जमाना बदला तो उपस्थिति पंजी में हस्ताक्षर करने के स्थान पर पहले अंगूठा तो अब थोबड़ा दिखाकर हाजिरी लगनी क्या शुरू हुई कि समय पर ऑफिस जाना ही पड़ता है। पहले की तरह अब नहीं चलता कि देर से पहुंचे और कोई बहाना बनाकर ड्यूटी ऑफिसर के सामने हस्ताक्षर करके आ गए। अब जब से कोरोना महामारी आई और आॅफिस में शनिवार की छुट्टी घोषित करके बाकी दिन का समय बढ़ाकर सुबह 10 से 6 बजे किया गया है, वह कभी-कभी सुबह-शाम की एक आफत की तरह बड़ा भारी पड़ने लगता है।
आज सुबह जब सुबह जल्दी-जल्दी ऑफिस को निकली तो अभी मैं अपने घर से कुछ दूर न्यू मार्केट के मोड़ तक चली कि अचानक हड़बड़ी में एक आदमी सड़क पार करते हुए मेरी एक्टिबा से टकराते हुए मेरे पीछे-पीछे तेजी से आती हुई एक बाईक से टकराया और दोनों वहीं धड़ाम से गिर गए। मैंनेे जैसे-तैसे अपने को संभालते हुए सड़क किनारे एक्टिबा खड़ी की और थोड़ी देर आंख बंद कर एक गहरी सांस ली और फिर जैसे ही मैंने उस आदमी को देखा तो मैं बहुत डर गई क्योंकि वह एकदम वहीं चित होकर बेसुध पड़ा था, जिसे देखकर मुझे घबराहट होने लगी। मैंने देखा कि कुछ लोग बाईक तो कुछ बाईक वाले लड़के को उठाकर सड़क के किनारे कर रहे थे। अमूनन अधिकांश लड़के हेलमेट बोझ समझते हैं, लेकिन गनीमत रही कि बाईक चलाने वाले लड़के ने हेलमेट पहन रखा था, जिससे उसे गहरी चोट नहीं आई। सभी लोगों को लड़के की चिन्ता हो रही थी, वे उससे बार-बार पूछ रहे थे कि बेटा कहीं ज्यादा चोट तो नहीं आयी है? हाॅस्पिटल तो नहीं चलना है आदि-आदि। लड़के को भी शायद कहीं जल्दी जाना था और उसे कोई ज्यादा चोट भी नहीं आई थी, तो उसने सभी लोगों को धन्यवाद दिया और अपनी बाईक लेकर जल्दी से वहां से निकल गया। लेकिन इस बीच मैंने जब देखा कि कोई भी टकराने वाले उस आदमी को जिसकी उम्र यही कोई 35-40 के करीब रही होगी, अभी भी सड़क पर चित पड़ा है, तो मुझसे रहा नहीं गया।
मैं घबराते हुए उसके पास दौड़ी तो मुझे देखकर वहीं पास खड़ी भीड़ में से एक व्यक्ति बोला , “अरे मैडम आप खामखाह ही परेशान हो रही है, इसे कुछ नहीं हुआ है।“ तो मुझे थोड़ा आश्चर्य हुआ, मैंने उससे कहा- “अरे भैया! आप कहते हो कि इसे कुछ नहीं हुआ, पहले देखो तो इसे उठाकर, मुझे तो लगता है बेहोश हो गया है बेचारा ?“ मेरी बात सुनकर उस आदमी ने दूसरे लोगों को यह कहते हुए कि मैडम आप कहती हैं तो उठा ही लेते हैं इस बेचारे को और किनारे किया तो मेरी सांस में सांस आई। मुझे देरी हो रही थी तो मैंने उस आदमी से उसे हाॅस्पिटल ले जाने का निवेदन किया तो वह उल्टा हँसते-हँसते बताने लगा- “अरे मैडम आप इसे नहीं जानते, हम इसे अच्छे से जानते हैं, एक नम्बर का नशेड़ी है सुबह से ही चढ़ा लेता है और हंगामा करता फिरता है दिन भर इधर-उधर। कुछ काम नहीं करता। सारे घरवाले परेशान है इससे, अगर आज मर भी जाए न तो कोई फर्क नहीं पड़ने वाला किसी पर। आप खामख्वाह में परेशान हो रही हैं, ये देखना अभी उठकर चलने लगेगा, इसका तो रोज का यही नाटक है। आप जाइए आपको ऑफिस के लिए देरी हो रही होगी। इसे हम लोग देख लेंगे“ मैं हां , ठीक है कहती हुई भारी मन से वहां से चलते चलते अशंकित होती रही कि आज अगर सच में वह नहीं उठा तो ...... और भी जाने क्या-क्या अनाप शनाप, लेकिन मेरी सारी शंकाए निर्मूल साबित हुई जैसे ही मैं अपनी एक्टिबा के पास पहुंचीं और मैंने एक्टिबा स्टार्ट कर एक बार उसकी ओर पीछे मुड़कर देखा तो मैं देखती ही रह गई। यह क्या! जैसे चमत्कार हो गया, वह झटके से उठा और इधर-उधर भीड़ को घूरते हुए गुलाम अली द्वारा गायी गजल‘ हंगामा है क्यूँ बरपा, थोड़ी सी जो पी ली है। डाका तो नहीं डाला, चोरी तो नहीं की है ,,, की तरह झूमते-झमते निकला तो मैं भी जगजीत सिंह की गायकी- “ये पीने वाले बहुत ही अजीब होते हैं, जहाँ से दूर ये खुद के करीब होते हैं“ की धुन में ऑफिस सरपट भाग चली।