्जन के जरिये वह स्वयं को परम सत्ता से जोड़ देता है। यही पूरी कविता की मूल संवेदना हैअपनी कविताओं में उन्होंने मानव मन कि कुंठाओं तथा वासनाओं का वर्णन किया है। यह कविता अज्ञेय के व्यक्तिवाद में समाज या समूह को शामिल करती प्रतीत होती है। इसमें अज्ञेय एक ऐसे दीप की बात करते हैं,
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आज़ादी के बीस बरस

7 जुलाई 2022
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चलो, ठीक है कि आज़ादी के बीस बरस से तुम्हें कुछ नहीं मिला, पर तुम्हारे बीस बरस से आज़ादी को (या तुम से बीस बरस की आज़ादी को) क्या मिला? उन्नीस नंगे शब्द? अठारह लचर आन्दोलन? सत्रह फटीचर कवि? सो

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देहरी पर

7 जुलाई 2022
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मन्दिर तुम्हारा है देवता हैं किस के? प्रणति तुम्हारी है फूल झरे किस के? नहीं, नहीं, मैं झरा, मैं झुका मैं ही तो मन्दिर हूँ, ओ देवता! तुम्हारा। वहाँ, भीतर, पीठिका पर टिके प्रसाद से भरे तु

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कहीं राह चलते चलते

7 जुलाई 2022
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कहीं रहा चलते-चलते चुक जाएगा दिन। सहसा झुक आएगी साँझ घनेरी। घुल जाएँगे रूप धुँधलके में मृदु : पीड़ाएँ-क्षण-भर-रुक जाएँगी, करती अपने होने पर सन्देह। एक स्तब्धता से मैं जाऊँगा घिर। और साँझ फ

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कच्चा अनार, बच्चा बुलबुल

7 जुलाई 2022
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अनार कच्चा था पर बुलबुल भी शायद बच्चा था रोज़ फिर-फिर आता टुक्! टुक्! दो-चार चोंच मार जाता। और एक दिन मेरे तकते-तकते चोट खा कर अनार डाल से टूट गया। अपनी ही सोच पर सकते में आ कर मैं पूछ बै

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ध्रुपद

7 जुलाई 2022
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शं... शायद कोई आएगा मैं तो स्तब्ध सपने में तानपूरा साधता हुआ बैठा हूँ  गायक आएगा तब आएगा। आने से पहले साज़ साधना क्या बहाना नहीं है? जब वह अभी आया नहीं है, आएगा तो क्या गाएगा यह मेरा जाना न

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कहाँ से उठे प्यार की बात

7 जुलाई 2022
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कहाँ से उठे प्यार की बात जब कदम-कदम पर कोई असमंजस में डाल दे? जैसे शहर की त्रस्त क्षिति-रेखा पर रात धुँधलके के सागर से एक तारा उछाल दे? आता है यही : उसी तारे-सा कंटकित तर्कातीत, निःसंशय अक

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बही जाती है

7 जुलाई 2022
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ठठाती हँसियों के दौर मैंने जाने हैं कहकहे मैंने सहे हैं। पर सार्वजनिक हँसियों के बीच अकेली अलक्षित चुप्पियाँ और सब की चुप के बीच औचक अकेली सुनहली मुस्कानें ये कुछ और हैं  न जानी जाती हैं, न स

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रात : चौंध

7 जुलाई 2022
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रात एकाएक टूटी मेरी नींद और सामने आयी एक बात कि तुम्हारे जिस प्यार में मैं खोया रहा हूँ, जिस लम्बी, मीठी नशीली धुन्ध में मैं सब भूल कर सोया रहा हूँ, उस की भीत जो है वह नहीं है रति : वह मूलतः है

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मोड़ पर का गीत

7 जुलाई 2022
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यह गीत है जो मरेगा नहीं। इस में कहीं कोई दावा नहीं, न मेरे बारे में, न तुम्हारे बारे में; दावा है तो एक सम्बन्ध के बारे में जो दोनों के बीच है, पर जिस के बीच होने या होने का भी कोई दिखावा नहीं।

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जिस मन्दिर में मैं गया नहीं

7 जुलाई 2022
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जिस मन्दिर में मैं गया नहीं उस की देहरी से भीतर चिकनी गच पर देख और पैरों की छाप चला जाता है मन उस ओर जिधर जाना होता है। ओ तुम सब! जिन की है पहुँच दूर तक (जिस की जितनी) मुझे किसी से हिर्स नह

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होते हैं क्षण

7 जुलाई 2022
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होते हैं क्षण : जो देश-काल-मुक्त हो जाते हैं। होते हैं : पर ऐसे क्षण हम कब दुहराते हैं? या क्या हम लाते हैं? उन का होना, जीना, भोगा जाना है स्वैर-सिद्ध, सब स्वतःपूर्त। -हम इसी लिए तो गाते हैं।

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दिया हुआ, न पाया हुआ

7 जुलाई 2022
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एक का अनकहा संकल्प था कि मुझे मार-मार कर दुम्बा बना देगा दूसरे की ऐलानिया डींग थी कि मुझे बना लेगा मार-मार कर हकीम  पर मैं हूँ कि कुछ न बना न हकीम, न दुम्बा, मार खाते-खाते-करूँ तसलीम बन गया एक

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आश्वस्ति

7 जुलाई 2022
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थोड़ी और दूर  आकृतियाँ धुँधली हो कर सब समान ही जावेंगी थोड़ा और सभी रेखाएँ धुल कर परिदृश्य एक हो जावेंगी। कुछ दिन जाने दो बीत  दुःख सब धारों में बँट-बँट कर धरती में रम जाएगा। फिर थोड़े दिन और

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प्रार्थना का एक प्रकार

7 जुलाई 2022
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कितने पक्षियों की मिली-जुली चहचहाट में से अलग गूँज जाती हुई एक पुकार  मुखड़ों-मुखौटों की कितनी घनी भीड़ों में सहसा उभर आता एक अलग चेहरा  रूपों, वासनाओं, उमंगों, भावों, बेबसियों का उमड़ता एक ज्वार

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फिर भोर एकाएक

7 जुलाई 2022
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‘भई, आज हम बहुत उदास हैं।’ ‘क्यों? भूल गये या क्या सूख गये आनन्द के वे सारे सोते जो तुम्हारे इतनी पास हैं?’ ‘हैं, तो, पर दीखें कैसे, जब तक आँखों में तारा-रज का अंजन न हो?’ ‘आँखें तुम्हारी तो स्व

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अस्ति की नियति

7 जुलाई 2022
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फूल से पंखुड़ी तो झरेगी ही पर यह क्यों कहो कि याद तो मरेगी ही? फूल का बने रहना भी याद है जिस में एक नयी दुनिया आबाद है  पंखुड़ियों की, फूलों की, बीजों की। यह एक दूसरी पहचान है चीज़ों की। न सही

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चितवन

7 जुलाई 2022
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क्या दिया था तुम्हारी एक चितवन ने उस एक रात जो फिर इतनी रातों ने मुझे सही-सही समझाया नहीं? क्या कह गयी थी बहकी अलक की ओट तुम्हारी मुस्कान एक बात जिस का अर्थ फिर किसी प्रात की किसी भी खुली हँसी ने

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अहं राष्ट्रीय संगमनी जनानाम्

7 जुलाई 2022
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सवेरे आये बाम्हन जो जैसे ही जागे कि नहाये नहाते ही भूख से कुनमुनाये भूख लगते ही सब को देने लगे दान और श्रद्धा का उपदेश। जो अघा कर खा कर घर आ कर (या लाये जा कर) चैन से लेंगे डकार। नहीं, जो डका

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आवश्यक

7 जुलाई 2022
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जितना कह देना आवश्यक था कह दिया गया : कुछ और बताना और बोलना-अब आवश्यक नहीं रहा। आवश्यक अब केवल होगा चुप रह जाना अपने को लेना सँभाल सम्प्रेषण के अर्पित, निभृत क्षणों में। अब जो कुछ उच्चारित ह

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एक दिन

7 जुलाई 2022
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ठीक है, कभी तो कहीं तो चला जाऊँगा पर अभी कहीं जाना नहीं चाहता। अभी नभ के समुद्र में शरद के मेघों की मछलियाँ किलोलती हैं मधुमाली के झूमरों में कलियाँ पलकें अधखोलती हैं अभी मेहँदी की गन्ध-लहरें

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जाना अजाना

7 जुलाई 2022
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मैं मरा नहीं हूँ, मैं नहीं मरूँगा, इतना मैं जानता हूँ, पर इस अकेला कर देने वाले विश्वास को ले कर मैं क्या करूँगा, यह मैं नहीं जानता। क्यों तुम ने यह विश्वास दिया? क्यों उस का साझा किया? तुम

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दास व्यापारी

7 जुलाई 2022
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हम आये हैं दूर के व्यापारी माल बेचने के लिए आये हैं  माल : जीवित, गन्धित, स्पन्दित छटपटाती शिखाएँ रूप की तृषा की ईर्षा की, वासना की, हँसी की, हिंसा की और एक शब्दातीत दर्द की, घृणा की  मानवता के

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दिति कन्या को

7 जुलाई 2022
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थोड़ी देर खुली-खुली आँखें मिलीं बिजलियों से दौड़े संकेत सदियों की, संस्कारों की नींवे हिलीं अभिप्रेत हुए प्रेत न देहें हिलीं-डुलीं न कोई बोला, गुँथ गयीं दो दुरन्त जिजीविषाएँ फिर पलटीं तुरन्त

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वेध्य

7 जुलाई 2022
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पहले मैं तुम्हें बताऊँगा अपनी देह का प्रत्येक मर्मस्थल फिर मैं अपने दहन की आग पर तपा कर तैयार करूँगा एक धारदार चमकीली कटार जो मैं तुम्हें दूँगा  फिर मैं अपने दक्ष हाथों से तुम्हें दिखाऊँगा करना

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प्यार

7 जुलाई 2022
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प्यार एक यज्ञ का चरण जिस में मैं वेध्य हूँ। प्यार एक अचूक वरण कि किस के द्वारा मैं मर्म में वेध्य हूँ।

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जनपथ-राजपथ

7 जुलाई 2022
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राष्ट्रीय राजमार्ग के बीचो-बीच बैठ पछाहीं भैंस जुगाली कर रही है  तेज़ दौड़ती मोटरें, लारियाँ, पास आते सकपका जाती हैं, भैंस की आँखों की स्थिर चितवन के आगे मानो इंजनों की बोलती बन्द हो जाती है। भ

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लौटते हैं जो वे प्रजापति हैं

7 जुलाई 2022
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झुलसते आकाश के बादलों को जला कर शून्य में भी रिक्तता का एक जमुहाता विवर बना कर जब वे चले जाएँगे, तब अन्त में एक दिन रासायनिक साँपिनें पछाड़ खा कर धरती पर गिरेंगी, विषैले धुएँ की गुंजलकें खुल ज

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भूत

7 जुलाई 2022
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तुम्हें अपनी धनी हवेली में भूतों का डर सता रहा है। मुझे अपने झोंपड़े में यह डर खा रहा है कि मैं कब भूत हो जाऊँगा।

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पत्थर का घोड़ा

7 जुलाई 2022
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आन-बान मोर-पेंच, धनुष-बाण, यानी वीर-सूरमा भी कभी रहा होगा। अब तो टूटी समाधि के सामने साबुत खड़ा है सिर्फ़ पत्थर का घोड़ा। और भीतर के छटपटाते प्राण! पहचान सच-सच बता, जो कुछ हमें याद है उसमें

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क्यों कि मैं

7 जुलाई 2022
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क्यों कि मैं यह नहीं कह सकता कि मुझे उस आदमी से कुछ नहीं है जिस की आँखों के आगे उस की लम्बी भूख से बढ़ी हुई तिल्ली एक गहरी मटमैली पीली झिल्ली-सी छा गयी है, और जिसे इस लिए चाँदनी से कुछ नहीं है,

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तू-फू को : बारह सौ वर्ष बाद

7 जुलाई 2022
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पुराने कवि को मुहरें मिलती थीं या जायदाद मनचाही या झोंपड़ी के आगे राजा का हाथी बँधवाने का सन्दिग्ध गौरव, या यश, प्रशंसा, दो बीड़े पान, कंकण, मुरैठा, वाहवाही। या जिसे कुछ नहीं मिलता था उस की

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सपना

7 जुलाई 2022
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जागता हूँ तो जानता हूँ कि मेरे पास एक सपना है  सोता हूँ तो नींद में वही एक सपना कभी नहीं आता। तुम्हें मैं किसी तरह छोड़ नहीं सकता  यों अपने से मुक्ति नहीं पाता।

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मैत्री

7 जुलाई 2022
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मैं ने तब पूछा था  और रसों में, क्या, मैत्री-भाव का भी कोई रस है? और आज तुम ने कहा कितना उदास है यह बरसों बाद मिलना! प्यार तो हमारा ज्यों का त्यों है, पर क्या इस नये दर्द का भी कोई नाम है?

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उन्होंने घर बनाये

7 जुलाई 2022
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उन्होंने घर बनाये और आगे बढ़ गये जहाँ वे और घर बनाएँगे। हम ने वे घर बसाये और उन्हीं में जम गये : वहीं नस्ल बढ़ाएँगे और मर जाएँगे। इस से आगे कहानी किधर चलेगी? खँडहरों पर क्या वे झंडे फहराए

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ड्योढ़ी पर तेल

7 जुलाई 2022
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ड्योढ़ी पर तेल चुआने के लिए लुटिया तो मँगनी भी मिल जाएगी; उत्सव के लिए जो मंगली-घड़ी चाहिए वह क्या इसी लिलार-रेखा पर आएगी?

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पहली बार जब शराब

7 जुलाई 2022
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  पहली बार जब दिन-दोपहर में शराब पी थी तब हमजोलियों से ठिठोलियाँ करते सोचा था : कितने ख़तरनाक होते होंगे वे लोग जो रात में अकेले बैठ कर पीते होंगे? आज चाँदनी रात में पहाड़ी काठघर में अकेला ब

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तं तु देशं न पश्यामि

7 जुलाई 2022
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देश-देश में बन्धु होंगे पर बहुएँ नहीं होंगी (राम की साखी के बावजूद); किसी देश में बहू मिल जाएगी जहाँ बन्धु कोई नहीं होगा। किसी की जगह कोई नहीं लेता  यह तर्क भी दर्शन की जगह नहीं लेगा, क्यों

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तो क्या

7 जुलाई 2022
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रात में शहर की सूनी सड़कों पर अनमने भटको तो क्या? किसी भी आते-जाते भाव की या किसी याद की ओट सिमटे चेहरे पर अटको तो क्या? किसी को सिटकारी दो, किसी को दिखा कर आह भरी, मटको; यानी समाज की,

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केले का पेड़

7 जुलाई 2022
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उधर से आये सेठ जी इधर से संन्यासी एक ने कही, एक ने मानी (दोनों ठहरे ज्ञानी) दोनों ने पहचानी सच्ची सीख, पुरानी  दोनों के काम की, दोनों की मनचीती जै सियाराम की! सीख सच्ची, सनातन सौटंच, सत्या

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एक दिन - 2

7 जुलाई 2022
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एक दिन अजनबियों के बीच एक अजनबी आ कर मुझे साथ ले जाएगा। जिन अजनबियों के बीच मैं ने जीवन-भर बिताया है, जिस अजनबी से मेरी बड़ी पुरानी पहचान है। कौन है, क्या है वह, कहाँ से आया है जो ऐसे में म

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देश की कहानी : दादी की ज़बानी

7 जुलाई 2022
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पहले यह देश बड़ा सुन्दर था। हर जगह मनोरम थी। एक-एक सुन्दर स्थल चुन कर हिन्दुओं ने तीर्थ बनाये जहाँ घनी बसाई हुई गली-गली, नाके-नुक्कड़ गन्दगी फैला दी। फिर और एक-एक सुन्दर जगह खोज मुसलमानों

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उँगलियाँ बुनती हैं

7 जुलाई 2022
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  उँगलियाँ बुनती हैं लगातार रंग-बिरंगे ऊनों से हाथ, पैर, छातियाँ, पेट दौड़ते हुए घुटने, मटकते हुए कूल्हे  उँगलियाँ बुनती हैं काले डोरे से चकत्ता दिल का- सफ़ेद, सफ़ेद धागे से आँखों के सूने पपोट

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गूँजेगी आवाज़

7 जुलाई 2022
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गूँजेगी आवाज़ पर सुनाई नहीं देगी। हाथ उठेंगे, टटोलेंगे, पर पकड़ाई नहीं पावेंगे। लहकेगी आग, आग, आग पर दिखाई नहीं देगी। जल जाएँगे नगर, समाज, सरकारें, अरमान, कृतित्व, आकांक्षाएँ  नहीं मरेगा

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प्रेमोपनिषद्

7 जुलाई 2022
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वह जो पंछी खाता नहीं, ताकता है, पहरे पर एकटक जागता है होगा, होगा जब। मैं वह पंछी हूँ जो फल खाता है क्यों कि फल, डाल, तरु, मूल, तुम्हीं हो सब। पर एक जागता है, ताकता है कौन? मैं हूँ, जागरू

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रात में

7 जुलाई 2022
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तुम्हारी आँखों से सपना देखा। वहाँ। अपनी आँखों से जाग गये। यहाँ। झील। पहाड़ी पर मन्दिर कुहरे में उभरा हुआ। धूप के फूल जहाँ-तहाँ जैसे गेहूँ में पोस्ते। और वह एक (किरण) कली कलश को छूती हुई च

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ओ तुम

7 जुलाई 2022
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ओ तुम सुन्दरम रूप!- पर कैसे यह जाना जाय कि रूप तुम्हारा है और मेरा ही नहीं है? ओ तुम मधुरतम भाव! पर कैसे यह माना जाय कि वह तुम्हारा है कुछ मेरा ही नहीं है? ओ तुम निविडतम मोह। पर ..मेरा ह

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कौन-सा सच है

7 जुलाई 2022
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दिन के उजाले में अनेकों नाम सब के समाज में हँसी-हँसी सहज पुकारना रात के सहमे अँधेरे में अपने ही सामने अकेला एक नाम बड़े कष्ट से, अनिच्छा से सकारना। कौन-सा सच है? सब की जीत की खोज कर लायी

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औपन्यासिक

7 जुलाई 2022
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मैं ने कहा : अपनी मनःस्थिति मैं बता नहीं सकता। पर अगर अपने को उपन्यास का चरित्र बताता, तो इस समय अपने को एक शराबखाने में दिखाता, अकेले बैठ कर पीते हुए-इस कोशिश में कि सोचने की ताक़त किसी तरह जड़

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कुछ फूल : कुछ कलियाँ

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डाल पर कुछ फूल थे कुछ कलियाँ थीं! फूल जिसे देने थे दिये  तुष्ट हुआ कि उसने उन्हें कबरी में खोंस लिया! कलियाँ कुछ देर मेरे हाथ रहीं फिर अगर गुच्छे को मैं ने पानी में रख दिया तो वह अतर्कित उ

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