ॐ गं गणपतये नमः
आज का दिन मेरे लिए विशेष है, क्योंकि आज मेरे जीवनसाथी का जन्मदिन है, इसलिए मैंने सोचा क्यों न दैनन्दिनी का आगाज इस दिन विशेष से किया जाय। आज सुबह जब उठी तो सबसे पहले उठकर मैंने अपने जीवनसाथी को जन्मदिन की शुभकामनाएं दी। फिर हर दिन की तरह ही ऑफिस और बच्चों के लिए नाश्ता-खाना तैयार कर ऑफिस जाते-जाते बच्चों को केक बुक करने को कहकर निकल गयी। ऑफिस में रोजमर्रा के काम के बीच बहुत सी बातें मन में उमड़-घुमड़ती रही। मैं सोचती रही जिस तरह से मेरे हमसफ़र मेरा साथ देते हैं वैसे सभी लोगों के साथ भी हो तो फिर शायद मेरी तरह घर-दफ्तर के बीच झूलती महिलाओं को घर में सुकून का अनुभव जरूर होगा। पति-पत्नी यदि एक दूसरे के सहयोगी बनकर रहें तो फिर रोना किसी बात का न होगा। मैं यहाँ एक बात जरूर बताना चाहूंगी कि मेरे लिए घर और दफ्तर के बीच लिखते रहना कतई संभव नहीं रहता यदि वे आगे बढ़कर मुझे अपना पूर्ण सहयोग न करते। वे ही मेरे सबसे पहले पाठक, प्रूफ रीडर और एडिटर से लेकर प्रचारक-प्रसारक हैं। हम दोनों की घर गृहस्थी और देश दुनिया की गाड़ी दो बराबर के चक्कों से चलती है, इसलिए हम 1+ 1 = 2 नहीं बल्कि 11 हैं। आज बच्चों ने उन्हें अपनी तरफ से केक तो मैंने पुलाव और मटर पनीर, खीर के साथ गर्मागर्म पूरी खिलाई तो फिर फुर्सत पाकर कैसे क्या लिखूँ, क्या लिखूं की उधेड़बुन में आज की दैनन्दिनी उनके नाम करते हुए उनसे यही कहना चाहूँगी-
जब से मिले तुम मुझको
मेरे ख्याल बदल गए
जीने से बेजार था दिल
तुम बहार बन के आ गए
ख़ुशी होती है क्या जिंदगी में
न थी इसकी खबर मन को
जब से तुम मिले प्यार से
लगता पा लिया गगन को
सूनी फुलवारी में तुम
तुम बहार बन के आ गए
जब से मिले तुम मुझको
मेरे ख्याल बदल गए
दिल की बस्ती में राज तेरा
तुम मुस्कान बन होंठों पर छाए
जब से मिले तुम मुझको
मेरे ख्याल बदल गए
आज बस इतना ही ..