जब मन में उठते हैं, यह विचार,
यह देश हमारा कैसा था?
तब कैसा था,अब कैसा है,
आगे यह कैसा हो जाएगा?
वैदिक मंत्रों की शक्ति से,
जब आताताई डरते थे,
भारत के गौरव के आगे,
सब नतमस्तक हो जाते थे,
नानी, दादी यह कहती थीं,
इसका गौरव सर्वोपरि था,
सावित्री और अनुसुइया की,
शक्ति से, ईश्वर डरते थे,
राम, कृष्ण की इस भूमि पर,
श्रवण जैसा पुत्र हुआ,
दानी में कर्ण महान हुए,
विदुर हुए, चाणक्य हुए,
वीरों में चंद्र, चौहान हुए,
यहां पद्मिनियों ने, अग्निकुंड को,
हंसते, हंसते वरण किया,
देश के गौरव की खातिर,
राणा ने सब कुछ त्याग दिया,
राणा प्रताप तो मानव थे ,
चेतक ने है, जो काम किया,
युगों-युगों तक, चेतक की महिमा,
इतिहास हमारा,गाएगा,
देश प्रेम का यह जज्बा,
इस भूमि की कण-कण में है,
फिर हम कैसे? अपने गौरव को, भूल गए?
दान, धर्म हमने त्यागा,
देश प्रेम भी भूल गए,
अपने बलिदानी वीरों की,
बलिदानी गाथा भूल गए,
भारत की उस गरिमा को,
हम कैसे आज भुला बैठे?
ज्ञानी से, अज्ञानी होकर,
स्वाभिमान, करूणा, प्रेम,
इन सबको हमने त्याग दिया?
त्यागी नारी ने मर्यादा ,
पुरूषों ने त्यागा स्वाभिमान,
बच्चों ने त्यागे संस्कार,
गुरूओं ने, महिमा का त्याग किया,
क्या यही हमारा सपना था?
आजादी, प्रगति की आड़ लिए,
हम और अभी क्या त्यागेगें?
मर्यादा तो हम त्याग चुके,
नैतिकता को भी, भूल गए,
हे मानव अब तुम, रूक जाओ?
सब कुछ तो तुमने त्याग दिया,
न प्रेम बचा,न अपनापन ,
न संस्कारों की मर्यादा!!
आजादी के नाम पर तुमने,
भारत की गरिमा त्यागी है,
जब,जब भारत के लोगों ने,
स्वाभिमान को त्यागा है?
तब,तब! भारत की गरिमा को,
हमने ठेस, लगाई है,
जितना तुमको गिरना था?
उससे ज्यादा गिर ही चुके,
जो मुठ्ठी भर अच्छाई है,
उसको तो संजोएं रखो अब!!
अब युवा वर्ग आगे आएं!!
स्वाभिमान की अलख़ जगाएं
फिर गौरव गाथा गाएं ,
भारत की महिमा का मान बढाए।
डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक
14/1/2021