shabd-logo

हमारे गांव वाले बाबा

21 फरवरी 2022

29 बार देखा गया 29

आज सुबह-सुबह नहा धोकर जब मैं पूजा करने अपने घर के पास के मंदिर गई तो वहाँ मुझे एक बुजुर्ग बाबा जी बैठे मिले। वे मंदिर के बाहर अकेले बैठे थे। मैं जैसे ही पूजा कर मंदिर से जल्दी घर की ओर निकली तो उन्होंने मुझे आवाज दी, 'अरे बेटी, जरा रुस तो मेरी बात तो सुन।'  मैं जल्दी में थी मैने उन्हें ठीक से देखा नहीं और सोचा शायद कोई परेशानी होगी, इसलिए आवाज दे रहे हैं।  मैंने उनके पास पूछा, 'हाँ बाबा बोलो क्या बात है?" तो वे मुझे जैसे पहचानने की कोशिश करने लगे तो मुझे भी वे कुछ-कुछ जाने पहचाने से दिखे। इससे पहले कि मैं आगे पूछती वे मुझसे कहने लगे, 'तुम तो दिनेश की बहिन हो न?"  मैने "हाँ"  कहा तो वे आगे बोले, "मुझे नहीं पहचाना तूने?"  मैं उनके इस आत्मविश्वास भरे शब्दों को सुन चौंकी और उन्हें गौर से देखने लगी तो मुझे कुछ-कुछ याद आयी।  मैं बोली, "हाँ-हाँ, कुछ याद आ रहा है। मैने आपको शायद बहुत वर्ष पहले अपने दिल्ली वाले ताऊ के घर में देखा था। तब आप वहां किसी को गंठा ताबीज बांधने आए थे।  है न?" मैं सहीं हूँ जब मैंने यह बात उनसे जाननी चाही तो वे मेरी बात सुनकर मुस्कुरा कर बोले, "अरे वाह! तू तब बहुत छोटी थी फिर भी पहचान गई।"  मैं बोली कि आपके बारे में बहुत सी बातें सुनी थी माँ-पिताजी से इसलिए याद है।  लेकिन अब आप बहुत बूढ़े हो गए है न, इसलिए आज  पहचान नहीं पाई थी और फिर समय भी तो बहुत निकल गया।"  मेरी बातें सुनकर वे बोले 'हाँ बेटी ये बात तो है, समय-समय की बात होती है।"  मैंने उनसे कहा कि अब जब वे मेरे घर के पास तक आये हैं तो घर चलकर चाय-पानी लेंगे तो मुझे अच्छा लगेगा', पहले तो वे बोले 'फिरआऊँगा, मेरा बेटा मुझे लेने आता ही होगा तो मैंने उनसे कहा कि वे उन्हें मोबाइल कर दें, तो मैं उनसे बात कर मेरे घर का पता समझा दूंगी।  उन्हें  मेरे बातों में अपनापन लगा तो उन्होंने अपने बेटे को मोबाइल लगाकर मेरे से बात कराई तो मैंने उन्हें अपना घर का पता बताते हुए एक घंटे बाद आने को कहा।  घर आकर मैंने उन्हें अपने बगीचे में कुर्सी लगाकर धूप में बिठाया और फिर बच्चों और पति से परिचय कराया। बच्चे और पतिदेव उनसे गप्पियाते रहें और मैं खाना बनाने में लगी रही।  जब मैंने खाना तैयार किया और उन्हें खाने में बगीचे में उगी कंडाली की भाजी और घी लगाकर कोदू की गरमागरम दो रोटी खिलाई तो उनका गला भर आया कहने लगे, 'बेटा कई माह बाद आज लगा कुछ अच्छा खाया है, गांव की याद ताजी करा दी तूने, भगवान तेरा भला करे। सुनकर मुझे भी ख़ुशी हुई।  मैंने जब उनके पूछा कि क्या वे अब गांव नहीं रहते हैं तो वे बोले, 'दो बेटे हैं एक तो मुम्बई में नौकरी करता है और उसके बाल-बच्चे वही हैं। दूसरा ये छोटा बेटा जिसके साथ मैं पिछले चार वर्ष से दिल्ली में रह रहा था, अभी कुछ दिन हुए उसका प्रमोशन हुआ तो उसकी यहाँ पोस्टिंग हो गयी है।  मेरे पूछने पर कि आपका बेटा कहाँ नौकरी करते हैं तो उन्होंने बताया कि वे एलआईसी में हैं।  उन्होंने मुझे बताया कि उन्हें तो गांव में ही अच्छा लगता था, गंठा-ताबीज और छल पूजने आदि का काम-धन्धा भी चल ही रहा था, लेकिन बूढ़ा होने और तबियत ठीक न होने की वजह से वे छोटे के साथ दिल्ली आ गए।  अब यहीं पास ही में एलआईसी की कॉलोनी में रह रहे हैं।  उनकी बातें सुनकर मैंने उन्हें फिर घूमते-फिरते, आते- जाते रहना कहा।  इतने में उनका लड़का भी उन्हें लेने आ चुका था। उन्होंने उसे बगीचे में बैठे -बैठे शायद पहले ही मोबाइल लगाकर हमारे घर का पता बता दिया था।  वे अपने बेटे के साथ  अपने घर चल दिए तो मुझे भी आफिस के लिए देर हो रही थी इसलिए मैंने भी उन्हें 'नमस्ते के साथ 'आते-जाते रहना, अच्छा लगता है, कहा और वे अपने घर और मैं आफिस के लिए निकल पड़ी।  

ऑफिस पहुँचकर जब लंच करने बैठी तो, अचानक उनका एक किस्सा याद आया, जो मैंने माँ से सुना था। मैं याद कर लिखती हूँ और आप भी सुनते चलिए -

हमारे ये गांव वाले बाबा जिनके बारे में मैंने अभी आपको बताया है उसे पढ़कर आप समझ ही गए होंगे। बात तब की है जब ये बाबा गांव में गंठा-ताबीज और छल पूजने का काम करते थे।  छल मतलब लोगों पर लगा भूत भागते थे।  एक बार दिल्ली में रहने वाले एक गांव के व्यक्ति ने उन्हें अपनी पत्नी का भूत भगाने के लिए बुलाया। वे यह सोचकर कि चलो इसी बहाने दिल्ली घूमना भी हो जाएगा और साथ में उनका काम करके आ जाऊँगा। वे गांव से जब एक दूसरे व्यक्ति के साथ दिल्ली पहुंचे तो उन्होंने उसे बुलाने वाले के घर छोड़ दिया। दो दिन दिल्ली घूमने के बाद उन्होंने बुलाने वाले की पत्नी का भूत भगाने के जंत्र-तंत्र करके पहले तो दिन में मुर्गा कटवाया और फिर रात में भूत को भगाने के लिए वे उनकी पत्नी को कम्बल ओढ़ाकर, उसके हाथ में दरांती पकड़ाकर मौन होकर उसके पीछे-पीछे जमुना नदी की ओर बढ़ने लगे। पैदल-पैदल चलकर वे जमुना नदी के किनारे पहुँचने ही वाले थे कि एक गस्ती पुलिस दल की नज़र उन पड़ी तो वे आशंकित होकर उनके पास दौड़े-दौड़े चले आये और उन्हें पकड़ते हुए बोले -'कहाँ भागकर ले जा रहे हो इस औरत को जादू-टोना करके?" पुलिस की बात सुनकर वे डरते हुए बोले - "साहब हम इन्हें भगाकर कहीं नहीं ले जा रहे हैं, हम तो इनका भूत उतारने के लिए ले जा रहे हैं। "  पुलिस वाले बोले- "क्या तुम्हें पता नहीं कि यह सब यहाँ नहीं चलता है?" तो उन्होंने बताया कि वे गांव से आये हैं, उन्हें नहीं पता"  पुलिस वालों ने उन्हें 'अब पता चलेगा' कहते हुए अपनी जीप में डाल दिया और दूसरी जीप को फ़ोन लगाकर उसमें  उस औरत को उसके घर पहुँचा दिया। उन्होंने पुलिस वालों को बहुत समझाने की कोशिश कि  लेकिन वे नहीं माने और उन्होंने थाने जाकर उनकी थोड़ी-बहुत मरम्मत भी कर दी।  वे थाने में बंद थे।  उनके पास उन लोगों का भी फ़ोन नंबर नहीं था। अब क्या करे बड़ी समस्या खड़ी हो गई उनके सामने।  ऐसे में जब रात वाले पुलिस वालों की शिफ्ट ख़त्म हुई और दूसरी शिफ्ट के कर्मचारी आये तो सौभाग्य से उसमें उनके गांव के पास का एक आदमी मिल गया तो उनकी जान में जान आई।  तब से दिल्ली के नाम से बहुत घबराते थे और उन्होंने कसम खा ली कि  फिर वे दिल्ली में किसी का भूत उतरने नहीं आएंगे। 

कैसी रही हमारे गांव वाले बाबा की आप-बीती ...

तो अब आप उन्हें याद कीजिये और कल तक गुनगुनाते रहिए -- 


"  आते जाते खूबसूरत आवारा सड़कों पे

कभी कभी इत्तेफ़ाक़ से

कितने अंजान लोग मिल जाते हैं

उन में से कुछ लोग भूल जाते हैं

कुछ याद रह जाते हैं " ............................

 

20
रचनाएँ
दैनन्दिनी : दुनियादारी की बातें
0.0
दैनिक डायरी लिखने के लिए आज से पहले कभी सोचा न था। कारण मैं समझती हूँ कि अपने आस-पास या किसी विषय भी पर लिखने से अधिक अपनी दिनचर्या के बारे में लिखना कठिन है। लेकिन शब्द.इन मंच की बात ही कुछ और हैं, जहाँ आकर मैं देखती हूँ कि यहाँ जिस तरह से नवोदित लेखकों के मध्य स्वस्थ प्रतियोगिताओं के माध्यम से उन्हें निरंतर लिखते रहने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है, वह अन्य दूसरे मंचों पर प्राय: देखने को नहीं मिलता है। यद्यपि एक माह में 20 पोस्ट लिखना कठिन जान पड़ रहा है, फिर भी एक माह में निर्धारित दैनन्दिनी लिखने का मेरा सम्पूर्ण प्रयत्न रहेगा, जहाँ मैं देखना चाहूँगी कि इस दिशा में मैं कहाँ तक सफल रहूँगी।
1

तेरा साथ है तो...

3 फरवरी 2022
5
2
3

ॐ गं गणपतये नमः  आज का दिन मेरे लिए विशेष है, क्योंकि आज मेरे  जीवनसाथी का जन्मदिन है, इसलिए मैंने सोचा क्यों न दैनन्दिनी का आगाज इस दिन विशेष से किया जाय। आज सुबह जब उठी तो सबसे पहले उठकर मैंने

2

एक बेचारा 1760 काम का मारा

4 फरवरी 2022
2
1
1

          आज सुबह 7 बजे के लगभग जब मैं नहा-धो, पूजा-पाठ कर किचन में खाना बनाने की जुगत में भिड़ी ही थी कि तभी दरवाजे की घंटी बजी तो मैंने बिटिया को देखने के लिए आवाज दी और अनुमान लगाने लगी कि आखिर इतनी

3

मेरी बगिया का वसंत

5 फरवरी 2022
3
3
2

                  ऑफिस की छुट्टी हो और ऊपर से जाड़े का मौसम हो तो सुबह आँख जरा देर से खुलती है। आज भी कुछ ऐसा ही हुआ।  सुबह जब उठकर बाहर निकली तो देखा कि बिल्डिंग की दूसरी मंजिल में रहने वाली हमारी

4

अभी बात उसकी अधूरी है

6 फरवरी 2022
1
1
1

आज रविवार है यानि छुट्टी का दिन, कामकाजी महिलाओं के लिए दफ्तर को भुलाकर देर तक सुख स्वप्नों में विचरण करते रहने का दिन। इसलिए आज दैनिक दिनचर्या से हटकर बहुत देर बाद जागना हुआ। अब भले ही हर छुट्टी के द

5

माँ का संघर्ष जारी है

7 फरवरी 2022
4
3
2

आज मेरी माँ का जन्मदिन है।  हरवर्ष  उनके जन्मदिन पर हम सभी भाई-बहिन उनकी ख़ुशी की खातिर थोड़ा-बहुत खाना-पीने का कार्यक्रम करते हैं तो उन्हें यह देख बड़ी ख़ुशी मिलती हैं।  इसलिए आज सुबह-सुबह सबसे पहले मैं

6

तेरा साथ है तो .....

8 फरवरी 2022
4
4
3

आज सुबह एक बहुत पुराने बक्से में रखे जमीन के कुछ कागजाद की जरुरत पड़ी तो उनके साथ मुझे मेरी एक पुरानी सखी (डायरी) भी मुस्कुराते मिल गई। मैंने उसे  गले लगाया तो वह चहककर बोली- "आखिर आ ही गई मेरी याद तुझ

7

अपनी जड़ों के करीब ...

10 फरवरी 2022
0
0
0

आज रात मुझे एक जगह लड़की के विवाह समारोह तो दूसरी जगह बिटिया के जन्मोत्सव में सम्मिलित होने जाना है, इसलिए सोचा इससे पहले आज कुछ लिखती चलूँ।  कल शब्द.इन की पेड पुस्तक प्रतियोगिता के लिए "प्यार का खत लि

8

जिंदगी भर का घाव

12 फरवरी 2022
3
2
2

अभी सुबह-शाम ठण्ड है इसलिए सुबह देर तक रजाई में घुसे रहना अच्छा लगता है और सुबह अच्छी गहरी नींद भी आती है। लेकिन इससे पहले कि मैं आज देर से जागती तड़के मोबाइल की घंटी घनघनाने लगी तो उनींदी आँखों से मोब

9

नश्वर यह सारा अग-जग

13 फरवरी 2022
0
0
0

 आज भले ही छुट्टी का दिन था, लेकिन मैं और दिन की अपेक्षा जल्दी से उठी और कल जो मेरी ऑफिस की महिला मित्र के बड़े बेटे ने आत्महत्या की थी, उनके परिवार और रिश्तेदारों के लिए कुछ नाश्ता-पानी बनाकर ले गई। ऐ

10

बुढ़ापा आ गया सरकार हिम्मत हार बैठा हूँ

14 फरवरी 2022
3
1
3

हमारे ऑफिस में पदस्थ एक महिला अधीक्षक कई वर्ष पूर्व सेवानिवृत्त हुई हैं। उनके पति उनसे पहले सेवानिवृत हो गए थे।  वे एक सरकारी स्कूल में प्राइमरी के अध्यापक थे। वे दोनों हमारे घर से कुछ ही दूरी पर रहते

11

ये पीने वाले बहुत ही अजीब होते हैं

15 फरवरी 2022
2
1
1

जमाना बदला तो उपस्थिति पंजी में हस्ताक्षर करने के स्थान पर पहले अंगूठा तो अब थोबड़ा दिखाकर हाजिरी लगनी क्या शुरू हुई कि समय पर ऑफिस जाना ही पड़ता है। पहले की तरह अब नहीं चलता कि देर से पहुंचे और कोई बहा

12

सिटी मार्केट की घिच पिच और पुच पिच में ....

16 फरवरी 2022
0
0
0

ये आजकल के बच्चे भी न, कितना भी इन्हें समझा लो कि बेटा अपनी चीजों को सावधानी के साथ संभालकर जगह पर रखा करो, लेकिन ये दो-चार दिन तो ठाक-ठाक चलेंगे  और फिर वही अपने पुराने ढर्रे पर आ जाएंगे।  वही ढाक के

13

गाँव-शहर में शोर पानी चोर-पानी चोर

17 फरवरी 2022
2
1
2

आज दो दिन हो गए। नल से पानी की एक बूँद भी नहीं टपकी।  ये पानी वाला डिपार्टमेंट भी बोलता कुछ और है और कर जाता कुछ और ही है।  इधर हमको कहा एक दिन की परीक्षा है और उधर दो दिन तक बिठा के रख दिया।  कहाँ तो

14

माथे पर साइबर ठगी की बढ़ती चिंता की लकीरें

18 फरवरी 2022
0
0
0

आज सुबह-सवेरे जब मैं घर से बाहर निकलकर आँगन में टहल रही थी, तो  एक लड़का और एक अधेड़ उम्र का आदमी मोटर सायकिल से उतरकर मुझे हमारे बिल्डिंग में रहने वाले यादव जी के घर का पता पूछने लगे। वे बहुत हैरान-परे

15

जब बात अपनी हो तो ......

19 फरवरी 2022
2
1
1

आज हमारी बिल्डिंग के सामने वाली बिल्डिंग में रहने वाले खरे साहब की लड़की का रिसेप्शन है। खरे साहब और उनकी श्रीमती जी दोनों नौकरी करते हैं।  उनके दो बच्चे हैं।  एक लड़का है एक लड़की। लड़का वकालत करता है और

16

मेरी ख़ुशी का दिन

20 फरवरी 2022
0
0
0

आज का दिन मेरी ख़ुशी का दिन है। आप सोच रहे होंगे किस बात की ख़ुशी।  तो आपको बताती चलूँ कि आज मेरी बिटिया का जन्मदिन है। शादी के एक बहुत लम्बे पीड़ादायी अंतराल के बाद बच्चों से सूने घर में ख़ुशी की किलकारी

17

हमारे गांव वाले बाबा

21 फरवरी 2022
0
0
0

आज सुबह-सुबह नहा धोकर जब मैं पूजा करने अपने घर के पास के मंदिर गई तो वहाँ मुझे एक बुजुर्ग बाबा जी बैठे मिले। वे मंदिर के बाहर अकेले बैठे थे। मैं जैसे ही पूजा कर मंदिर से जल्दी घर की ओर निकली तो उन्हों

18

स्मार्ट सिटी की सड़कों पर पलीता लगाते लोग

22 फरवरी 2022
0
0
0

पिछले दो वर्ष से अधिक समय से कोरोना के मारे घर में मुर्गा-मुर्गियों के दबड़े की तरह उसमें दुबक कर रह गए थे। अभी दो चार दिन से मौसम का मिजाज गर्मियाने लगा तो सोचा सुबह-सुबह घूमने-फिरने की शुरुआत की जाय।

19

घर-परिवार की परीक्षा के दिन

25 फरवरी 2022
0
0
0

आज सुबह घूमने नहीं जा पा रही हूँ। मेरे बेटे की १० वीं सीबीएसई के प्री.बोर्ड की परीक्षाएं चल रही हैं। वह बिस्तर पर बैठे-बैठे अपनी किताबों में खोया है और  और कभी-कभी ऑंखें बंद कर मनन कर रहा है। इस बार स

20

कविता संग्रह का उपहार

27 फरवरी 2022
6
2
3

आज सुबह जैसे ही मैं जागी तो मैंने देखा कि मेरे पतिदेव बड़ी उत्सुकता के साथ मेरे सामने खूबसूरत पैकिंग किया हुआ उपहार अपने हाथों में पकड़े हुए खड़े थे। वे मुझे देखकर चुपचाप खड़े-खड़े मंद-मंद मुस्कुराते ज

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए