हे शारदे माँ, हे शारदे माँ
अज्ञानता से हमें तार दे माँ
हे शारदे माँ, हे शारदे माँ
अज्ञानता से हमें तार दे माँ
तू स्वर की देवी है, संगीत तुझसे
हर शब्द तेरा है, हर गीत तुझसे
तू स्वर की देवी है, संगीत तुझसे
हर शब्द तेरा है, हर गीत तुझसे
हम हैं अकेले, हम हैं अधूरे
तेरी शरण हम, हमें प्यार दे माँ
हे शारदे माँ, हे शारदे माँ...
मुनियों ने समझी, गुनियों ने जानी
वेदों की भाषा, पुराणों की बाणी
मुनियों ने समझी, गुनियों ने जानी
वेदों की भाषा, पुराणों की बाणी
हम भी तो समझे, हम भी तो जाने
विद्या का हमको अधिकार दे माँ
हे शारदे माँ, हे शारदे माँ...
तू श्वेतवर्णी, कमल पे विराजे
हाथों में वीणा, मुकुट सर पे साजे
तू श्वेतवर्णी, कमल पे विराजे
हाथों में वीणा, मुकुट सर पे साजे
मन से हमारे मिटा के अँधेरे
हमको उजालों का संसार दे माँ
हे शारदे माँ, हे शारदे माँ...
धन्यवाद आज बसंत पंचमी का त्यौहार हम सभी के लिए विशेष महत्व लिए हुए हैं। आप सभी द्वारा लिया गया इस कार्यक्रम में अंश ग्रहण प्रशंसनीय है। आज का यह दिन न सिर्फ बच्चों के लिए वर्णन बड़ों के लिए भी वंदनीय हैं। क्योंकि जीवन की राह में हम सभी विद्यार्थी हैं। कभी पुस्तकीय ज्ञान, तो कभी जीवन के थपेड़े हमेंं नए अध्याय सिखा जाते हैं।
हम सब की वंदनीय मां सरस्वती का जन्मोत्सव हम सभी के लिए हर्षोल्लास का विषय है। आज हम सभी मां सरस्वती को शत-शत नमन करते हैं और उनसे अनुरोध करते हैं कि वे हमें सुबुद्धि प्रदान करें।
बुद्धि तो सभी के पास होती है लेकिन उसे सत् दिशा में ले चलना हर किसी के बूते की बात नहीं रहती। सदैव सच्चाई के पथ पर चलते हुए हमें अपने जीवन को अग्रसर करना चाहिए। कोशिश करनी चाहिए कि इस जीवन में हम दीन दुखियों का भला कर सके और यही हमारे जीवन का उद्देश्य भी होना चाहिए।
श्रीविद्या के इन वक्तव्यों पर तालियों की गड़गड़ाहट सुनाई देने लगी। अंत में राष्ट्रीय गीत के साथ ही असेंबली का समापन हुआ। सभी विद्यार्थी असेंबली हॉल से अपने-अपने कक्ष में पहुंचने लगे।
पंक्तिबद्ध कतार के टूटते ही श्रीविद्या ने तुरंत आकर बच्चों को टोका। उन्हें कतार में हैंड्स बैक में रखकर चलने को कहा।
अनुशासनप्रिय श्रीविद्या सदैव ही बच्चों को अनुशासन में रहने की बात कहती थी। बिना अनुशासन के जीवन उत्श्रृंखल हो जाता है वह सदैव विद्यार्थियों के सामने, ऐसा कहती नहीं थकती थी।
गुड मॉर्निंग सुप्रिया मैम! श्रीविद्या ने पंक्ति बद्ध कतार के सामने खड़ी मैम से कहा।
गुड मॉर्निंग श्रीविद्या। तुम्हारा वक्तव्य सदैव ही काबिले तारीफ रहता है। सच कहा तुमने हम सभी जीवन पथ पर विद्यार्थी हैं।
गुड मॉर्निंग मिसेज आशिया मैम! कैसी है? आप की तबीयत कैसी है मैम और पांव का दर्द?
गुड मॉर्निंग श्रीविद्या! आज तबीयत थोड़ी ठीक है। हां, पांव का दर्द भी ठीक है बेटा और......
हां मैम, तनुश्री भी ठीक है। बस थोड़ा नटखटपन उसका बढ़ता जा रहा है। लेकिन आज बहाना बनाकर घर पर ही रह गई। नहीं आई स्कूल, कहते हुए हंसने लगी।
मेरे कुछ भी कहने से पहले पता नहीं तुम्हें कैसे पता चल जाता है, मैं क्या कहना,पूछना चाहती हूं?
मैम! मैं आपको आज से नहीं तब से जानती हूं जब से मैं क्लास फर्स्ट में थी। आप मेरी बेस्ट टीचर थी, आज भी हो, और हमेशा रहोगी। साथ ही यह लीजिए आपके जोड़ों के लिए मालिश वाला तेल।
अरे वाह! पचमढ़ी से मंगवा भी लिया तुमने?
कैसे ना मंगवाती मैम, आप बताइए। मुझे तो पता ही है असमय ही आपका दर्द बढ़ जाता है और पचमढ़ी वाले तेल से आपको कितना आराम आता है। वह आपके मुख मंडल पर मुझे दिखाई दे जाता है, हंसते हुए श्रीविद्या ने कहा।
पायल मैम गुड मॉर्निंग कैसी हैं आप? श्रीविद्या ने कवर्ड में से रजिस्टर निकालते हुए पूछा।
हां ठीक हूं धीमी आवाज में। आज माइली नहीं आ पाई है। बुखार था उसे। घर ही छोड़ कर आई हूं।
आज के लिए आपने छुट्टी लेनी चाहिए थी पायल में। बेटी के पास ही रहना चाहिए था ना!
तुम सही कह रही हो। लेकिन...
लेकिन क्या? पायल मैम।
मैं पहले भी एक दिन की छुट्टी ले चुकीं थी। फिर पेमेंट भी तो कट जाएगी। तुम तो जानती ही हो मेरी...
श्रीविद्या को उनकी आर्थिक स्थिति का पता था। उसने तुरंत बात को बदलते हुए कहा- आज तो तुम्हारा व्रत नहीं है ना? चलों लंच में मिलते हैं।
बातचीत करते हुए कवर्ड़ में से सभी क्लास रजिस्टर लेकर अपनी अपनी क्लास में जाने लगीं।
वही कॉरीडोर में खड़ी गाण्धारवी फोन पर बातें करती हुई मुस्कुरा रही थी।
पीछे से श्रीविद्या ने आकर उसके कंधे पर हाथ रखा तो वह चौंक गई।
गुड मॉर्निंग मिस गाण्धारवी हि्दयेश बंसल। तुम्हारा संगीत और संगीतकार कैसा है कहते हुए श्रीविद्या ने चुटकी ली।
श्रीविद्या के संबोधन पर गाण्धारवी झेंप गई। सिर्फ गुड मॉर्निंग बोलकर ही उसने अपनी नजरें झुका ली।
एकमात्र श्रीविद्या ही थी जिसकी बातों का कभी भी गाण्धारवी बुरा नहीं मानती।
तभी मिसेज पिंटो क्लास से उत्तेजित होते हुए बाहर निकल हांफने लगी।
कुछ लोगों ने उन्हें पकड़ कर हाथों का सहारा देते हुए स्टाफ रूम में लाकर बिठाया। वे अभी भी बुरी तरह से हांफ रही थी। क्रोध से उनका चेहरा लाल हो गया था।
मालती दीदी, पिंटो मैम के लिए पानी का ग्लास दौड़ी-दौड़ी लेकर आई।
कक्षा के कुछ शरारती बच्चे अक्सर उन्हें परेशान करते थे। अपनी इस बात को उन्होंने मैनेजमेंट के सामने भी रखी थीं। लेकिन समन्वयक द्वारा ही इस बात को दबा दिया गया। अब तो यह लगभग रोज का बात हो गई थी।