भगवानदास मोरवाल की किताब 'हलाला' में इस्लाम के नियमों का एक पुनरावलोकन किया गया है, हलाला जैसे नियमों का प्रत्याख्यान किया गया है और स्त्री के संघर्ष का एक हैरतनाक चित्र खींचा गया है। और इन सबकी पृष्ठभूमि में मेवात की एक कहानी है जिसे लेखक अपने निराले अंदाज में कहता चला जाता है। इस उपन्यास की संरचना मोहित करती है और इसकी भाषा शैली इसे पढने के लिए विवश कर देती है। Read more