आज सुबह घूमने नहीं जा पा रही हूँ। मेरे बेटे की १० वीं सीबीएसई के प्री.बोर्ड की परीक्षाएं चल रही हैं। वह बिस्तर पर बैठे-बैठे अपनी किताबों में खोया है और और कभी-कभी ऑंखें बंद कर मनन कर रहा है। इस बार सीबीएसई की मुख्य परीक्षाएं अप्रैल के अंतिम सप्ताह से शुरू हो रहे हैं। मेरा बेटा थोड़ा नाराज है कि जिस समय मुख्य परीक्षाएं होनी चाहिए थी, उस समय प्री-बोर्ड हो रहे हैं। उसने अपने मित्रों के साथ परीक्षाएं खत्म होने के बाद आपस में मिलकर कुछ कार्यक्रम तय कर दिए थे, लेकिन मुख्य परीक्षा विलम्ब से होने से वह इन पर पानी फिरता देख थोड़ा खिन्न सा है। अब उसे कौन समझाए कि सीबीएसई बोर्ड वाले उसके हिसाब से थोड़े ही परीक्षाएं तय करेंगे।
अभी घर के बाहर बगीचे में उगे कुछ छोटे-छोटे पौधों के बीच चिड़ियों का चहकना और गिलहरियों की चिक-चिक शुरू हो चुकी है। वहीं नीम के पेड़ पर बैठी कोयल पहले धीरे-धीरे और फिर बड़ी तेजी से कु कु कु की मधुर तान छेड़ कर आसपास के सभी लोगों को सुबह बजने वाले मोबाईल अलार्म की जगह बैठकर जगाने में लगी हुई है और मैं उसकी तान में मगन होकर दैनंदिनी लिखनें की कोशिश में हूँ। पतिदेव गर्मागरम चाय ले आये हैं, जिसकी खुशबू से दिमाग खुलने लगा है। घर हो या फिर आॅफिस मुझे लिखते-पढ़ते चाय जरूर चाहिए, उसके बिना कोई भी काम करना बड़ा मुश्किल होता है। एक कप चाय मिल जाए तो फिर क्या कहने। शरीर में ऐसी ताजगी और फुर्ती आ जाती है कि जाकर कोई पहाड़ खोद दूँ या फिर ये लिख दूँ, वो लिख दूँ, अरे भई दिमाग खुल जाता है और कुछ नहीं। सोचती हूँ इन अंग्रेजों को भी क्या सूझी होगी जो वे सबकुछ तो लूट ले गए किन्तु अपनी इस धरोहर अपने साथ ले जाना भूलकर क्या सोचकर हमारे लिए छोड़ गए होंगे?
खैर अब मैं चली पहले किचन सँभालने और फिर ऑफिस। तब तक आप गुनगुनाते रहिए -
सुबह और शाम काम ही काम
क्यों नहीं लेते पिया प्यार का नाम
काम से जिसको मिले न छूटी
ऐसे सज्जन से मेरी कुट्टी कुट्टी कुट्टी
सुबह .................................