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जब बात अपनी हो तो ......

19 फरवरी 2022

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आज हमारी बिल्डिंग के सामने वाली बिल्डिंग में रहने वाले खरे साहब की लड़की का रिसेप्शन है। खरे साहब और उनकी श्रीमती जी दोनों नौकरी करते हैं।  उनके दो बच्चे हैं।  एक लड़का है एक लड़की। लड़का वकालत करता है और लड़की चेन्नई में किसी बड़ी कंपनी में नौकरी करती है। कल होटल पलाश में उसकी शादी संपन्न हुई है और आज उनके घर के पास ही एक भवन में उसका रिसेप्शन रखा गया है। हमारी बिल्डिंग में उन्होंने केवल हमें ही रिसेप्शन में बुलाया है। इसका कारण केवल यह है कि रात को जब हर दिन हम पति-पत्नी खाना खाकर टहलने निकलते हैं तो वे दोनों और उनका बेटा भी हमारे साथ-साथ घूमता है। घूमते-घामते कुछ घर तो कुछ इधर-उधर की बातें हो जाती हैं। अभी कुछ दिन पहले उनकी बेटी चेन्नई से लौटी तो हमारे पूछने पर उन्होंने बताया कि १८ तारीख को उनकी बेटी की शादी है। उसके ससुराल वाले दिल्ली में रहते हैं। लड़का इंजीनियर है और वह खजुराहों में सर्विस करता है। जब हमने उनसे पूछा कि फिर तो लड़की को नौकरी छोड़नी पड़ेगी तो वे बोले नहीं वे एडजस्ट कर लेंगे। मैंने सोचा हाँ आजकल का जमाना ही ऐसा है, क्या करे? 

शादी की तैयारी के बारे में पूछने पर वे बोले कि शादी होटल से हैं और बाराती सब वहीँ ठहरेंगे और वहीं शादी के फेरे भी लग जाएंगे, तैयारी क्या करना, सब तैयार ही समझो। मैं सोचने लगी हाँ, पैसा है तो फिर शादी के तैयारी में महीनों सर खपा कर क्या करना, झट से होटल बुक कराओ और पट से वहीँ फेरे लगवा कर वहीँ से विदा कर दो। घर आकर दो घूँट पानी पिलाने का कष्ट भी किसी को नहीं उठाना पड़ेगा।

खैर शादी तो हो गई है, लेकिन घराती-बाराती अभी वहीँ होटल में ही हैं, शायद १ बजे से ६ बजे तक रिसेप्शन का समय जो उन्होंने कार्ड पर दिया है, उसी के अनुसार आएंगे सभी। तो अब हम भी वहीँ  दावत उड़ाएंगे। दूर तो जाना नहीं है १०० कदम पैंया-पैंया भर चलना है इसलिए सोच रहीं हूँ क्या सजना-संवारना, लेकिन फिर सोच रही हूँ अरे मेरा भी तो ससुराल दिल्ली है, इसलिए थोड़ा-बहुत मेकअप-शेकप कर कुछ अच्छा पहन ही लूँ। 

मैं सोचती हूँ जब घर से दूर शादी की पार्टी में जाना होता है तो मन को भी अच्छा लगता है। और लगेगा क्यों नहीं, रोज-रोज थोड़े ही होती हैं ऐसी पार्टियां और सोचो तो जब रास्ते में भी चलते-चलते कोई अपने लोग, रिश्तेदार, दूर-बाहर के परिचित टकरा जाते हैं, तो फिर उनसे इसी बहाने जो दो चार बातें हो जाती हैं, क्या वह किसी सुकून से कम है? लेकिन आज तो ऐसा कुछ होने से रहा, इसलिए चिंतित हूँ।  बहुत समय से सोचती रही कि आखिर उन्होंने क्यों अपने घर के  पास एक ऐसे भवन में रिसेप्शन रखा, जहाँ वे रिसेप्शन रखना तो दूर वहाँ झाँकना भी गँवारा नहीं समझते थे। उनकी हमेशा कुछ न कुछ शिकायत रहती ही थी। अगर उन्हें जब कभी उसमें शादी-ब्याह, जन्मदिन, शादी की वर्षगांठ, सगाई प्रोग्राम या फिर किसी समाज विशेष का कार्यक्रम होता दिखता तो उन्हें एक अजीब तरह की चिढ़ सी मच मचने लगती और वे जाने क्या-क्या नहीं कह जाते। उन्हें सबसे ज्यादा परेशानी इस बात की होती कि जब बड़े-बड़े स्वर्णाक्षरों में इस भवन पर 'शासकीय महर्षि वाल्मीकि छात्रावास भवन'  और उसके नीचे आदिम जाति अनुसूचित जाति विभाग लिखा है, तो यह तो एक शासकीय छात्रावास है, फिर यहाँ व्यक्तिगत कार्यक्रम संपन्न कराने की परमिशन क्यों दी जाती है और फिर यह एकदम सड़क के किनारे भी हैं, जहाँ कार्यक्रम में शामिल लोग-बाग़ अपनी-अपनी गाड़ियाँ सड़क पर लगा देते हैं, जिससे सड़क मार्ग अवरुद्ध हो जाता है।  और एक बड़ी बात यह भी है कि इन पार्टियों से जो दुनियाभर कचरा निकलता है, वह वहीँ बाहर कई दिन तक सड़ता-गलता है, जिसके कारण सड़क आने-जाने और आस-पास के रहने वालों को जो पार्टियों की गंध सूँघनी पड़ती है, उसे कौन समझेगा, देखेगा।  उनकी इन बातों को मैंने न कभी सिरे से ख़ारिज किया और नहीं कर सकती हूँ। लेकिन बहुत सी सामाजिक बिडम्बनाएं हैं जहाँ हम सभी चुप्पी साध लेने में ही अपनी भलाई समझते हैं।   

खैर जब बात अपनी हो तो फिर जिसकी हम लाख बुराई करते हों, उसे भी सारे शिकवे-गिलवे भुलाकर गले लगाना पड़ता है, उसे अच्छा मानना ही पड़ता है। 

अब हम चले दावत उड़ाने,पेट में चूहे कूद रहे हैं  ...

और कल तक आप ये गीत गुनगुनाते रहिए -    

            तेरे बिना ज़िन्दगी से कोई 

           शिकवा तो नहीं, शिकवा नहीं


Dinesh Dubey

Dinesh Dubey

बहुत बढ़िया लिखा

20 फरवरी 2022

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रचनाएँ
दैनन्दिनी : दुनियादारी की बातें
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दैनिक डायरी लिखने के लिए आज से पहले कभी सोचा न था। कारण मैं समझती हूँ कि अपने आस-पास या किसी विषय भी पर लिखने से अधिक अपनी दिनचर्या के बारे में लिखना कठिन है। लेकिन शब्द.इन मंच की बात ही कुछ और हैं, जहाँ आकर मैं देखती हूँ कि यहाँ जिस तरह से नवोदित लेखकों के मध्य स्वस्थ प्रतियोगिताओं के माध्यम से उन्हें निरंतर लिखते रहने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है, वह अन्य दूसरे मंचों पर प्राय: देखने को नहीं मिलता है। यद्यपि एक माह में 20 पोस्ट लिखना कठिन जान पड़ रहा है, फिर भी एक माह में निर्धारित दैनन्दिनी लिखने का मेरा सम्पूर्ण प्रयत्न रहेगा, जहाँ मैं देखना चाहूँगी कि इस दिशा में मैं कहाँ तक सफल रहूँगी।
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तेरा साथ है तो...

3 फरवरी 2022
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ॐ गं गणपतये नमः  आज का दिन मेरे लिए विशेष है, क्योंकि आज मेरे  जीवनसाथी का जन्मदिन है, इसलिए मैंने सोचा क्यों न दैनन्दिनी का आगाज इस दिन विशेष से किया जाय। आज सुबह जब उठी तो सबसे पहले उठकर मैंने

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एक बेचारा 1760 काम का मारा

4 फरवरी 2022
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          आज सुबह 7 बजे के लगभग जब मैं नहा-धो, पूजा-पाठ कर किचन में खाना बनाने की जुगत में भिड़ी ही थी कि तभी दरवाजे की घंटी बजी तो मैंने बिटिया को देखने के लिए आवाज दी और अनुमान लगाने लगी कि आखिर इतनी

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मेरी बगिया का वसंत

5 फरवरी 2022
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                  ऑफिस की छुट्टी हो और ऊपर से जाड़े का मौसम हो तो सुबह आँख जरा देर से खुलती है। आज भी कुछ ऐसा ही हुआ।  सुबह जब उठकर बाहर निकली तो देखा कि बिल्डिंग की दूसरी मंजिल में रहने वाली हमारी

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अभी बात उसकी अधूरी है

6 फरवरी 2022
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आज रविवार है यानि छुट्टी का दिन, कामकाजी महिलाओं के लिए दफ्तर को भुलाकर देर तक सुख स्वप्नों में विचरण करते रहने का दिन। इसलिए आज दैनिक दिनचर्या से हटकर बहुत देर बाद जागना हुआ। अब भले ही हर छुट्टी के द

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माँ का संघर्ष जारी है

7 फरवरी 2022
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आज मेरी माँ का जन्मदिन है।  हरवर्ष  उनके जन्मदिन पर हम सभी भाई-बहिन उनकी ख़ुशी की खातिर थोड़ा-बहुत खाना-पीने का कार्यक्रम करते हैं तो उन्हें यह देख बड़ी ख़ुशी मिलती हैं।  इसलिए आज सुबह-सुबह सबसे पहले मैं

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तेरा साथ है तो .....

8 फरवरी 2022
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आज सुबह एक बहुत पुराने बक्से में रखे जमीन के कुछ कागजाद की जरुरत पड़ी तो उनके साथ मुझे मेरी एक पुरानी सखी (डायरी) भी मुस्कुराते मिल गई। मैंने उसे  गले लगाया तो वह चहककर बोली- "आखिर आ ही गई मेरी याद तुझ

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अपनी जड़ों के करीब ...

10 फरवरी 2022
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आज रात मुझे एक जगह लड़की के विवाह समारोह तो दूसरी जगह बिटिया के जन्मोत्सव में सम्मिलित होने जाना है, इसलिए सोचा इससे पहले आज कुछ लिखती चलूँ।  कल शब्द.इन की पेड पुस्तक प्रतियोगिता के लिए "प्यार का खत लि

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जिंदगी भर का घाव

12 फरवरी 2022
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अभी सुबह-शाम ठण्ड है इसलिए सुबह देर तक रजाई में घुसे रहना अच्छा लगता है और सुबह अच्छी गहरी नींद भी आती है। लेकिन इससे पहले कि मैं आज देर से जागती तड़के मोबाइल की घंटी घनघनाने लगी तो उनींदी आँखों से मोब

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नश्वर यह सारा अग-जग

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 आज भले ही छुट्टी का दिन था, लेकिन मैं और दिन की अपेक्षा जल्दी से उठी और कल जो मेरी ऑफिस की महिला मित्र के बड़े बेटे ने आत्महत्या की थी, उनके परिवार और रिश्तेदारों के लिए कुछ नाश्ता-पानी बनाकर ले गई। ऐ

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बुढ़ापा आ गया सरकार हिम्मत हार बैठा हूँ

14 फरवरी 2022
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हमारे ऑफिस में पदस्थ एक महिला अधीक्षक कई वर्ष पूर्व सेवानिवृत्त हुई हैं। उनके पति उनसे पहले सेवानिवृत हो गए थे।  वे एक सरकारी स्कूल में प्राइमरी के अध्यापक थे। वे दोनों हमारे घर से कुछ ही दूरी पर रहते

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ये पीने वाले बहुत ही अजीब होते हैं

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जमाना बदला तो उपस्थिति पंजी में हस्ताक्षर करने के स्थान पर पहले अंगूठा तो अब थोबड़ा दिखाकर हाजिरी लगनी क्या शुरू हुई कि समय पर ऑफिस जाना ही पड़ता है। पहले की तरह अब नहीं चलता कि देर से पहुंचे और कोई बहा

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सिटी मार्केट की घिच पिच और पुच पिच में ....

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ये आजकल के बच्चे भी न, कितना भी इन्हें समझा लो कि बेटा अपनी चीजों को सावधानी के साथ संभालकर जगह पर रखा करो, लेकिन ये दो-चार दिन तो ठाक-ठाक चलेंगे  और फिर वही अपने पुराने ढर्रे पर आ जाएंगे।  वही ढाक के

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गाँव-शहर में शोर पानी चोर-पानी चोर

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आज दो दिन हो गए। नल से पानी की एक बूँद भी नहीं टपकी।  ये पानी वाला डिपार्टमेंट भी बोलता कुछ और है और कर जाता कुछ और ही है।  इधर हमको कहा एक दिन की परीक्षा है और उधर दो दिन तक बिठा के रख दिया।  कहाँ तो

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माथे पर साइबर ठगी की बढ़ती चिंता की लकीरें

18 फरवरी 2022
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आज सुबह-सवेरे जब मैं घर से बाहर निकलकर आँगन में टहल रही थी, तो  एक लड़का और एक अधेड़ उम्र का आदमी मोटर सायकिल से उतरकर मुझे हमारे बिल्डिंग में रहने वाले यादव जी के घर का पता पूछने लगे। वे बहुत हैरान-परे

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19 फरवरी 2022
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आज का दिन मेरी ख़ुशी का दिन है। आप सोच रहे होंगे किस बात की ख़ुशी।  तो आपको बताती चलूँ कि आज मेरी बिटिया का जन्मदिन है। शादी के एक बहुत लम्बे पीड़ादायी अंतराल के बाद बच्चों से सूने घर में ख़ुशी की किलकारी

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21 फरवरी 2022
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आज सुबह-सुबह नहा धोकर जब मैं पूजा करने अपने घर के पास के मंदिर गई तो वहाँ मुझे एक बुजुर्ग बाबा जी बैठे मिले। वे मंदिर के बाहर अकेले बैठे थे। मैं जैसे ही पूजा कर मंदिर से जल्दी घर की ओर निकली तो उन्हों

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स्मार्ट सिटी की सड़कों पर पलीता लगाते लोग

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पिछले दो वर्ष से अधिक समय से कोरोना के मारे घर में मुर्गा-मुर्गियों के दबड़े की तरह उसमें दुबक कर रह गए थे। अभी दो चार दिन से मौसम का मिजाज गर्मियाने लगा तो सोचा सुबह-सुबह घूमने-फिरने की शुरुआत की जाय।

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25 फरवरी 2022
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आज सुबह घूमने नहीं जा पा रही हूँ। मेरे बेटे की १० वीं सीबीएसई के प्री.बोर्ड की परीक्षाएं चल रही हैं। वह बिस्तर पर बैठे-बैठे अपनी किताबों में खोया है और  और कभी-कभी ऑंखें बंद कर मनन कर रहा है। इस बार स

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कविता संग्रह का उपहार

27 फरवरी 2022
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आज सुबह जैसे ही मैं जागी तो मैंने देखा कि मेरे पतिदेव बड़ी उत्सुकता के साथ मेरे सामने खूबसूरत पैकिंग किया हुआ उपहार अपने हाथों में पकड़े हुए खड़े थे। वे मुझे देखकर चुपचाप खड़े-खड़े मंद-मंद मुस्कुराते ज

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