हमारे भारतीय चिन्तन में शरीर को धर्म का पहला साधन माना गया है। महाकवि कालिदास की सूक्ति "शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्" और इस हेतु सदैव स्वस्थ रहने को कर्तव्य निरूपित किया है। "धर्मार्थ काममोक्षाणाम् आरोग्यम् मूल मुत्तमम्।" कहकर अच्छे स्वास्थ्य को महा-वरदान कहा है। इसलिए इसकी रक्षा करना प्रत्येक मनुष्य का दायित्व बताया गया है। शरीर का स्वस्थ रहना परम आवश्यक है, क्योँकि यदि शरीर स्वस्थ नहीं होगा तो मन स्वस्थ नहीं रह सकता और जब मन स्वस्थ नहीं होगा तो फिर स्वस्थ विचार कैसे होंगे?
आज की अधिकतर युवा पीढ़ी बैठे-बैठे ही सबकुछ हासिल करना चाहती हैं। जिसके लिए वह शारीरिक गतिविधियों से कोसों दूर होने से अवसाद और चिंता से घिरा मिलता है। वह भूल रहा है कि हमारा शरीर उस मशीन की तरह ही है जो जब तक चलती रहती हैं, तब तक ठीक रहती हैं। बंद रखने की दशा में जिस प्रकार उसके कल-पुर्जे, इंजिन ख़राब हो जाता है, उसी प्रकार हमारा शरीर भी बिना शारीरिक श्रम के स्वस्थ नहीं रह सकता है। आधुनिक तकनीकों के आने से भले ही हमारा हर काम आसान हुआ है लेकिन इससे हमारी जीवनशैली बदल गयी हैं। आज का युवा वर्ग इन तकनीकों के सहारे बैठे-बैठे हर काम में लगा रहता है, जिसका दुःखद परिणाम है कि उन्हें मोटापा, हाई ब्लडप्रेशर, हृदयाघात, डिप्रेशन, मधुमेह जैसी गंभीर बीमारियां घेर लेती हैं। सबसे दुःखदाई व पीड़ाजनक बात इसके कारण युवाओं की मौत आये दिन समाचार पत्रों या हमारे आस-पास सुनने-देखने को मिलना हैं, जो गंभीर चिंता का विषय है।
आज की युवा पीढ़ी सुविधा भोगी पसंद है,जो कि शारीरिक श्रम भूलती जा रही है। यही कारण है कि कम आयु में ही उन्हें तरह-तरह की बीमारियॉं घेरने लगती हैं। आज न गुरुकुल और नहीं पूर्व जैसी शिक्षण पद्धति हैं, जहाँ बच्चों में बचपन से ही शारीरिक श्रम के महत्त्व को संस्कार के रूप में रोपित किया जाता था। तब घर हो या विद्यालय हर माता-पिता और शिक्षक अपने बच्चों से कई तरह के शारीरिक कार्य करवाते थे। जिससे उनका सम्पूर्ण विकास होता था। लेकिन आज स्थितियाँ सर्वथा भिन्न हैं। इसलिए इसे आज के परिदृश्य से सोचने और समझने की जरूरत है। आज यदि हम चाहते हैं कि युवाओं का संतुलित विकास हो तो, इसके लिए हमें उन्हें शारीरिक श्रम के प्रति सकारात्मकता लाने के लिए जागरूक करना होगा। इसके लिए उन्हें कृषि, बागवानी, पशुपालन जैसे कार्यों को करने के लिए प्रेरित करना होगा, जिससे उनमें शारीरिक श्रम करने से रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो सके। उन्हें उनकी दैनिक दिनचर्या को दुरुस्त करने के लिए नियमित रूप से सुबह-शाम घूमने, बागवानी करने और खेलकूद कर शारीरिक श्रम का महत्त्व समझाना होगा। उन्हें समझाना होगा कि वे चाहे तो अपने स्मार्ट फ़ोन से शारीरिक श्रम के महत्त्व को जान सकते हैं। इसके साथ ही इसके लिए शासन-प्रशासन, सोशल मीडिया और एनजीओ द्वारा भी जागरूकता अभियान चलकर शारीरिक श्रम और व्यायाम के महत्त्व को बताना होगा।