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सिटी मार्केट की घिच पिच और पुच पिच में ....

16 फरवरी 2022

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ये आजकल के बच्चे भी न, कितना भी इन्हें समझा लो कि बेटा अपनी चीजों को सावधानी के साथ संभालकर जगह पर रखा करो, लेकिन ये दो-चार दिन तो ठाक-ठाक चलेंगे  और फिर वही अपने पुराने ढर्रे पर आ जाएंगे।  वही ढाक के तीन पात।  न अपनी चीजें संभालकर रखेंगे न सावधानी बरतेंगे।  

आज दिन में भी वही हुआ लापरवाही से अपना मोबाइल गिरा दिया, जिससे उसकी स्क्रीन टूट गई और फिर जब मैंने पूछा  कि किसने गिराया तो राजनीतिक दलों की तरह एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने बैठ गए। नुक्सान हुआ है आगे संभल जाए लेकिन नहीं, फिर-फिर वही गलती दोहराते जाएंगे।  अब मुझे चिंता हुई तो मैंने उनके पापा को सिटी जाकर ठीक करके लाने को क्या कहा कि वे तो मेरे पीछे ही पड़ गए।  कहने लगे तू चलेगी तो चलूँगा। मैंने कहा अरे मुझे कुछ कहानी और दैनन्दिनी भी तो लिखनी है, देर हो जायेगी।  कहने लगे अरे खाने की चिंता मत कर, वहीँ से कुछ लेते आएंगे। कभी -कभार बाहर का भी खा लेना चाहिए। मैंने भी सोचा चलो इतना कह रहे हैं, तो चलती हूँ, वैसे भी सिटी मार्केट गए एक-डेढ़ वर्ष हो गए होंगे, तो सोचा देख आते हैं।

बच्चों का मोबाइल ठीक कराने के बहाने जल्दी से तैयार होकर सिटी मार्केट को निकल पड़े। घर से न्यू मार्केट और फिर सीधे बड़े तालाब होते हुए जैसे-तैसे हम वाहनों की रेल-पेल में घिसते-पिसते सिटी मार्केट पहुंचे तो बड़ी राहत मिली। सिटी मार्केट में मोबाइल रिपेयरिंग की दो-चार दुकाने खंगालने के बाद एक दुकान में उसके पार्ट मिले तो हमने राहत की सांस ली।   मोबाइल ठीक करने में लगभग एक घंटे का समय रिपेयरिंग वाले ने बताया था, तो हम निकले सिटी मार्केट के नज़ारे देखने
हम पैंया-पैंया चल रहे थे। मैंने इधर-इधर आंखे घुमा-घुमा कर देखा कि कुछ तो नया होगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं मिला। अलबत्ता पहले से ज्यादा दौड़ते-भागते वाहनों की घिच पिच में फँसतें, गिरते-पड़ते लोग।  संकरी सड़क पर छोटे-बड़े वाहनों का तांता और उनके किनारे दुकानों के आगे रेहड़ी खड़ी कर छोटा-मोटा घरेलु और खाने-पीने का सामान बेचते जिदंगी की गाड़ी खींचते लोग मन व्यग्र करने के लिए काफी था। इसी व्यग्रता के चलते थोड़ी प्यास लगी तो इधर-उधर नज़र घुमाई तो एक प्याऊ दिखाई दिया तो यह सोचकर अच्छा लगा कि चलो किसी ने तो कम से कम यहाँ के दुकानदारों और आते-जाते लोगों के लिए पुण्य का काम किया है। मैं अपना सूखता कंठ उसके पास ले गई, लेकिन यह क्या! मैंने जब नल का कान मरोड़ा तो वह बेचारा मुझे स्वयं ही प्यासा तड़फता मिला। मैंने प्याऊ के चारों ओर नज़र घुमाई। उसके आगे एक बूढ़ा आदमी ठेला लगाकर बच्चों की घड़ियों बेच रहा था, बाकी तीनों ओर वह इस तरह छोटे-मोटे वाहनोंं से अटा-पटा था कि उसे साँस लेना भी दुश्वार हो रहा था। ऐसे हालात में मुझे पुण्य कमाने वाले का स्मरण हुआ तो उसमें सिटी के माननीय विधायक और पार्षद महोदय के नाम के पट्टिका नज़र आई तो मेरे सूखते कंठ में पानी भर आया और मैं धन्य हो गई। 

सिटी बाज़ार बहुत बड़ा है और मैं धीरे-धीरे चलकर इसे और करीब से देखना चाहती थी, इसलिए चलती जा रही थी। आगे चलते-चलते देख रही थी कि सोचा चाय पी जाय, तो एक ठेले पर रुकी। वहां चाय पीते-पीते देख रही थी कि दुकानकार और ग्राहकों के साथ सड़क पर आने-जाने लोग सड़क किनारे लगे पान-गुटखे, बीड़ी-सिगरेट के ठेलों से बीड़ी-सिगरेट खरीदकर-

"मैं जिन्दगी का साथ निभाता चला गया, 

हर फ़िक्र को धुंएँ में उडाता चला गया" .....   में गगन हो रहे थे।  और गुटके वालों का तो मत पूछो, शायद ही कोई ऐसी जगह मिले जहाँ ये अपने झंडे नहीं गाड़ते नज़र आये- 

"मल-मल कर गुटका मुंह में डालकर 

हुए हम चिंता मुक्त हाथ झाड़कर 

सड़क अपनी चलते-फिरते सब लोग अपने 

फिर काहे की चिंता? गर थूक दे इधर-उधर" 

एक घंटा इधर-उधर भटकने के बाद सिटी मार्केट की गलियारों से मन भरा और मोबाइल की याद आयी तो दुकान पहुँचकर मोबाइल उठाया और बिना इधर-उधर, देखे-भाले सीधे-साधे ढंग से अपने कुनबे में लौट आये। 


आज की मुलाकात बस इतनी   

कर लेना बातें कल ... ..

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रचनाएँ
दैनन्दिनी : दुनियादारी की बातें
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दैनिक डायरी लिखने के लिए आज से पहले कभी सोचा न था। कारण मैं समझती हूँ कि अपने आस-पास या किसी विषय भी पर लिखने से अधिक अपनी दिनचर्या के बारे में लिखना कठिन है। लेकिन शब्द.इन मंच की बात ही कुछ और हैं, जहाँ आकर मैं देखती हूँ कि यहाँ जिस तरह से नवोदित लेखकों के मध्य स्वस्थ प्रतियोगिताओं के माध्यम से उन्हें निरंतर लिखते रहने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है, वह अन्य दूसरे मंचों पर प्राय: देखने को नहीं मिलता है। यद्यपि एक माह में 20 पोस्ट लिखना कठिन जान पड़ रहा है, फिर भी एक माह में निर्धारित दैनन्दिनी लिखने का मेरा सम्पूर्ण प्रयत्न रहेगा, जहाँ मैं देखना चाहूँगी कि इस दिशा में मैं कहाँ तक सफल रहूँगी।
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एक बेचारा 1760 काम का मारा

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तेरा साथ है तो .....

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अपनी जड़ों के करीब ...

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आज रात मुझे एक जगह लड़की के विवाह समारोह तो दूसरी जगह बिटिया के जन्मोत्सव में सम्मिलित होने जाना है, इसलिए सोचा इससे पहले आज कुछ लिखती चलूँ।  कल शब्द.इन की पेड पुस्तक प्रतियोगिता के लिए "प्यार का खत लि

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अभी सुबह-शाम ठण्ड है इसलिए सुबह देर तक रजाई में घुसे रहना अच्छा लगता है और सुबह अच्छी गहरी नींद भी आती है। लेकिन इससे पहले कि मैं आज देर से जागती तड़के मोबाइल की घंटी घनघनाने लगी तो उनींदी आँखों से मोब

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बुढ़ापा आ गया सरकार हिम्मत हार बैठा हूँ

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हमारे ऑफिस में पदस्थ एक महिला अधीक्षक कई वर्ष पूर्व सेवानिवृत्त हुई हैं। उनके पति उनसे पहले सेवानिवृत हो गए थे।  वे एक सरकारी स्कूल में प्राइमरी के अध्यापक थे। वे दोनों हमारे घर से कुछ ही दूरी पर रहते

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आज का दिन मेरी ख़ुशी का दिन है। आप सोच रहे होंगे किस बात की ख़ुशी।  तो आपको बताती चलूँ कि आज मेरी बिटिया का जन्मदिन है। शादी के एक बहुत लम्बे पीड़ादायी अंतराल के बाद बच्चों से सूने घर में ख़ुशी की किलकारी

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27 फरवरी 2022
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आज सुबह जैसे ही मैं जागी तो मैंने देखा कि मेरे पतिदेव बड़ी उत्सुकता के साथ मेरे सामने खूबसूरत पैकिंग किया हुआ उपहार अपने हाथों में पकड़े हुए खड़े थे। वे मुझे देखकर चुपचाप खड़े-खड़े मंद-मंद मुस्कुराते ज

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