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हमारे गांव वाले बाबा

21 फरवरी 2022

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आज सुबह-सुबह नहा धोकर जब मैं पूजा करने अपने घर के पास के मंदिर गई तो वहाँ मुझे एक बुजुर्ग बाबा जी बैठे मिले। वे मंदिर के बाहर अकेले बैठे थे। मैं जैसे ही पूजा कर मंदिर से जल्दी घर की ओर निकली तो उन्होंने मुझे आवाज दी, 'अरे बेटी, जरा रुस तो मेरी बात तो सुन।'  मैं जल्दी में थी मैने उन्हें ठीक से देखा नहीं और सोचा शायद कोई परेशानी होगी, इसलिए आवाज दे रहे हैं।  मैंने उनके पास पूछा, 'हाँ बाबा बोलो क्या बात है?" तो वे मुझे जैसे पहचानने की कोशिश करने लगे तो मुझे भी वे कुछ-कुछ जाने पहचाने से दिखे। इससे पहले कि मैं आगे पूछती वे मुझसे कहने लगे, 'तुम तो दिनेश की बहिन हो न?"  मैने "हाँ"  कहा तो वे आगे बोले, "मुझे नहीं पहचाना तूने?"  मैं उनके इस आत्मविश्वास भरे शब्दों को सुन चौंकी और उन्हें गौर से देखने लगी तो मुझे कुछ-कुछ याद आयी।  मैं बोली, "हाँ-हाँ, कुछ याद आ रहा है। मैने आपको शायद बहुत वर्ष पहले अपने दिल्ली वाले ताऊ के घर में देखा था। तब आप वहां किसी को गंठा ताबीज बांधने आए थे।  है न?" मैं सहीं हूँ जब मैंने यह बात उनसे जाननी चाही तो वे मेरी बात सुनकर मुस्कुरा कर बोले, "अरे वाह! तू तब बहुत छोटी थी फिर भी पहचान गई।"  मैं बोली कि आपके बारे में बहुत सी बातें सुनी थी माँ-पिताजी से इसलिए याद है।  लेकिन अब आप बहुत बूढ़े हो गए है न, इसलिए आज  पहचान नहीं पाई थी और फिर समय भी तो बहुत निकल गया।"  मेरी बातें सुनकर वे बोले 'हाँ बेटी ये बात तो है, समय-समय की बात होती है।"  मैंने उनसे कहा कि अब जब वे मेरे घर के पास तक आये हैं तो घर चलकर चाय-पानी लेंगे तो मुझे अच्छा लगेगा', पहले तो वे बोले 'फिरआऊँगा, मेरा बेटा मुझे लेने आता ही होगा तो मैंने उनसे कहा कि वे उन्हें मोबाइल कर दें, तो मैं उनसे बात कर मेरे घर का पता समझा दूंगी।  उन्हें  मेरे बातों में अपनापन लगा तो उन्होंने अपने बेटे को मोबाइल लगाकर मेरे से बात कराई तो मैंने उन्हें अपना घर का पता बताते हुए एक घंटे बाद आने को कहा।  घर आकर मैंने उन्हें अपने बगीचे में कुर्सी लगाकर धूप में बिठाया और फिर बच्चों और पति से परिचय कराया। बच्चे और पतिदेव उनसे गप्पियाते रहें और मैं खाना बनाने में लगी रही।  जब मैंने खाना तैयार किया और उन्हें खाने में बगीचे में उगी कंडाली की भाजी और घी लगाकर कोदू की गरमागरम दो रोटी खिलाई तो उनका गला भर आया कहने लगे, 'बेटा कई माह बाद आज लगा कुछ अच्छा खाया है, गांव की याद ताजी करा दी तूने, भगवान तेरा भला करे। सुनकर मुझे भी ख़ुशी हुई।  मैंने जब उनके पूछा कि क्या वे अब गांव नहीं रहते हैं तो वे बोले, 'दो बेटे हैं एक तो मुम्बई में नौकरी करता है और उसके बाल-बच्चे वही हैं। दूसरा ये छोटा बेटा जिसके साथ मैं पिछले चार वर्ष से दिल्ली में रह रहा था, अभी कुछ दिन हुए उसका प्रमोशन हुआ तो उसकी यहाँ पोस्टिंग हो गयी है।  मेरे पूछने पर कि आपका बेटा कहाँ नौकरी करते हैं तो उन्होंने बताया कि वे एलआईसी में हैं।  उन्होंने मुझे बताया कि उन्हें तो गांव में ही अच्छा लगता था, गंठा-ताबीज और छल पूजने आदि का काम-धन्धा भी चल ही रहा था, लेकिन बूढ़ा होने और तबियत ठीक न होने की वजह से वे छोटे के साथ दिल्ली आ गए।  अब यहीं पास ही में एलआईसी की कॉलोनी में रह रहे हैं।  उनकी बातें सुनकर मैंने उन्हें फिर घूमते-फिरते, आते- जाते रहना कहा।  इतने में उनका लड़का भी उन्हें लेने आ चुका था। उन्होंने उसे बगीचे में बैठे -बैठे शायद पहले ही मोबाइल लगाकर हमारे घर का पता बता दिया था।  वे अपने बेटे के साथ  अपने घर चल दिए तो मुझे भी आफिस के लिए देर हो रही थी इसलिए मैंने भी उन्हें 'नमस्ते के साथ 'आते-जाते रहना, अच्छा लगता है, कहा और वे अपने घर और मैं आफिस के लिए निकल पड़ी।  

ऑफिस पहुँचकर जब लंच करने बैठी तो, अचानक उनका एक किस्सा याद आया, जो मैंने माँ से सुना था। मैं याद कर लिखती हूँ और आप भी सुनते चलिए -

हमारे ये गांव वाले बाबा जिनके बारे में मैंने अभी आपको बताया है उसे पढ़कर आप समझ ही गए होंगे। बात तब की है जब ये बाबा गांव में गंठा-ताबीज और छल पूजने का काम करते थे।  छल मतलब लोगों पर लगा भूत भागते थे।  एक बार दिल्ली में रहने वाले एक गांव के व्यक्ति ने उन्हें अपनी पत्नी का भूत भगाने के लिए बुलाया। वे यह सोचकर कि चलो इसी बहाने दिल्ली घूमना भी हो जाएगा और साथ में उनका काम करके आ जाऊँगा। वे गांव से जब एक दूसरे व्यक्ति के साथ दिल्ली पहुंचे तो उन्होंने उसे बुलाने वाले के घर छोड़ दिया। दो दिन दिल्ली घूमने के बाद उन्होंने बुलाने वाले की पत्नी का भूत भगाने के जंत्र-तंत्र करके पहले तो दिन में मुर्गा कटवाया और फिर रात में भूत को भगाने के लिए वे उनकी पत्नी को कम्बल ओढ़ाकर, उसके हाथ में दरांती पकड़ाकर मौन होकर उसके पीछे-पीछे जमुना नदी की ओर बढ़ने लगे। पैदल-पैदल चलकर वे जमुना नदी के किनारे पहुँचने ही वाले थे कि एक गस्ती पुलिस दल की नज़र उन पड़ी तो वे आशंकित होकर उनके पास दौड़े-दौड़े चले आये और उन्हें पकड़ते हुए बोले -'कहाँ भागकर ले जा रहे हो इस औरत को जादू-टोना करके?" पुलिस की बात सुनकर वे डरते हुए बोले - "साहब हम इन्हें भगाकर कहीं नहीं ले जा रहे हैं, हम तो इनका भूत उतारने के लिए ले जा रहे हैं। "  पुलिस वाले बोले- "क्या तुम्हें पता नहीं कि यह सब यहाँ नहीं चलता है?" तो उन्होंने बताया कि वे गांव से आये हैं, उन्हें नहीं पता"  पुलिस वालों ने उन्हें 'अब पता चलेगा' कहते हुए अपनी जीप में डाल दिया और दूसरी जीप को फ़ोन लगाकर उसमें  उस औरत को उसके घर पहुँचा दिया। उन्होंने पुलिस वालों को बहुत समझाने की कोशिश कि  लेकिन वे नहीं माने और उन्होंने थाने जाकर उनकी थोड़ी-बहुत मरम्मत भी कर दी।  वे थाने में बंद थे।  उनके पास उन लोगों का भी फ़ोन नंबर नहीं था। अब क्या करे बड़ी समस्या खड़ी हो गई उनके सामने।  ऐसे में जब रात वाले पुलिस वालों की शिफ्ट ख़त्म हुई और दूसरी शिफ्ट के कर्मचारी आये तो सौभाग्य से उसमें उनके गांव के पास का एक आदमी मिल गया तो उनकी जान में जान आई।  तब से दिल्ली के नाम से बहुत घबराते थे और उन्होंने कसम खा ली कि  फिर वे दिल्ली में किसी का भूत उतरने नहीं आएंगे। 

कैसी रही हमारे गांव वाले बाबा की आप-बीती ...

तो अब आप उन्हें याद कीजिये और कल तक गुनगुनाते रहिए -- 


"  आते जाते खूबसूरत आवारा सड़कों पे

कभी कभी इत्तेफ़ाक़ से

कितने अंजान लोग मिल जाते हैं

उन में से कुछ लोग भूल जाते हैं

कुछ याद रह जाते हैं " ............................

 

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रचनाएँ
दैनन्दिनी : दुनियादारी की बातें
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दैनिक डायरी लिखने के लिए आज से पहले कभी सोचा न था। कारण मैं समझती हूँ कि अपने आस-पास या किसी विषय भी पर लिखने से अधिक अपनी दिनचर्या के बारे में लिखना कठिन है। लेकिन शब्द.इन मंच की बात ही कुछ और हैं, जहाँ आकर मैं देखती हूँ कि यहाँ जिस तरह से नवोदित लेखकों के मध्य स्वस्थ प्रतियोगिताओं के माध्यम से उन्हें निरंतर लिखते रहने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है, वह अन्य दूसरे मंचों पर प्राय: देखने को नहीं मिलता है। यद्यपि एक माह में 20 पोस्ट लिखना कठिन जान पड़ रहा है, फिर भी एक माह में निर्धारित दैनन्दिनी लिखने का मेरा सम्पूर्ण प्रयत्न रहेगा, जहाँ मैं देखना चाहूँगी कि इस दिशा में मैं कहाँ तक सफल रहूँगी।
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