आज सुबह जैसे ही मैं जागी तो मैंने देखा कि मेरे पतिदेव बड़ी उत्सुकता के साथ मेरे सामने खूबसूरत पैकिंग किया हुआ उपहार अपने हाथों में पकड़े हुए खड़े थे। वे मुझे देखकर चुपचाप खड़े-खड़े मंद-मंद मुस्कुराते जा रहे थे। मैं सोचने लगी कि आज तो न तो किसी रिश्तेदार या परिचित के यहाँ न तो किसी की शादी है, न कोई जन्मदिन है, न शादी की वर्षगाँठ है और न गृह प्रवेश आदि कार्यक्रम है, फिर पति महोदय किसके लिए यह उपहार लेकर आये होंगे। मैं सोचने लगी कि कहीं मैं कुछ भूल तो नहीं रही हूँ। मैंने बहुत याद किया लेकिन मुझे कुछ याद नहीं आया। अब मुझसे अधिक देर तक चुप नहीं रह गया और जैसे ही इस बारे में मैंने उनसे बात करनी चाही, उन्होंने मेरे हाथों में वह उपहार रख दिया और फिर कुछ शिकायती लहज़े में कहने लगे, "देख! तू कहती हैं न कि मैं तेरे लिए कोई उपहार नहीं लाता, तो ये लो जी आज मैं तेरे लिए ऐसा उपहार लाया हूँ, जिसे देख तू हमेशा याद रखेगी।" मैंने आश्चर्य से पूछा," सच कह रहे हो न? कहीं सुबह-सुबह कोई मजाक-वजाक तो नहीं कर रहे हो?" वे चहकते हुए बोले-" हाँ भई हाँ। खोलकर खुद ही देख ले, फिर कहना?"
मैं उपहार की पैकिंग खोलते हुए सोच रही थी कि आज तक मैं ही इन्हें उपहार की बात तो दूर, छोटी-छोटी चीजें भी लाकर देनी पड़ती हैँ, फिर आज ये क्या उपहार देने चले मुझे, देखूँ तो और जैसे ही मैंने बाहर की पैकिंग उधेड़ी और अंदर झाँक कर देखा तो उसमें मुझेे 'सचिन कम्प्यूटर डेल्हीवेरी' कुरियर कंपनी का एक पेड 'कैश मेमो' जिसपर 'बुक' लिखा था, मिला तो मैं समझ गयी कि इसमें तो किताबें हैं। अब मेरी उत्सुकता बढ़ी कि देखूँ आखिर कौन सी किताबें हैं, मैंने जल्दी से फाड़ा और किताबें बाहर निकाली तो उन पर 'यूँ ही अचानक कहीं कुछ नहीं घटता" और नीचे 'कविता रावत' लिखा देखा तो मैं अवाक रह गई। मेरे मुंह से निकला, 'अरे! ये तो मेरी कविताओं का संग्रह है! ये कैसे छप गया!" यह सुनकर पतिदेव बोले,'बधाई हो। अब फिर कभी मत कहना कि मैं आज दिन तक तुम्हारे लिए कोई उपहार नहीं लाया।" मैं मुस्कुराते हुए 'हाँ, बाबा हाँ' कहते हुए किताब को उलट-पुलट कर देखने लगी और सोचती रही कि मैं खामख्वाह ही कभी-कभी इन्हें 'कभी कोई चीज नहीं लाते मेरे लिए' कह देती हूँ।
मैं और मेरे जीवनसाथी "साथी हाथ बढ़ाना, साथी हाथ बढ़ाना, एक अकेला थक जायेगा मिल कर बोझ उठाना" गीत की तरह हर कदम पर एक-दूसरे का साथ देते हैं, जिसका साक्ष्य मेरा यह 'यूँ ही अचानक कहीं कुछ नहीं घटता' काव्य संग्रह का प्रकाशन है। यदि वे शब्द.इन टीम की सहायता प्रकोष्ठ से सम्पर्क कर चुपके-चुपके मेरे इस 'कविता संग्रह' का प्रकाशन करवा कर मुझे उपहार स्वरुप भेंट न करते तो शायद इस कविता की कवितायेँ यूँ ही इधर-उधर बिखरी-बिखरी जाने कब तक मेरा मुँह ताकती रहती।
इस अमूल्य कृति प्रकाशन के लिए शब्द.इन टीम और मेरे जीवनसाथी का बहुत-बहुत धन्यवाद, आभार।
फिर मिलते हैं .. तब तक आप ये गीत गुनगुना कर देखिए ...
तेरा मेरा साथ रहे हो तेरा मेरा साथ रहे
धूप हो, छाया हो, दिन हो कि रात रहे
तेरा मेरा ...