इंटरनेट से पहले जब दूरभाष या टेलीफोन का आविष्कार हुआ तो यह मानवीय जीवन के लिए एक उपयोगी वरदान था। क्योँकि तब दूर देश-परदेश में रहने वाले अपने लोगों से बातचीत एक सरलतम सुविधा माध्यम था। टेलीफोन से लोगों के समय की बचत हुई, सन्देश या समाचार सहज रूप से मिलने लगे। व्यापार और कार्यालय सञ्चालन में यह एक विश्वसनीय साथी के रूप में हमारा साथी बना। समय बदला तो स्थाई रूप से एक सामने टिका रहने वाला टेलीफोन 'सेल्युलर फ़ोन' में बदल गया तो कुछ पैसे वाले लोग इसका उपयोग घर से बाहर भी करने लगे। धीरे-धीरे जैसे ही इसकी जगह मोबाइल ने ली तो धीरे-धीरे यह पहले कुछ हाथों में और फिर सस्ता होने से हर हाथ में आ गया और फिर जैसे ही इंटरनेट आया उसने मोबाइल क्या जमाना ही बदल कर रख दिया।
आज का युग इंटरनेट का युग है। हम ऐसी पीढ़ी के लोग है जिन्होंने टेलीफोन से लेकर इंटरनेट के फैलते जाल को देखा है। हमने इसके भले और बुरे दोनों पहलुओं को देखा-परखा है। इसलिए आज हम भले ही इंटरनेट के बिना एक दिन क्या एक माह भी आराम से काट सकते हैं, लेकिन आज चिंतनीय स्थिति इस बात की है कि इसके बिना आज का युवा वर्ग एक दिन क्या एक मिनट भी नहीं चल पा रहा है। यह किसी नशे से कम नहीं है। भले ही यह आज हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग बन गया है और हमें इससे बहुत सुविधाएँ भी मिलती हैं, लेकिन इसका दुरूपयोग सबसे अधिक होना गंभीर चिंता का विषय है। क्योँकि आज इंटरनेट के माध्यम से कोई कब क्या गुल खिला दें, इसकी कोई कल्पना तक नहीं कर सकता है।
प्राचीनकाल में देश का युवा वर्ग देश का कर्णधार कहा जाता था। देश के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले युवा वर्ग ने ही अपनी स्वच्छ मानसिकता के बल पर देश को अंग्रेजों से स्वाधीन कराया। मगर तब यह इंटरनेट वाली संस्कृति हमारे देश में दूर-दूर तक नहीं थी। अब जब से इंटरनेट संस्कृति का आना-जाना हुआ है, देश का युवा वर्ग और विद्यालयीन छात्र वर्ग अपने लक्ष्य से बहुत हद तक भटक गया है, वह अपने दायित्व निर्वहन से विमुख होता सा लगता है।
आज यदि देखा जाय तो हाथ में मोबाइल लेकर देश का युवा वर्ग पथभ्रष्ट हो रहा है। यह युवा वर्ग की मानसिक कुंठाओं का ही परिणाम है कि हर दिन इस इंटरनेट की लत के कारण कई युवा आत्महत्या जैसा कदम बड़े पैमाने पर उठा रहे हैं। इंटरनेट का ही दुष्परिणाम है कि ठगी के कई नए-नए पैंतरे देखने को मिल रहे हैं। देश के छोटे-छोटे बच्चों के हाथों में मोबाइल और उसमें इंटरनेट जैसी चीजें विनाश का पैगाम है। क्योँकि इससे आज लोगों की मन और बुद्धि कुंठित हो रही है जिससे सोचने की क्षमता कमजोर हो रही हैं। समय रहते इंटरनेट पर अंकुश न लगा तो संभवत युवा पीढ़ी को पथभ्रष्ट होने से कोई बचा नहीं पायेगा। इसलिए आज इस बात की आवश्यकता है कि इंटरनेट को केवल विशेष कार्यों में प्रयोग में लाने के लिए स्वत्रंतता दी जानी चाहिए, असामाजिक गतिविधियों में इसका प्रयोग पूर्ण रूप में प्रतिबंधित कर देना चाहिए।