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गीतिका

सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'

19 अध्याय
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25 अप्रैल 2022 को पूर्ण की गई
निःशुल्क

गीतिका में संकलित अधिकांश गीतों का विषय प्रेम, यौवन और सौन्दर्य है, जिसकी अभिव्यक्ति के लिए निराला कहीं नारी को सम्बोधित करते हैं तो कहीं प्रकृति को, लेकिन आर्द्ध की चरम अवस्था में नारी और प्रकृति का भेद ही मिट जाता है और तब नारी तथा प्रकृति एकमेक हो उठती हैं। 

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पुस्तक के भाग

1

रँग गई पग-पग धन्य धरा

11 अप्रैल 2022
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रँग गई पग-पग धन्य धरा, हुई जग जगमग मनोहरा । वर्ण गन्ध धर, मधु मरन्द भर, तरु-उर की अरुणिमा तरुणतर खुली रूप - कलियों में पर भर           स्तर स्तर सुपरिसरा । गूँज उठा पिक-पावन पंचम खग-कुल-कलर

2

सखि, वसन्त आया

11 अप्रैल 2022
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सखि वसन्त आया । भरा हर्ष वन के मन,    नवोत्कर्ष छाया । किसलय-वसना नव-वय-लतिका मिली मधुर प्रिय-उर तरु-पतिका,    मधुप-वृन्द बन्दी   पिक-स्वर नभ सरसाया । लता-मुकुल-हार-गंध-भार भर, बही पवन बंद म

3

प्रिय यामिनी जागी

11 अप्रैल 2022
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प्रिय यामिनी जागी। अलस पंकज-दृग अरुण-मुख तरुण-अनुरागी। खुले केश अशेष शोभा भर रहे, पृष्ठ-ग्रीवा-बाहु-उर पर तर रहे, बादलों में घिर अपर दिनकर रहे, ज्योति की तन्वी, तड़ित द्युति ने क्षमा माँगी।

4

मुझे स्नेह क्या मिल न सकेगा

11 अप्रैल 2022
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मुझे स्नेह क्या मिल न सकेगा ? स्तब्ध दग्ध मेरे मरु का तरु क्या करुणाकर, खिल न सकेगा ? जग दूषित बीज नष्ट कर, पुलक-स्पन्द भर खिला स्पष्टतर, कृपा समीरण बहने पर क्या, कठिन हृदय यह हिल न सकेगा ?

5

मातृ वंदना

11 अप्रैल 2022
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नर जीवन के स्वार्थ सकल बलि हों तेरे चरणों पर, माँ मेरे श्रम सिंचित सब फल। जीवन के रथ पर चढ़कर सदा मृत्यु पथ पर बढ़ कर महाकाल के खरतर शर सह सकूँ, मुझे तू कर दृढ़तर; जागे मेरे उर में तेरी मूर्

6

रूखी री यह डाल

11 अप्रैल 2022
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 रुखी री यह डाल ,वसन वासन्ती लेगी देख खड़ी करती तप अपलक , हीरक-सी समीर माला जप शैल-सुता अपर्ण - अशना , पल्लव -वसना बनेगी वसन वासन्ती लेगी हार गले पहना फूलों का, ऋतुपति सकल सुकृत-कूलों का,

7

घन,गर्जन से भर दो वन

11 अप्रैल 2022
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घन,गर्जन से भर दो वन तरु-तरु-पादप-पादप-तन। अबतक गुँजन-गुँजन पर नाचीँ कलियाँ छबि-निर्भर; भौँरोँ ने मधु पी-पीकर माना, स्थिर मधु-ऋतु कानन। गरजो, हे मन्द्र, वज्र-स्वर; थर्राये भूधर-भूधर, झरझर

8

रे, न कुछ हुआ तो क्या ?

11 अप्रैल 2022
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रे, कुछ न हुआ, तो क्या ? जग धोका, तो रो क्या ? सब छाया से छाया, नभ नीला दिखलाया, तू घटा और बढ़ा और गया और आया; होता क्या, फिर हो क्या ? रे, कुछ न हुआ तो क्या ? चलता तू, थकता तू, रुक-रुक फि

9

कौन तम के पार ?

11 अप्रैल 2022
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कौन तम के पार ?-- (रे, कह) अखिल पल के स्रोत, जल-जग, गगन घन-घन-धार--(रे, कह) गंध-व्याकुल-कूल- उर-सर, लहर-कच कर कमल-मुख-पर, हर्ष-अलि हर स्पर्श-शर, सर, गूँज बारम्बार !-- (रे, कह) उदय मेम तम-भे

10

अस्ताचल रवि

11 अप्रैल 2022
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अस्ताचल रवि, जल छलछल-छवि, स्तब्ध विश्वकवि, जीवन उन्मन; मंद पवन बहती सुधि रह-रह परिमल की कह कथा पुरातन । दूर नदी पर नौका सुन्दर दीखी मृदुतर बहती ज्यों स्वर, वहाँ स्नेह की प्रतनु देह की बिना गे

11

दे, मैं करूँ वरण

11 अप्रैल 2022
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दे, मैं करूँ वरण जननि, दुखहरण पद-राग-रंजित मरण । भीरुता के बँधे पाश सब छिन्न हों, मार्ग के रोध विश्वास से भिन्न हों, आज्ञा, जननि, दिवस-निशि करूँ अनुसरण । लांछना इंधन, हृदय-तल जले अनल, भक्ति-

12

अनगिनित आ गए शरण में

11 अप्रैल 2022
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अनगिनित आ गए शरण में जन, जननि, सुरभि-सुमनावली खुली, मधुऋतु अवनि ! स्नेह से पंक-उर हुए पंकज मधुर, ऊर्ध्व-दृग गगन में देखते मुक्ति-मणि ! बीत रे गई निशि, देश लख हँसी दिशि, अखिल के कण्ठ की उठ

13

पावन करो नयन !

11 अप्रैल 2022
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रश्मि, नभ-नील-पर, सतत शत रूप धर, विश्व-छवि में उतर, लघु-कर करो चयन ! प्रतनु, शरदिन्दु-वर, पद्म-जल-बिन्दु पर, स्वप्न-जागृति सुघर, दुख-निशि करो शयन ! 

14

वर दे वीणावादिनी वर दे !

11 अप्रैल 2022
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वर दे, वीणावादिनि वर दे ! प्रिय स्वतंत्र-रव अमृत-मंत्र नव भारत में भर दे ! काट अंध-उर के बंधन-स्तर बहा जननि, ज्योतिर्मय निर्झर; कलुष-भेद-तम हर प्रकाश भर जगमग जग कर दे ! नव गति, नव लय, ताल-छ

15

बन्दूँ, पद सुन्दर तव

11 अप्रैल 2022
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बन्दूँ, पद सुंदर तव, छंद नवल स्वर-गौरव । जननि, जनक-जननि-जननि, जन्मभूमि-भाषे ! जागो, नव अम्बर-भर, ज्योतिस्तर-वासे ! उठे स्वरोर्मियों-मुखर दिककुमारिका-पिक-रव । दृग-दृग को रंजित कर अंजन भर द

16

जग का एक देखा तार

11 अप्रैल 2022
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जग का एक देखा तार । कंठ अगणित, देह सप्तक, मधुर-स्वर झंकार । बहु सुमन, बहुरंग, निर्मित एक सुन्दर हार; एक ही कर से गुँथा, उर एक शोभा-भार । गंध-शत अरविंद-नंदन विश्व-वंदन-सार, अखिल-उर-रंजन निरंजन

17

टूटें सकल बंध

11 अप्रैल 2022
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टूटें सकल बन्ध कलि के, दिशा-ज्ञान-गत हो बहे गन्ध। रुद्ध जो धार रे शिखर-निर्झर झरे मधुर कलरव भरे शून्य शत-शत रन्ध्र । रश्मि ऋजु खींच दे चित्र शत रंग के, वर्ण-जीवन फले, जागे तिमिर अन्ध ।

18

बुझे तृष्णाशा-विषानल

11 अप्रैल 2022
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बुझे तृष्णाशा-विषानल झरे भाषा अमृत-निर्झर, उमड़ प्राणों से गहनतर छा गगन लें अवनि के स्वर । ओस के धोए अनामिल पुष्प ज्यों खिल किरण चूमे, गंध-मुख मकरंद-उर सानन्द पुर-पुर लोग घूमे, मिटे कर्षण से धरा

19

प्रात तव द्वार पर

11 अप्रैल 2022
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प्रात तव द्वार पर, आया, जननि, नैश अन्ध पथ पार कर । लगे जो उपल पद, हुए उत्पल ज्ञात, कंटक चुभे जागरण बने अवदात, स्मृति में रहा पार करता हुआ रात, अवसन्न भी हूँ प्रसन्न मैं प्राप्तवर-- प्रात तव द्

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