छुटपन में मैंने जब पहले बार सर्कस में जादू का खेल देखा तो आंखे खुली की खुली रह गई। कई दिन तक जादूगर की वह छड़ी आँखोँ में घूमती रही। रात को जब सोती तो सपने भी उसी के आते, जिसमें वह कभी किसी चीज को गुम करते दिखता तो कभी किसी आदमी को ही पलक झपकते ही गायब करता मिलता। सुबह जब आंख खुलती और स्कूल जाने की तैयारी के साथ कुछ घर का भी काम करना पड़ता तो सोचती काश! वैसी ही जादू की छड़ी यदि मेरे हाथ लग जाती तो मैं भी पलक झपकते सारे काम बैठे-ठाले कर लेती और स्कूल में भी बिना पढ़े अव्वल अंक ले आती।
समय बीता और हम जैसे ही बड़े हुए तो उस जादू की छड़ी वाले जादूगर को तो भूल गए, लेकिन हमें यह पूरी दुनिया ही जादू से भरी दिखाई देने लगी। जिसमें विभिन्न रूपों में हमें एक से एक बढ़कर जादूगर मिलते चलते गए। इन जादूगरों में कभी हमें इस दुनिया में ईश्वर के बनाये जीव-जंतु, कीट-पतंगे के जीने के लिए संघर्ष करते रूपों में जादुई दुनिया मिली तो कभी उसकी बनाई प्रकृति के बदलते विभिन्न रूपों में जादुई सुंदरता देखने को मिली। इन प्रकृति के विभिन्न अद्भुत रूपों को देख जब मैं सोचती कि आखिर इनका जादूगर तो ईश्वर है, इसलिए उसकी जादूगरी के आगे इस दुनिया में किसी की कोई बिसात हो नहीं सकती हैं। लेकिन यहाँ मैं तब भूल कर बैठती जब इस दुनिया में उसी ईश्वर के बनाये इंसानोँ की जादूगरी देखती कि कोई कैसे अपने ही लोगों के बीच बैठा अपने निजी स्वार्थ पूर्ति के लिए कितना अपना स्तर गिरा देता, कितना किसी को गिरा देता, कितना किसी को छलता, धोखा देता, लूट-पाट-ठगी का खेल खेलता, भ्रष्ट बन जाता और भी जाने क्या-क्या कर बैठता। आज के हालातों पर गहराई से यदि विचार करेंगे तो हमें यह पूरी दुनिया 'जादुई दुनिया' नज़र आएगी।