बचपन में जब स्वर और व्यंजन को पाटी में स्लेट से घोटा लगा-लगाकर लिखने का अभ्यास किया तो पहले दो, फिर तीन और फिर चार-चार शब्दों को जोड़-जोड़ कर पढ़ना सीखा तो सबसे पहले स्कूल में पढ़ाये जाने वाले पाठ्यक्रमों की विभिन्न पुस्तकों को ही पढ़ा। जहाँ तक पहली पुस्तक पढ़ने का प्रश्न है, तो वह तो ठीक-ठीक याद करना मुश्किल है, लेकिन इतना याद है कि जब मुझे अच्छे से पढ़ना आया तो मुझे बहुत सी छोटी-छोटी कविता और कहानियां पढ़नी अच्छी लगती थी। उन्हीं में से एक मुंशी अजमेरी 'प्रेम ' रचित ' बाल साहित्य की पुस्तक थी-'हेमलासत्ता' जिसे मेरे ताऊ जी ने मुझे लाकर दी थी। इस पुस्तक को मैं मेरी पहली पढ़ी पुस्तक कर सकती हूँ। क्योँकि यह मुझे इतनी अच्छी लगी कि बाल्यकाल में पढ़ी इस पुस्तक को आज तक नहीं भूल पायी, जिससे मैं इतनी प्रभावित हुई कि मैंने इसका बहुत पहले कहानी में रूपांतरणकर लिया था, जिसे मैंने जून २०१७ में अपने ब्लॉग पर पोस्ट किया।
इस पुस्तक में अजमेरी जी ने सरल भाषा और छंद का प्रयोग किया है। इसकी शैली ध्वन्यात्मक एवं लय बद्ध होने के कारण बच्चों को कंठस्थ होते देर नहीं लगती। इसमें प्रत्येक शब्द-चित्र बाल-मनोविज्ञान की पृष्ठभूमि पर उकेरा गया है। इसकी कहानी मूलतः हास्यरस का प्रतिनिधित्व करती हैं, तभी तो बच्चे मौत पर भी ठहाका लगा बैठते हैं। संक्षेप में यह कहानी है 'हेमला ' नामक जाट की, जो अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद उसके साथ ही उसकी चिता पर लेटकर 'सत्ता' होता है लेकिन जब चिता की अग्नि उसे असहनीय होती है तो वह सबसे छुपकर वहां से भाग खड़ा होता है, जिसे लोग मरा समझ लेते हैं। वह भी लोक लाज के डर से वापस गांव नहीं जाता है और वही मरघट को अपना ठिकाना बना लेता है। यहीं से होता है उसका भूत बनने का प्रपंच, जिसे वह ग्रामीण जनमानस में व्याप्त भूत-प्रेत के भय का लाभ उठाकर उन्हें डराता है, धमकाता है।
इसमें पहली मौत उसकी तेरहवीं से लौटकर नाईन की होती है। जब वह उनके लौटते समय काले-काले बिखरे बाल, नंग-धड़ंग लमटंगा बनकर ’दुड़ू-दुडू़’ कर उनके सामने आया तो नाई-नाइन उल्टे पैर भागे, लेकिन नाइन गिरकर चिल्लाई तो फिर न उठ सकी, उसकी सांसे वहीं थम कर रह गई। मालपुए की टोकरी लेकर हेमला वापस आ गया और यह सोचकर हंसने लगा कि विकट भूत का वेश भला है और बोला- 'चलो आज का श्रीगणेश हो गया है।' बद्हवास नाई गांव वापस आकर चिल्लाया- ’अरे! हेमला भूत हाय! उसने नाइन को खा लिया। यह कहते-कहते बेहोश हो गया। उपचार करने पर जब उसकी चेतना वापस आई तो वह हेमला के बच्चों को रोते-रोते यों हाल सुनाने लगा-
"था पूरा पच्चीस हाथ, काला काला-सा,
बड़े बड़े थे दांत, हाथ में था भाला सा।।
’दुडू-दुडू़’ कह, कूद सामने आ ललकारा;
बोली से पहचान लिया, था बाप तुम्हारा।
मारी पटक, पछाड़ हाय रे! नाइन मारी,
भाग बचा मैं, भाग न पाई वह बेचारी।
अरे चलो झट, हाय! मार ही डाली होगी;
पड़ी धूल में देह प्राण से खाली होगी।"
दूसरी मौत मुखिया की होती है। जब हेमला यह सोचता है कि कब तक यूं दुःख सहता रहूंगा। लेकिन जैसे ही यह पीलू के पेड़ की आड़ से बाहर आया तो उसने कुछ दूरी पर मुखिया को अकेला खड़ा देखा तो मारे खुशी के उछल पड़ा। वह विचारने लगा कि अगर मुखिया के पास जाकर अपना हाल सुनाऊँ तो इस दुःखिया का बेड़ा पार हो जाय। फिर सोचता कहीं अगर वह मुझे देख डरकर भागने लगे तो जाकर एकदम से उनके पैर पकड़ लूंगा।’ यही सोच उसने दबे पांव, चुपचाप पीठ-पीछे से जाकर अचानक मुखिया के पैर पकड़ लिए। मुखिया 'कौन' कहकर चिल्लाया तो 'हेमला' का नाम सुना तो चिल्लाया- ’अरे दौड़ियो, हाय! मुझे सत्ता ने खाया।’ कहते हुए गिर पड़ा, जिसे देख हेमला बहुत घबराया। खेतों में कुछ दूरी पर लोग काम रहे थे, मुखिया के शब्द सुनकर लोगों ने उस ओर देखा तो उन्हें हेमला के बड़े-बड़े बाल, नंग-धड़ंग शरीर दिखाई दिया। दिन-दोपहरी में भूत देखकर लोग घबराकर अनहोनी की बात से भयाकुल होकर चिल्लाने लगे- ‘अरे, हेमला भूत खड़ा है ताल-किनारे; देखो, उसने पटक हाय! मुखिया जी मारे’ मुखिया को बेहोश देख मरघटिया हेमला भागा और अभागा पीलू के पेड़ की आड़ में छिपते हुए सोचने लगा- अरे, चला था अच्छा करने, किन्तु बुरा हो गया। अब क्या करूं, कुछ समझ में नहीं आता क्यों विधाता मुझसे खपा हो गये हैं। जाने क्या लिखा है मेरे कपाल में, भूतपने से मुक्ति दीखते नजर नहीं आ रही है। उधर गांव के लोग मुखिया को उठा लाये। उन्हें बेदम बुखार चढ़ा, दस्त लग गये। वे बेहोशी में चौंककर चीख पुकार मचाते- ’वह आया-अरे दौड़ियो, हाय! मुझे सत्ता ने खाया।’ रात भर यों ही मुखिया बेचारा पड़े रहे और सवेरे लोक छोड़ परलोक सिधार गए।
तीसरी मौत सिपाही की हुई। जब वह खेतासर के स्वच्छ जल से भरे ताल में अपने घोड़े को खूंटे से बांध कर नाई से अपनी खोपड़ी घोंटाने बैठा था। तभी सिपाही की आधी खोपड़ी घुट पाई थी कि नाई को दूर से हेमला आता दिखाई दिया तो उसकी अकुलाहट बढ़ गई, वह थर-थर कांपने लगा। उसकी थर-थर्राहट से सिपाही चिल्लाया- ’क्यों बे क्या हुआ? क्या बिच्छू ने काट खाया तेरे को।’ इतना सुनते ही ‘जाता हूँ, ले देख, वह तेरा बाप आया‘ कहकर नाई नौ दो ग्यारह हो गया। झुंझलाते हुए सिपाही उठा और इधर-उधर देखने लगा। उसने देखा सचमुच भूत उसी की ओर आ रहा है। उसका दिल दहल गया, सोचने लगा- यह कौन बला है? उसने देखा कि उसके सिवा दूर-दूर तक कोई नहीं है। सब ओर सूना है तो उसका मन बहुत घबराया। इससे पहले कि वह कुछ सोच पाता जैसे ही दुडू-दुडू का भयानक शब्द उसे सुनाई दिया उसकी देह थर-थर थराई, वह फुर्ती से घोड़े की खूंटी खोले बिना ही उस पर एड़ लगाकर सड़ा-सड़ कोड़े बरसाने लगा। घोड़ा हिनहिनाते हुए खूंटी उखाड़कर भाग खड़ा हुआ। जैसे ही घोड़े की चाल बढ़ी तड़ा तड़ पीछे से खूंटी सिपाही के सिर पड़ने लगी। भूत का डर उसकी खोपड़ी में बैठ गया। वह समझा कि मुझे और कोई नहीं भूत मार रहा है। पीछे तरफ घुटी-घुटाई साफ खोपड़ी में ज्यों-ज्यों मार पड़ी वह बड़बड़ाने लगा- ’अब मत मार, धरम की कसम है तुझे। तौबा-तौबा, अरे माफ कर, मुझे, न मार, मैं तेरी पूजा कराऊंगा, कभी ताल पर नहीं आऊंगा, सत्ते! तुझको पूजने के बाद ही शहर वापस जाऊंगा।’ इधर हेमला तालियाँ बजाकर खूब हंसा उधर सिपाही गांव के पास बेहाल होकर गिरा। घोड़ा पास ही घुप्पू बन खड़ा हुआ था। समाचार सुनकर बड़े गांव का मुखिया आया। सिपाही को बेहोश देख बहुतेरे उपाय किए लेकिन उसने मुंह नहीं खोला, पहर रात सिपाही चल बसा। यह देखकर नाई ने खूब नमक-मिर्च लगाकर बढ़ा-चढ़ाकर किस्सा सुनाया।
चौथी मौत शहर से आये मौलवी की होती है। जब वह पुस्तक खोलकर विलक्षण बोली में अपनी पोथी पढ़ते-पढ़ते मरघट पहुंचा, तो हेमला ताल के किनारे पर पड़ा हुआ था। जैसे ही मियां के शब्द उसके कानों में पड़े वह चौंककर खड़ा हो गया। मियां ने एकाएक भयंकर भूत सम्मुख देखा तो वह अवाक् खड़ा रह गया। लाखों भूत-पलीत उन्होंने झाड़ दिए थे, हजारों को भसम और सैकड़ों को गाड़ दिए थे, लेकिन प्रत्यक्ष देहधारी भूत देखने का मौका उन्हें पहली बार मिला। आगा-पीछा सोचते हुए खलीफा जोर-जोर से अपने बदन पर फूंक मारने लगा। इतने में दुडू-दुडू कर दौड़ते हुआ अलबेला सत्ता मियां के ऊपर कूद पड़ा। अपने को निपट अकेला समझ मियां का मुंह पीला पड़ गया और उसकी हवाई उड़ने लगी। आज उनकी करामात ने उनसे विदाई मांग ली है यह जानकर वह पीछे पांव लौटकर भागने लगे तो दुडू-दुडू कर सत्ता ने दौड़ लगाई और मियां की कमर में लात जमाई और आगे आकर तड़ातड़ आठ-दस हाथ दे मारे। जब ’हाय! मरा’ कहकर मियां वहीं बेहोश हो गए तब उसकी किताब को फाड़-फाड़कर उसके पन्ने-पन्ने उड़ाता सत्यानाशी सत्ता मरघट की ओर यह बड़बड़ाते हुए चला कि- मूढ़ यह गलबल-गलबल कर यहां क्यों मरने आया था। कुछ लोग आगे बढ़कर पीछे वालों को यह सब आंखों देखा हाल सुना रहे थे- ’क्या वस्तु खलीफा है बेचारा? लो, वह भागा, अरे, हाय! मारा, वह मारा।’ हेमला चला गया लेकिन मियां बहुत देर बाद भी नहीं लौटा तो चिन्ताकुल लोग मन में बहुत घबराये। भयातुर होकर धीरे-धीरे पास पहुंचे तो देखा मियां के प्राण पखेरू उड़ गए थे। लोगों ने बस, झटपट चुपचाप टांगकर उन्हें उठाया और भागकर गांव पहुंचकर हाल सुनाया- “भूत सहज का है क्या सत्ता? कर दी जिसने नष्ट मियां की सभी महत्ता। और साथ ही पटक मार भी उनको डाला; हाय! पड़ा है दुष्ट दैत्य से अपना पाला। अब क्या शेष उपाय रहा, सब तो कर छोड़े; भूल न लेंगे नाम, हाथ अब हमने जोड़े।।“
पांचवीं ठाकुर के नाई की होती है। जब ठाकुर ने अपने नाई को हुक्म दिया कि वह हेमला को अपने साथ बिठा ले। इस पर नाई बोला था- अगर वह मुझे खा ले तो? यह सुनकर ठाकुर हँसने लगा तो उनके साथ सभी नौकर-चाकर हँसने लगे। नाई बोला-’भूत हो या आदमी की खाल चढ़ा भूत, मैं तो पैदल ही चलूंगा।’ यह सुनकर जब ठाकुर ने उसे फटकार लगाई तो उसने हेमला को पीठ पिछाड़ी बिठाया। नाई चलते-चलते सोच-विचार करने लगा- ’यों कि इसी ने गांव उजाड़ा, मारे आदमी मारे, मौलवी पटक पछाडा। सिवा भूत के कौन प्राण यों हर सकता है। क्या ऐसा अन्धेर आदमी कर सकता है। हाय! आज हो गया हमारा ठाकुर उल्लू, और साथ ही बना दिया मुझको भी भुल्लू। मैं बातों में भूल, फंसा हूं भूत-जाल में, अब है बचना कठिन, पड़ा है काल-गाल में।“ तमाम उल्टी-सीधी बातें सोचकर नाई का दिल जोर-जोर से धड़क रहा था, कलेजा कांप रहा था, वह भयभत होकर भूत को भांप रहा था। वह देख रहा था कि जाने कब यह सत्यानाशी अपने पैर बढ़ा देगा या फिर उसके शरीर में दांत गड़ा देगा। वह रह-रह कर इधर-उधर ताक-झांक कर रहा था। उसका ऊंट बोदा था इसलिए सभी से पिछड़कर दस हाथ पिछड़ गया। इतने में हेमला को छींक आई तो नाई ’हाय! मुझे खा लिया’ कहकर धड़ाम से जमीन पर गिर पड़ा। ठाकुर को जोर की आवाज सुनाई दी तो उन्होंने पीछे मुड़कर देखा कि नाई सिर के बल गिरा हुआ है। ठाकुर चिल्लाया- अरे कैसे गिर पड़ा नाई? हेमला बोला- मुझे जोर की छींक आई थी, जैसे ही छींका, यह चिल्ला कर ऊँट से गिर पड़ा। ठाकुर ऊँट से उतर कर नाई के पास आया तो देखा सब लोग घबराये थे। नाई पत्थर पर गिरा था। उसकी नब्ज छूट गई थी, खोपड़ी फूट गई थी, गर्दन टूट गई थी, वह निष्प्राण पड़ा था।
अंत में ठाकुर ने उसे भूत से आदमी बना दिया। तब संध्या का समय था। जैसे ही ठाकुर अपने लाव-लश्कर के साथ गांव पहुंचा, अरे, हेमला भूत, हेमला भूत चिल्लाते हुए लोग इधर-उधर भागने लगे। यह देखकर ठाकुर ने सबको समझाया- ’मत भागो, मत डरो, हेमला भूत नहीं है, इसे पकड़ कर आज मैं अपने साथ लाया हूँ।’ फिर ठाकुर ने बीच गांव में डेरा डाला और खेतासर के सभी लोगों को बुलवाया। सभी लोग इकट्ठे हुए, सभी अचरज कर रहे थे, कुछ डर के मारे बहुत दूर से ही देख रहे थे। ठाकुर ने बैठकर पहले सबको स्वयं थोड़ा-बहुत हाल सुनाया फिर पूरा-पूरा हाल पुनः हेमला से सुनवाया। हाल सुनने के बाद ठाकुर बोला- ’सुन ली सत्य कहानी? यों लोगों ने भूत बनाकर नादानी की। तब लोग हेमला से बोले- ’हेमला, दादा, चाचा, तू मनुष्य है? फिर क्यों तू भूत बन नंगा नाचा, खूब सताया और गांव से हमें निकाला। तूने दुडू-दुडू कहकर कितनों को मार डाला।’ गांव वालों की बात सुनकर हेमला दुःखी होकर बोला- ’अब मैने दुडू-दुडू छोड़ दिया है। मैंने बड़ा अनर्थ किया, यह बात सही है, मुझे सब लोग क्षमा करो मेरी यही विनती है।’ इतना सुनकर भी गांव को पूरा विश्वास नहीं हुआ कि हेमला भूत नहीं है, इसलिए वे ठाकुर से बोले- ’प्रभुवर, इसे रात भर अपने पास रखिए, जैसी कृपा अब तक की, इतनी कृपा और कर दीजिए। रात बीतने और सवेरा होने दीजिए।’ यह प्रस्ताव जब ठाकुर के संगी-साथियों ने सुना तो वे डरे, मन में सोचने लगे कि यह बात तो बड़ी बेढ़ंगी है। वे चिन्ता करने लगे कि जाने हेमला भूत ठाकुर को जीवित छोड़ता है या मार डालेगा? लेकिन वे विवश थे, किसी को रात भर नींद नहीं आई, जाग कर किसी तरह सबने रात बिताई। इस तरह रात भर ठाकुर के पास हेमला रहा और जब सवेरा हुआ तो सभी लोग वहाँ एक इकट्ठा हुए। सभी लोगों ने ठाकुर को जीवित देखा तो ज्यादातर लोगों को विश्वास हो गया कि हेमला भूत नहीं है। तब ठाकुर ने कहा- एक नाई बुलवाओ और हेमला के बाल काटकर उसे नहलाओ। डरते-डरते बड़े गांव वाला नाई हेमला के पास आकर बैठा और उससे बोला- ’अरे हेमला तू भूत नहीं है, मरा नहीं है?’ हेमला बोला- अरे मरा कभी लौटता है क्या?’ ’तो उस दिन क्यों दुडू-दुडू कह मुझे डराया। कब का बदला लिया तूने मुझसे? क्यों तूने नाइन को खाया। मैंने भला कौन सी तेरी चोरी कर दी जो तूने मेरी गृहस्थी चौपट कर दी।’ यह सुनते ही हेमला बोला- ’याद है तुझको नाई, तूने ही तो उस दिन नाइन से मुझे आत्मघात कर विकट भूत बनकर घूमने वाला बताया था। तेरी बात सुनकर ही मुझे भूत बनने की सूझी।“ नाई बोला-“अरे, मैंने समझ-बूझकर थोड़े कहा था, मैंने तो नाइन से दिल्लगी की थी। वह डरती है या नहीं उसकी परीक्षा ली थी। मैं नहीं जानता था कि दैव मेरे साथ छल करेगा।“ यह बात सुनकर ठाकुर बोला- “झूठ हंसी में भी खलता है।“ सुनकर ठाकुर की बात नाई बहुत पछताया। हेमला की हजामत बनी और उसने खूब नहाया। कपड़े पहनकर ठाकुर से हाथ जोड़कर बोला- “आज भूत का चोला छोड़ मैं फिर से मनुष्य हुआ हूँ। इसके लिए मैं आपका ऋणी रहूंगा। सदा आपके गुण गाता रहूंगा। आप न मिलते तो मैं भूत बनकर ही किसी दिन मरकर पड़ा रहता।“ हेमला को कृपा दृष्टि से देख कर ठाकुर ने सबसे कहा- “सुनो, अब से भूलकर भी भूत से नहीं डरना। भूत-भाव के भय से देखो कैसे सबने हेमला को मनुष्य से भूत समझ लिया, यह प्रत्यक्ष उदाहरण तुम्हारे सामने है।“