shabd-logo

विश्वास पर भारी अन्धविश्वास

18 सितम्बर 2022

93 बार देखा गया 93

किसी व्यक्ति या प्रचलित धारणा पर आंख मूँदकर बिना सोचे-समझे विश्वास करना अन्धविश्वास है। किन्हीं रुढ़िवादियोँ, विशिष्ट धर्माचार्योँ के उपदेश या किसी राजनैतिक सिद्धांत को बिना अपने विवेक के विश्वास कर स्वीकार लेना अन्धविश्वास है। पारलौकिक शक्तियों के भय को भोलेपन से बिना अपने विवेक से सोचे मान लेना भी अन्धविश्वास है।  दुनिया के बहुत से लोगों का मानना है कि भारत में सबसे अधिक अन्धविश्वास है , लेकिन इसे पूर्ण रूप से सत्य नहीं ठहराया जा सकता है। हाँ बहुत कुछ अन्धविश्वास आज भी व्याप्त है- जैसे लोग बीमारी में या विषैले जीव की काटने पर ओझा,पण्डे, बाबाओं या झाड़-फूंकने वालों के चक्कर में फंस जाते हैं।  नौकरी, संतान प्राप्ति के लिए गंडे-ताबीज बंधवाते हैं। भरा लोटा हाथ से गिर जाने या किसी के पीछे से आवाज देने या बिल्ली के रास्ता काट देने को अपशगुन मानते हैं। लेकिन अन्धविश्वास की यह परम्परा हमारे भारत ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व में है। यह प्रत्येक देश और समाज में व्याप्त है। यह पिछड़े और अविकसित या विकासशील देशों में ही नहीं बल्कि विकसित देशों में भी प्रचलित है, जो हमें समय-समय पर समाचार पत्रों अथवा टीवी या इंटरनेट पर आसानी से देखने को मिल जाता है। हमारे देश में जिन बाबा, पीर-फ़कीर या तांत्रिकों पर हमारा भारतीय समृद्ध वर्ग और राजनीतिज्ञ और कूटनीतिज्ञ आस्था रखते हैं, उन्हीं में पश्चिम के औद्योगिक समाज की भी आस्था स्पष्ट दिखती है। चंद्रास्वामी, बालयोगेश्वर या महेश योगी जैसे इसी तबके में सांस्कृतिक नायक बने। आज तो चमत्कारी बाबाओं की धाक इस बात पर निर्भर करने लगी हैं कि विदेशों में उनकी कितनी मान्यता है।  

हमारे भारतीय समाज में ही नहीं अपितु विश्व के लगभग सभी देशों में अन्धविश्वास का व्यापक स्तर पर बोलबाला है। इसे श्री गिरीश्वर मिश्र की धारणा से समझना आसान होगा, जहाँ उनका कहना है कि , ' प्राय: अन्धविश्वासोँ का जन्म और प्रचलन जीवन की अनबूझ पहेली जैसी स्थिति में नियंत्रण करने के लिए होता है।  जब मनुष्य को कोई उचित मार्ग दिखाई नहीं पड़ता तो अन्धकार में छटपटाहट से उभरने और बचने के लिए जीने का बहाना ढूंढना पड़ता है।  अन्धविश्वास ऐसे ही बहानों के बलबूते गढ़े जाते हैं, जीवित रहते हैं और आदमी की जिंदगी में अहम् भूमिका निभाते हैं। " 

आज देश में अन्धविश्वासोँ को दूर करने के स्थान उन्हें कैसे हवा देकर हथियार बनाया जा रहा है, इसी सन्दर्भ में वे आगे कहते हैं कि, " आज बौद्धिकता के प्रबल आग्रह की जमीन में भी सत्य, शिव, सुन्दर की दुहाई देने वाले देश में, सत्य की अनुभूति की जिज्ञासा करने वाले नचिकेता के देश में अब कोरे विश्वास, खोखले विश्वास, अनुभव को मुंह चिढ़ाते विश्वास चारोँ और चुनौती दे रहे हैं।  उनकी चुनौती तो कोई नहीं स्वीकारता।  हाँ, उन्हें हथियार बनाकर या ढाल बनाकर अपना उल्लू जरूर सीधा करने की कोशिश होती रहती है।  विश्वास राजनीतिक दांव-पेंच का हथकंडा हो चला है।" 


  

  

Sanju Nishad

Sanju Nishad

बेहतरीन प्रस्तुति की है मैम 🙏🙏

19 सितम्बर 2022

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

बहुत शानदार लिखा मैम

19 सितम्बर 2022

Dr. Pradeep Tripathi

Dr. Pradeep Tripathi

सुन्दर लेख।

18 सितम्बर 2022

ऋतेश आर्यन

ऋतेश आर्यन

बहुत सुंदर और सटीक लिखा आपने👌👏

18 सितम्बर 2022

अमर सिंह

अमर सिंह

Bahut sundar prastuti

18 सितम्बर 2022

काव्या सोनी

काव्या सोनी

Bilkul shi hai mem अंधविश्वास की बहुत अच्छे व्याख्या की आपने बेहतरीन लिखा हमेशा की तरह💐💐💐👌👌👌👏👏👏

18 सितम्बर 2022

21
रचनाएँ
समसामयिक लेख (दैनन्दिनी-सितम्बर, 2022)
5.0
माह सितम्बर की दैनन्दिनी में 'गणेशोत्सव' और 'नवरात्रि महोत्सव' के रंग में रंगकर पर्वों का आनंद जरूर उठाइए, लेकिन इतना ख्याल रखे कि इसमें अपने 'बुजुर्गों को साथ लेकर उनका आशीर्वाद लेना न भूलें'। भले ही 'सोशल मीडिया' का जमकर प्रयोग करें लेकिन ध्यान रहे ' इंसानियत की सीमा' का उल्लंघन न हो, किसी को 'मानसिक त्रास' न पहूँचे। अपनी दुनिया में मस्त रहें, लेकिन प्रकृति की भी चिंता करें, इसके लिए ' ग्लोबल वार्मिंग' और रासायनिक खादों से होने वाली बीमारियों के बचाव के लिए लोगों को 'जैविक खाद' प्रयोग के लिए प्रेरित करते रहिए। हमारे समाज में आज भी बड़े पैमाने में 'अन्धविश्वास' व्याप्त है, इसलिए इस बुराई को दूर करने के लिए 'शिक्षा का अलख' जगाने के लिए आगे आकर सार्थक प्रयास करें। आज जीवन में बड़ी अंधी भाग-दौड़ मची हैं, इसलिए अपने घर-रेस्त्रा में 'बचपन के मित्रों, सहपाठियों' को चाय-कॉफी पर बुलाकर चुस्कियां लेते हुए अपने बचपन और स्कूल की यादें ताज़ी कर घर-परिवार और देश दुनिया से जुड़कर जीवन में कुछ पल सुकून के अनुभव करके जरूर देखिए।
1

मेरे शिवा का इको-फ्रेंडली गणेशोत्सव

1 सितम्बर 2022
21
17
1

बच्चे जब बहुत छोटे होते हैं, तो उनकी अपनी एक अलग ही दुनिया होती है। उनके अपने-अपने खेल-खिलौनें होते हैं, जिनमें वे दुनियादारी के तमाम झमेलों से कोसों दूर अपनी बनायी दुनिया में मस्त रहते हैं। इसीलि

2

भूमण्डलीय ऊष्मीकरण

2 सितम्बर 2022
15
11
2

हमारा वायुमंडल प्रकृति की देन है।  यह हमारा पालनकर्ता और जीवन का आधार है।  यही हमें स्वस्थ और सुखी रखने का रक्षाकवच है।  लेकिन यदि यह विषाक्त होने लगे तो यह अभिशाप बनकर हमारे अस्तित्व, जीवन-निर्वाह, व

3

ताऊ वाली कॉफी

4 सितम्बर 2022
26
21
3

आज का विषय है कॉफी और दोस्ती। इस विषय पर बात करने से पहले बताती चलूँ कि हमें तो बचपन से ही चाय का चस्का है। क्योंकि बचपन से ही देखते आये कि घर आये मेहमान हो या नाते-रिश्तेदार जब तक उन्हें चाय-पानी नही

4

राष्ट्र निर्माता और संस्कृति संरक्षक होता है शिक्षक

5 सितम्बर 2022
23
17
2

शिक्षक को राष्ट्र का निर्माता और उसकी संस्कृति का संरक्षक माना जाता है। वे शिक्षा द्वारा छात्र-छात्राओं को सुसंस्कृतवान बनाकर उनके अज्ञान रूपी अंधकार को दूर कर देश को श्रेष्ठ नागरिक प्रदान करने मे

5

सोशल मीडिया की ताकत

6 सितम्बर 2022
30
23
3

वर्तमान समय इंटरनेट क्रांति का युग है, जहाँ सोशल मीडिया की ताकत को हम जंगल की आग और आंधी-तूफ़ान कह सकते हैं। यह परंपरागत मीडिया से अलग एक ऐसी आभासी दुनिया है, जहाँ पलक झपकते ही सूचनाओं के आदान प्रदान स

6

समय के आगे सबको झुकता पड़ता है

7 सितम्बर 2022
21
14
2

पंख होते हैं समय के जो पंख फैलाकर उड़ता है दिखता नहीं वह किसी को  पर छाया पीछे छोड़ता है कोई भरोसा नहीं समय का वह न बोलता न दुआ-सलाम करता है पर अपने आगे झुकाकर सबको चमत्कार दिखाता है बड़ा सय

7

वृद्ध आश्रम

8 सितम्बर 2022
21
18
4

कभी स्कूल में हमने हमारे हिन्दू आश्रम व्यवस्था के बारे में पढ़ा था, जिसमें हमें बताया गया था कि चार आश्रम ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास होते हैं। तब हमें पता नहीं था कि समय के साथ इन आश्रम व

8

मानसिक स्वास्थ्य

11 सितम्बर 2022
23
16
3

महाकवि कालिदास के एक सूक्ति है - शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्' अर्थात धर्म का (कर्तव्य का) सर्वप्रथम साधन स्वस्थ शरीर है।  यदि शरीर स्वस्थ नहीं तो मन स्वस्थ नहीं रह सकता।  मन स्वस्थ नहीं तो विचार स्वस्थ

9

कई वर्ष बाद बचपन और स्कूल की सहपाठी का मिलना

13 सितम्बर 2022
13
8
0

जहाँ पहले बचपन में सखी-सहेलियों के साथ खेलने-कूदने के साथ ही स्कूल की पढ़ाई खत्म होती तो कौन कहाँ चला गया, इसकी खबर तक नहीं हो पाती थी, वहीं जब से इंटरनेट का मकड़जाल फैला तो भूली-बिसरी सखी सहेलियों

10

राष्ट्रभाषा स्वतंत्र देश की संपत्ति होती है

14 सितम्बर 2022
11
7
2

          किसी राष्ट्र की संस्कृति उस राष्ट्र की आत्मा है। राष्ट्र की जनता उस राष्ट्र का शरीर है। उस जनता की वाणी राष्ट्र की भाषा है। डाॅ. जानसन की धारणा है, ’भाषा विचार की पोषक है।’ भाषा सभ्यता और सं

11

मानवीय पूंजी

15 सितम्बर 2022
8
4
2

हमारी मानवीय पूंजी शिक्षा, प्रशिक्षण, बुद्धि, कौशल, स्वास्थ्य और अनुभव होती है। इसी आधार पर किसी भी संगठन या संस्थान में हमारी सेवाओं के बदले हमारा पारिश्रमिक और भूमिका का निर्धारण होता है। यह मानवीय

12

विश्वास पर भारी अन्धविश्वास

18 सितम्बर 2022
32
27
6

किसी व्यक्ति या प्रचलित धारणा पर आंख मूँदकर बिना सोचे-समझे विश्वास करना अन्धविश्वास है। किन्हीं रुढ़िवादियोँ, विशिष्ट धर्माचार्योँ के उपदेश या किसी राजनैतिक सिद्धांत को बिना अपने विवेक के विश्वास कर स्

13

श्रद्धा पर भारी काली गाय की मार

19 सितम्बर 2022
15
11
3

आज भी दैनिक लेखन का विषय अन्धविश्वास है।  सोच रही थी कि इस बारे में क्या लिखूँ तो कुछ वर्ष पूर्व अपने मोहल्ले की एक घटना याद आ गयी। जब  हमारी बिल्डिंग के चौथे माले में एक ऐसा परिवार रहता था। उनके घर म

14

जैविक खेती

21 सितम्बर 2022
20
15
4

मुझे याद है बचपन में हमारे गाँव के खेतों की फसलें हो या घर की बावड़ियों में उगाई जाने वाली साग-सब्जियां, किसी में भी रासायनिक खाद का प्रयोग बहुत दूर की बात थी। उस समय कोई नहीं जानता था कि गोबर के अलावा

15

मेरी पहली पढ़ी पुस्तक -हेमलासत्ता

22 सितम्बर 2022
17
12
4

बचपन में जब स्वर और व्यंजन को पाटी में स्लेट से घोटा लगा-लगाकर लिखने का अभ्यास किया तो पहले दो, फिर तीन और फिर चार-चार शब्दों को जोड़-जोड़ कर पढ़ना सीखा तो सबसे पहले स्कूल में पढ़ाये जाने वाले पाठ्यक्रमों

16

शर्मसार होती इंसानियत

23 सितम्बर 2022
20
15
4

आज का दैनिक लेखन का विषय बड़ा ही संवेदनशील, विचारणीय और चिंतनीय है। आज देश-प्रदेश या हमारे आस-पास के कई इंसान कहलाने वाले जीवों के ऐसे-ऐसे घृणित, कुत्सित, पाशविक प्रवृत्ति के चहेरे हमारे सामने आ रहे है

17

अंतरिक्ष यात्रा

25 सितम्बर 2022
9
8
1

आज का युग विज्ञान का युग है। हर दिन होने वाले नवीन वैज्ञानिक आविष्कार दुनिया में नयी क्रांति कर रहे हैं। आज विज्ञान के आविष्कारों ने दैनिक जीवन सम्बन्धी, शिक्षण, चिकित्सा, यातायात, संचार आदि क्षेत्रों

18

इंटरनेट के बिना एक दिन

27 सितम्बर 2022
14
10
2

इंटरनेट से पहले जब दूरभाष या टेलीफोन का आविष्कार हुआ तो यह मानवीय जीवन के लिए एक उपयोगी वरदान था। क्योँकि तब दूर देश-परदेश में रहने वाले अपने लोगों से बातचीत एक सरलतम सुविधा माध्यम था। टेलीफोन से लोगो

19

नवरात्र के व्रत और बदलते मौसम के बीच सन्तुलन

28 सितम्बर 2022
7
5
2

आज नवरात्र सिर्फ साधु-सन्यासियों की शक्ति साधना पर्व ही नहीं अपितु आम लोगों के लिए अपनी मनोकामना, अभिलाषा पूर्ति और समस्याओं के समाधान के लिए देवी साधना कर कुछ विशिष्ट उपलब्धि प्राप्ति का सौभाग्यद

20

युवाओं के लिए शारीरिक सकारात्मकता

28 सितम्बर 2022
16
11
1

हमारे भारतीय चिन्तन में शरीर को धर्म का पहला साधन माना गया है। महाकवि कालिदास की सूक्ति "शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्"  और इस हेतु सदैव स्वस्थ रहने को कर्तव्य निरूपित किया है। "धर्मार्थ काममोक्षाणाम् आरो

21

जादुई दुनिया

17 नवम्बर 2022
1
7
0

छुटपन में मैंने जब पहले बार सर्कस में जादू का खेल देखा तो आंखे खुली की खुली रह गई। कई दिन तक जादूगर की वह छड़ी आँखोँ में घूमती रही। रात को जब सोती तो सपने भी उसी के आते, जिसमें वह कभी किसी चीज को गुम क

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए