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Hindiinspirationalpoetry

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क्या कोई अपने जीवन सेकिसी और के कारणरूठ जाता है ? के उसका नियंत्रण खुद अपने जीवनसे झूट जाता है? हां जब रखते हो,तुम उम्मीद किसीऔर से,अपने सपने को साकार करने कीतो वो अक्सर टूट जाता हैजब भरोसा करते हो किसी पेउसे अपना जान कर,खसक जाती हैपैरों तले ज़मीन भीजब वो "अपना"अपनी मत

रात कितनी भी घनी हो सुबह हो ही जाती है चाहे कितने भी बादलघिरे होसूरज की किरणें बिखरही जाती हैंअंत कैसा भी होकभी घबराना नहींक्योंकि सूर्यास्त का मंज़रदेख कर भीलोगो के मुँह सेवाह निकल ही जाती हैरात कितनी भी घनी होसुबह हो ही जाती हैअगर नया अध्याय लिखना होतो थोड़ा कष्ट उठाना ह

जब भी अपने भीतर झांकता हूँ खुद को पहचान नहीं पाता हूँ ये मुझ में नया नया सा क्या है ?जो मैं कल था , आज वो बिलकुल नहींमेरा वख्त बदल गया , या बदलाअपनों ने हीमेरा बीता कल मुझे अब पहचानता, क्या है ? मन में हैं ढेरो सवालशायद जिनके नहीं मिलेंगे अ

चलो रस्मों रिवाज़ों को लांघ करकुछ दिल की सुनी जाये कुछ मन की करी जाये एक लिस्ट बनाते हैं अधूरी कुछ आशाओं कीउस लिस्ट की हर ख्वाहिश एक एक कर पूरी की जाये कुछ दिल की सुनी जाये कुछ मन की करी जाये कोई क्या सोचेगा कोई क्या कहेगा इन बंदिशों से परे हो के थोड़ी सांसें आज़ाद हवा मे

क्या ज़्यादा बोझिल है जब कोई पास न हो या कोई पास हो के भीपास न हो ?कोई दिल को समझा लेता है क्योंकि,उसका कोई अपनाहै ही नहींपर कोई ये भुलाये कैसेजब उसका कोई अपनासाथ हो के भी साथ न होजहाँ चारो ओर चेहरोंकी भीड़ हो अपनापन ओढ़ेअपनी ज़रूरत पर सब दिखेपर गौर करना, जब तुमने पुकारातो

मैं स्त्री हूँ , और सबकासम्मान रखना जानती हूँ कहना तो नहीं चाहतीपर फिर भी कहना चाहती हूँ किसी को ठेस लगे इस कविता सेतो पहले ही माफ़ी चाहती हूँ सवाल पूछा है और आपसेजवाब चाहती हूँक्या कोई पुरुष, पुरुष होने का सहीअर्थ समझ पाया हैया वो शारीरिक क्षमता को हीअपनी पुरुषता समझ

वो इश्क अब कहाँ मिलता है जो पहले हुआ करता था कोई मिले न मिलेउससे रूह का रिश्ताहुआ करता थाआज तो एक दँजाहीसी सी है,जब तक तू मेरी तब तक मैं तेराशर्तों पे चलने की रिवायतसी है ,मौसम भी करवट लेने से पहलेकुछ इशारा देता हैपर वो यूं बदला जैसे वो कभीहमारा न हुआ करता थामोहब्बत में

जाओ अब तुम्हारा इंतज़ार नहीं करूंगीके अब खुद को मायूस बार बार नहीं करूंगीबहुत घुमाया तुमने हमें अपनी मतलबपरस्ती मेंके अब ऐसे खुदगर्ज़ से कोई सरोकार नहीं रखूंगीरोज़ जीते रहे तुम्हारे झूठे वादों कोके अब मर के भी तुम्हारा ऐतबार नहीं करूंगीतरसते रहे तुझसे एक लफ्ज़ " मोहब्बत "

बात उन दिनों की है जब बचपन में घरोंदा बनाते थे उसे खूब प्यार से सजाते थे कही ढेर न हो जायेआंधी और तूफानों में उसके आगे पक्की दीवारबनाते थेवख्त गुज़रा पर खेल वहीअब भी ज़ारी हैबचपन में बनाया घरोंदाआज भी ज़ेहन पे हावी हैघर से निकला हूँकुछ कमाने के लिएथोड़ा जमा कर कुछ ईंटेंउस बचप

श्याम तेरी बन केमैं बड़ा पछताईन मीरा ही कहलाई न राधा सी तुझको भायी श्याम तेरी बन केमैं बड़ा पछताईन रहती कोई कसकमन मेंजो मैं सोचती सिर्फअपनी भलाईश्याम तेरी बन केमैं बड़ा पछताईसहने को और भीगम हैंपर कोई न लेना पीरपरायीश्याम तेरी बन केमैं बड़ा पछताईन कोई खबर न कोईठोर ठिकानाबहुत

सपने हमें न जानेक्या क्या दिखा जाते हैं हमें नींदों में न जानेकैसे कैसे अनुभव करा जाते हैंकभी कोई सपना यादरह जाता है अक्सरकभी लगता है ये जोअभी हुआ वो देखा साहै कही परसिर्फ एक धुंधली तस्वीरसे नज़र आते हैंसपने हमें न जानेक्या क्या दिखा जाते हैंकुछ सपने सजीलेऔर विरले भी होते

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