हमारा वायुमंडल प्रकृति की देन है। यह हमारा पालनकर्ता और जीवन का आधार है। यही हमें स्वस्थ और सुखी रखने का रक्षाकवच है। लेकिन यदि यह विषाक्त होने लगे तो यह अभिशाप बनकर हमारे अस्तित्व, जीवन-निर्वाह, विकास आदि को बुरी तरह प्रभावित कर बैठता है। हमारी पृथ्वी के वातावरण के तापमान में निरंतर होने वाले वैश्विक वृद्धि को 'ग्लोबल वार्मिंग' अथवा भूमण्डलीय ऊष्मीकरण कहा जाता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि ग्रीनहाउस गैसों में बढ़ोतरी होने पर जब धरती का आवरण सूर्य की अधिक किरणों को रोकने लगता है तो ग्लोबल वार्मिंग के दुष्प्रभाव देखने को मिलते है। आज ग्लोबल वार्मिंग दुनिया के सामने एक बहुत बड़ी समस्या बनती जा रही है। इसके कारण आज दुनिया भर में तूफान, बाढ़, जंगल की आग, सूखा और लू आदि के खतरे एक बड़े पैमाने पर देखने को मिल रहे हैं। इसकी वजह से ही हिमखंड पिघलकर भयंकर बाढ़ का रूप धारण करते हैं तो समुद्री सतह का तापमान बढ़ने से तूफान आकर तबाही मचाते हैं।
ग्लोबल वार्मिंग हमारी मानवीय भूलों का परिणाम है। विश्व में जैसे-जैसे जनसँख्या का तीव्र गति से विस्फोट हुआ वैसे-वैसे बड़े-बड़े औद्यौगिक संस्थानों और नयी वैज्ञानिक प्रौद्यौगिकी का विस्तार हुआ। इनका तेजी से उत्पादन बढ़ा तो कारखानों की चिमनियों से निकलने वाले धुँए तथा उत्पादन के अवशेष एवं व्यर्थ के कूड़े-कचरे का भराव होने से पर्यावरण दूषित हुआ। उद्योगों से निकलने वाले दूषित रासायनिक द्रवित पदार्थों ने नदियाँ दूषित की। लोगों के रहने और उद्योगों को लगाने के लिए वनों से पेड़-पौधों की कटाई हुई तो पर्यावरण दूषित हुआ, फलस्वरूप जल का कटाव और भूमि की उर्बरा शक्ति घटी। ग्लोबल वार्मिग से बचने के आज हमें अधिक अधिक से अधिक पेड़-पौधे लगाने की आवश्यकता है। औद्यौगिक संस्थानों को शहर से दूर स्थापित करने के साथ ही इनके कचरे का वैज्ञानिक निस्तारण करने की आवश्यकता है। जनसँख्या नियंत्रण और शहरों को पर्यावरण के अनुकूल विकास करना होगा। धरती को कांक्रीट में बदलने से पहले पेड़-पौधों का धरती में रोपकर हरी-भरी बनाना होगा। वाहनों को प्रदूषण मुक्त करना होगा। पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए छोटे स्तर से लेकर बड़े स्तर तक हर मुमकिन प्रयास करने होंगे, ताकि कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को नियंत्रित कर हम ग्लोबल वार्मिंग रोकने में सफलता प्राप्त कर सके।