पिछले दो वर्ष से अधिक समय से कोरोना के मारे घर में मुर्गा-मुर्गियों के दबड़े की तरह उसमें दुबक कर रह गए थे। अभी दो चार दिन से मौसम का मिजाज गर्मियाने लगा तो सोचा सुबह-सुबह घूमने-फिरने की शुरुआत की जाय। इसी उद्देश्य से आज सुबह-सुबह उठकर हमारे घर से थोड़ी दूरी पर बन रहे स्मार्ट सिटी की सड़क पर निकल पड़ी। स्मार्ट सिटी बनने की रफ़्तार को देखकर कोई भी बता सकता है कि इसे पूरा होने में अभी लम्बा समय लगेगा, लेकिन इसके चारों ओर स्मार्ट सड़कें बनकर तैयार हैं, जो बहुत आकर्षक हैं। सड़क के दोनों किनारों पर विभिन्न प्रकार के फूलों से लदी डालियों के बीच सुन्दर-सुन्दर पेड़-पौधों के साथ ही बैठने के लिए लगाईं गई उत्तम लकड़ी की कुर्सियां और बेंच लोगों का घ्यान अपनी ओर आकर्षित करते हैं। यहाँ सुबह-शाम घूमने-फिरने वालों का मेला लगा रहता है। जहाँ हमें तरह-तरह के लोग देखने को मिलते हैं और ऐसे लोगों के बीच कभी -कभी कोई अपना भूला-भटका मिल जाता है ख़ुशी होती है।
आज सुबह जब मैं अपने मोहल्ले की एक महिला के साथ अभी स्मार्ट सिटी की मनमोहक सड़क पर टहलते हुए कुछ ही कदम चले होंगे कि अचानक ऐसा कुछ हुआ कि मुझे लगा स्मार्ट सिटी की स्मार्ट सड़क की किसी ने जैसे हवा निकाल ली हो। हुआ यूँ कि हम दोनों स्मार्ट सिटी की सड़क की सुंदरता में खोये और बतियाते हुए उसे इधर-उधर से देख रहे थे कि तभी मेरी मोहल्ले की महिला का किसी चीज पर पांव क्या पड़ा कि वह फिसलते-फिसलते बच गई। मैंने ऐन वक्त पर अगर उसका हाथ नहीं पकड़ा होता तो निश्चित ही उसे गंभीर चोट लग सकती थी। मैंने उसे संभाला और कहा कि क्या हुआ तो वह घबराते हुए अपनी चप्पलों पर लगा चिपचिपा दिखाते हुए बोली- 'ऐ ,छी, छी, देखो! तो किसी ने कुत्ते को यहाँ हगा रखा था।' और वह गुस्से में इधर-उधर कुत्ते घुमाने वालों को देखते हुए अपना गुस्सा उतारने के लिए उन्हें गाली देते हुए बड़बड़ाने लगी। मैंने उसे जैसे-तैसे चुप कराना चाहा और उसकी चप्पल में लगी पोटी निकालने के लिए किनारे से एक बड़ा पत्थर उठा कर दिया तो मेरे हाथ में ताजे-ताजे गुटखे की पीक क्या लगी कि वह गाली देना भूल गई और मेरी उँगलियों पर लगी पीक मुझे दिखाकर जोर-जोर से हँसने लगी। मैं अवाक। उसकी हँसी रोकने के नाम ही नहीं ले रही थी। यह नज़ारा देखकर आस-पास घूमने-फिरने वाले कोई हँस पड़ता तो कोई मुस्कुराते निकल जाता। वह हँसते हुए कही जा रही अब तू भी दे गाली, अभी तो मुझे चुप कर रही थी। अब मेरी बारी थी गाली देने की, लेकिन किसे दूँ और किसे छोड़ दूँ, दुविधा में मौन होकर बस चुपचाप देखती चली गयी। सुबह की सैर का सारा मजा किरकिरा हो गया। सोचती हूँ क्या मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है, लेकिन फिर सोचती हूँ नहीं यह तो सबके साथ होता है। हाँ ये बात अलग है सबको बहुत कुछ दिखते हुए भी कुछ नहीं दिखता है। शायद यही अंतर है।
हम दोनों जैसे-तैसे थोड़ी देर और घूमते रहे और फिर खट्टे मन से घर लौट चले। घर लौटते समय मैं स्मार्ट सिटी की सड़कों पर पलीता लगाते लोगों की बारे में सोचती रही कि स्मार्ट सिटी तो एक दिन जरूर बनकर तैयार हो जाएगी, लेकिन क्या उन लोगों को कभी स्मार्ट बनाया जा सकेगा? जो सुबह-सुबह अपने पालतू कुत्तों को जगह-जगह हगाने बिठा देते हैं और पान-गुटके की पीक से हर जगह गन्दगी फ़ैलाने से बाज नहीं आते हैं।
सोचती हूँ जब हमारे भोपाल में स्मार्ट सिटी बन के तैयार जाएगी, तब स्मार्ट सिटी का जो उद्देश्य “परंपरा एवं विरासत से भरे, झीलों के शहर भोपाल को शिक्षा, अनुसंधान, उद्यमता तथा पर्यटन पर केन्द्रित स्मार्ट, नियोजित, पर्यावरण हितैषी समुदायों का एक प्रमुख गंतव्य बनाना” है, उसके लिए स्मार्ट लोग कहाँ से आयातित करेंगे।
शेष फिर .....
तब तक गुनगुनाते रहिए . ...
" कौन सुनेगा किसको सुनाये
कौन सुनेगा किसको सुनाये
इस लिए चुप रहते हैं
हमसे अपने रूठ न जाएँ
हमसे अपने रूठ न जाएँ
इस लिए चुप रहते हैं"
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