आज सुबह 7 बजे के लगभग जब मैं नहा-धो, पूजा-पाठ कर किचन में खाना बनाने की जुगत में भिड़ी ही थी कि तभी दरवाजे की घंटी बजी तो मैंने बिटिया को देखने के लिए आवाज दी और अनुमान लगाने लगी कि आखिर इतनी ठण्ड में सुबह-सुबह कौन आया होगा कि बिटिया मेरे पास आकर कान में फुसफुसाई- " अरे मम्मी वही 1760 काम वाले भैया अपनी मम्मी के साथ आएं हैं, वही जिनकी शादी नहीं हो पा रही है.... " यह सुनते ही मैंने बिटिया को थोड़ी झिड़की दी कि तू सीधे-सीधे आकर भी तो बता सकती थी कि शैलू भैया अपनी माँ के साथ आये हैं तो वह फ़ौरन बिगड़कर यह बड़बड़ाते हुए दूसरे कमरे में चली गई- " अरे जब देखो वही तो कहते हैं उनके पास टाइम नहीं है 1760 काम हैं। हुँ देखो 1760 काम और कमाई-धमाई ज़ीरो, तभी तो कोई लड़की नहीं दे रहा है उनको।" अब मैं क्या करती, मैंने चुप रहना ही उचित समझा। उफ़ ये आजकल के बच्चे भी बिना आगे-पीछे सोचे कितना कुछ कह लेते हैं यह सोचते-सोचते मैं उनके पास पहुँची और मैंने इतनी सुबह-सुबह आने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि वे अभी इंदौर लड़की देखने जा रहे हैं और मुझे भी उनके साथ चलना होगा। मैंने उनसे कहा- " ये क्या बात हुई कि रास्ते में देखा लुहार और उसे बोलो लगा धौंकनी। अरे भई पहले बताना चाहिए था न, तैयारी संयारी करने में भी तो समय लगता है कि नहीं।" मेरी यह बात सुन वे दोनों एक साथ बोल उठे - " अरे छोड़ो तैयारी संयारी, चलो ऐसे ही, वही तो लड़की है जिसकी परसों फोटो और बायोडाटा आपने व्हाट्सएप से भेजा था। हमारी उन लोगों से बात हुई तो वे आकर देखने को कह रहे हैं तो हमने सोचा चलकर देख आने में क्या हर्ज है।"
थोड़ी देर यूँ ही बातें चली। यद्यपि उन्होंने मुझे साथ चलने के लिए बड़ा जोर दिखाया लेकिन जब मैंने उन्हें समझाया कि पहले वे दोनों आज जाकर उनका घर-परिवार और लड़की देख-समझ लें, फिर मैं जरूर चलूँगी तो वे मेरी बात से सहमत होकर अपनी मंजिल की तलाश के लिए फ़ौरन निकल पड़े। अब शेष हमारे 1760 काम वाले शैलू भैया इंदौर की क्या खबर सुनाते हैं अगले चरण में ... . ...
फिलहाल आप हमारे इस चिर-परिचित भैया जिसकी उम्र ३२ पार हो गई है और जो एम.कॉम, पीजीडीसीए, सीपीसीटी पास हैं और योगा में डिप्लोमा कर रहे हैं लेकिन जिन्हें सरकारी नौकरी नहीं होने और कमाई कम होने के कारण लड़की नहीं मिल पा रही है या लड़की वाले लड़की देने के लिए तैयार नहीं हो पा रहे हैं, जिसके लिए लड़की ढूंढने में हम भी जी-जान लगाने में पीछे नहीं हैै, जिनका तकिया कलाम 1760 काम हैं मेरे पास, उनके बारे में सोचते हुए मेरी उन्हें समर्पित यह रचना पढ़ते चलिए-
एक बेचारा 1760 काम का मारा
इधर-उधर मारा-मारा फिरता है
कोई तो ढूंढों एक सयानी बहू
अक्सर यही कहता रहता है
इस शहर से उस गांव तक
इसको देखा उसको देखा
पर किस्मत उसकी ऐसी
मिल न पाती कोई रेखा
कहता थक-हार गया हूँ मैं
अब व्यथा किसे सुनाऊँ मैं
गोरी-काली सब चलाऊँ
नखरे उसके सब उठाऊँ
पर शर्त यही की हो पढ़ी-लिखी
बताना जरूर यदि कहीं दिखी
परिवार संग घुलमिल रहे वह ऐसी
सब कहे बहू हो तो शैलू की जैसी