आज मेरी माँ का जन्मदिन है। हरवर्ष उनके जन्मदिन पर हम सभी भाई-बहिन उनकी ख़ुशी की खातिर थोड़ा-बहुत खाना-पीने का कार्यक्रम करते हैं तो उन्हें यह देख बड़ी ख़ुशी मिलती हैं। इसलिए आज सुबह-सुबह सबसे पहले मैं उनके पास गई और फिर मैंने घरवालों को बुलाकर उनके जन्मदिन मनाने की घोषणा कर सबको काम भी बाँट दिया। जन्मदिन का केक और मटर पनीर और वेज बिरयानी मैं अपने घर से बनाकर ले जाऊँगी और मेरी छोटी बहन आलू और गोभी के सूखी सब्जी बनाकर लाएगी और छोटी भाभी खीर-पूरी और सालाद आदि का प्रबंध करेगी। आप सोच रहे होंगे कि मैं तो ससुराल में रहती हूँ तो फिर यह सब कैसे संभव होगा, तो बताती चलूँ कि मेरा ससुराल तो दिल्ली है, लेकिन मेरे पति भोपाल में शासकीय सेवा में थे, इसलिए मुझे दिल्ली नहीं जाना पड़ा। यहाँ मेरा मायका मेरे घर से महज आधा किलोमीटर तो मेरी छोटी बहन का 50-60 कदम दूरी पर है। चूँकि मेरी माँ विगत १५-१६ वर्ष से कैंसर से जूझ रही है, इसलिए हम दोनों बहिन को भी उनकी देखभाल के लिए आना-जाना करना पड़ता है, इससे माँ को बहुत अच्छा लगता है। मेरी माँ भले ही शहर में रहती थी, लेकिन उनका हमारे परिवार के लिए किया गया संघर्ष अतुलनीय है। पिताजी नौकरी करते थे और उनकी आय सीमित थी, ऐसे में आर्थिक तंगी से घर परिवार चलाते हुए माँ ने उनके साथ दृढ़तापूर्वक आगे बढ़कर हम सभी भाई-बहनों को लिखाने-पढ़ाने का भार अपने कन्धों उठाया। घर की माली हालत को ठीक बनाये रखने के लिए गाय-बकरी पालकर पटरी बिठाकर रखी। माँ ने कभी स्कूल में दाखिला नहीं लिया, लेकिन वह जिंदगी के मुश्किल हालातों के थपेड़ों से पढ़ाई-लिखाई का मोल समझ गई थी। वह स्कूल की किताबों की लिखावट भले भी नहीं बांच सकी फिर भी दिनभर की दौड़ धूप के बाद देर रात तक चुपचाप हमारे पास बैठकर किताबों में लिखे अक्षरों के भावार्थ समझने में लगी रहती। माँ ने लड़के-लड़की का भेद न करते हुए हम दो बहनों और दो भाईयों की पढाई-लिखाई से लेकर स्कूल भेजने, ले जाने की सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर ली। शहर में रहकर माँ ने कभी किसी के आगे हाथ नहीं फैलाया। कभी लाचारी नहीं दिखाई। कभी हालातों से समझौता नहीं किया। हमको नियमित स्कूल भेजना माँ ने सुनिश्चित किया। वह भले ही कभी हमारी अंकतालिका नहीं पढ़ पायी लेकिन वे हमारे चेहरे के भावों से सबकुछ आसानी से पढ़ लेती थी। माँ ने हमारा भविष्य निर्धारित किया और उसी का नतीजा है कि आज हम सब भाई-बहन पढ़-लिखकर अपने घर-परिवार और सामाजिक जिम्मेदारियों को बहुत हद तक ठीक ढंग से निभा पाने में समर्थ हो पा रहे हैं।
माँ का संघर्ष जारी है। पिताजी १५ वर्ष पहले कैंसर से ही चल बसे, लेकिन उस समय भी माँ खुद कैंसर से जूझते हुए हमारे लाख मना करने पर भी हॉस्पिटल में खुद उनकी देख रेख में डटी रही। माँ ने उनकी सेवा में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी। हालांकि पिताजी ने कैंसर के आगे दो माह में ही हार मान ली, लेकिन माँ आज भी बड़ी हिम्मत से कैंसर का मुकाबला कर रही है। वह आज भी खुद घर परिवार की जिम्मेदारी से पीछे नहीं हटी है। उनके साथ बीते पल अनमोल हैं। मेरा सौभाग्य है कि मेरी माँ हमेशा मेरे नजदीक ही रही है। शादी की बाद भी मैं उनके इतनी नजदीक हूँ कि मैं हर दिन उनके सामने होती हूँ। माँ घर से बाहर बहुत कम आ-जा पाती है। यह देख मुझे भी हरपल दुःख तो होता है। शायद यही नियति का खेल है। माँ हम सबके लिए एक प्रेरणास्रोत हैं, जिससे हमें यह सीख मिलती है कि हालातों से मजबूर होकर जिंदगी से मुहं मोड़ना बुजदिली है, हालातों को अपने अनुकूल बनाना ही जीवन कौशल है। माँ अपने बच्चों के लिए कितना संघर्ष करती हैं, यह वह हर औरत समझती है जो माँ है। माँ ने पूरा जीवन हमें समर्पित किया है यही सोच कर आज का दिन यदि मैं उनके नाम कर उन्हें कुछ खुशियाँ दे सकूँ तो इससे अधिक मेरा क्या सौभाग्य होगा।