वर्तमान समय इंटरनेट क्रांति का युग है, जहाँ सोशल मीडिया की ताकत को हम जंगल की आग और आंधी-तूफ़ान कह सकते हैं। यह परंपरागत मीडिया से अलग एक ऐसी आभासी दुनिया है, जहाँ पलक झपकते ही सूचनाओं के आदान प्रदान से लेकर मनोरंजन या शिक्षा प्राप्ति संभव है। आज स्थिति यह है कि जहाँ एक ओर व्यक्तिगत स्तर पर इसका दखल हमारे रहन-सहन का तौर तरीका हो या कामकाज की शैली या फिर मनोरंजन, हर जगह है, तो वहीँ दूसरी ओर देश की राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक या फिर सांस्कृतिक क्षेत्र क्यों न हो, इसके बिना एक कदम भी चल नहीं सकते। इसके माध्यम से आज कई सामाजिक विकास कार्य आसानी से संभव हुए हैं। यह देश की एकता और अखंडता के लिए एक मजबूत कड़ी का काम भी करता है। आज देश में होने वाले आम चुनाव में यह राजनीतिक पार्टियों के प्रचार-प्रसार का मुख्य हथियार है। यह आमजन को चुनाव के प्रति जागरूक करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का सरलतम साधन है। सोशल मीडिया की ताकत का ही परिणाम है कि आज शासन-प्रशासन जबरदस्ती जनता पर कोई अनावश्यक कानून नहीं थोप पाता है।
आज सोशल मीडिया एक लोकप्रिय मंच है। जहाँ हर कोई देश-दुनिया के लोगों से जुड़कर अपनी दुनिया बसाने के लिए स्वत्रंत है। यह सोशल मीडिया की ताकत है कि कोई भी व्यक्ति आज फेसबुक, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम, यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी बात देश-दुनिया में बिना किसी रोक-टोक के रखते हुए देश और दुनिया के हर कोने तक पहुंचाने में सक्षम हो पा रहा है। यहाँ कोई भी अपने विचार रखने के साथ ही दूसरे के विचारों को भी सुन सकता है और उस पर खुलकर अपनी राय भी व्यक्त कर सकता है। आज सोशल मीडिया की ताकत केवल दोस्ती बढ़ाने और मनोरंजन तक सीमित नहीं है, अपितु यह वोट बैंक से लेकर कमाई का एक मुख्य जरिया भी बन रहा है।
सोशल मीडिया की ताकत को मैंने व्यक्तिगत रूप से भी देखा है। मुझे याद है जब मैंने वर्ष अगस्त २००९ में अपने नाम से ब्लॉग बनाया था तो तब सोचा न था कि एक दिन मेरे ब्लॉग को पढ़ने वालों की संख्या लाखों तक पहुँच जाएगी और मुझ जैसे शौकिया लिखने-पढ़ने वाले की भी देश-दुनिया में एक पहचान मिलेगी। सोशल मीडिया की ताकत का मुझे दो बार बड़ा सुखद अनुभव हुआ। बात अप्रैल २०१३ की है। जब हमारे गढ़वाल क्षेत्र का एक करीबी परिवार जो कि गांव में ही रहता था, दिल्ली स्थित अपने एक निकट सम्बन्धी के विवाह समारोह में शामिल होने आया था। विवाह संपन्न होने के बाद वे अपने छोटे भाई के वैशाली, सेक्टर-1, गाजियाबाद स्थित (जो कि दिल्ली आनंद विहार बस अड्डे से मात्र 1 कि.मी. दूरी पर है) घर मिलने गए। जहाँ उनका बेटा जिसकी आयु 12 वर्ष थी, जो बोल नहीं पाता था, जब घर के लोगों के साथ शाम को बाजार से लौट रहा था तो चलते-चलते बाजार की भीड-भाड़ में अचानक कहीं गुम गया। जो उनके बहुत खोजबीन बाद भी नहीं मिल रहा था। उन्होंने गुमशुदा लड़के की फोटोयुक्त पम्पलेट मुझे ब्लॉग पर लगाने को कहा जिसे मैंने अपने ब्लॉग पर पोस्ट किया। जिसका सुखद परिणाम यह हुआ कि किसी अनजान व्यक्ति ने उन्हें पोस्टर में लिखे मोबाइल नंबर से बताया कि उसने बच्चे को दिल्ली के दिलशाद गार्डन के अनाथाश्रम में छोड़ दिया है, वे उसे वहां से ले लें। यह तो हुई एक सोशल मीडिया की ताकत की बात। अब दूसरी बात यह कि धर्मेन्द्र कुमार मांझी की जिसकी हमने गरीबी में डॉक्टरी कहानी भी लिखी है। जिसने वर्ष 2016 में मेडिकल प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण कर चिरायु मेडिकल काॅलेज एण्ड हाॅस्पिटल, भोपाल में एम.बी.बी.एस. में दाखिला लिया, लेकिन घोर गरीबी के चलते दूसरे वर्ष की फीस जो 5 लाख 72 हजार थी, उसे भरने के लिए उसके पास एक फूटी कौड़ी भी न थी, जिसके लिए उसने और मेरे पति ने मिलकर लोगों के घर-घर जाकर पैसा इकट्ठा किया, लेकिन जो नाकाफी था। इसके लिए मैंने जब अपने ब्लॉग पर उसके लिए आर्थिक सहायता की अपील की और उसे उसके कॉलेज में भी लगाने को कहा तो मुझे यह कहते बड़ी ख़ुशी है कि इसमें हमें अपेक्षित परिणाम मिले। कुछ लोगों ने अपील में दिए उसके बैंक खाते में तो कुछ लोगों ने उससे अपील में दिए उसके मोबाइल नंबर पर बात करके उसकी व्यक्तिगत रूप से आर्थिक सहायता की, जिससे उसकी फीस का जुगाड़ हुआ। यह सब कम समय में एक बड़ी रकम जुटाने का काम सोशल मीडिया की ताकत से ही संभव हो पाया है।