आज का युग विज्ञान का युग है। हर दिन होने वाले नवीन वैज्ञानिक आविष्कार दुनिया में नयी क्रांति कर रहे हैं। आज विज्ञान के आविष्कारों ने दैनिक जीवन सम्बन्धी, शिक्षण, चिकित्सा, यातायात, संचार आदि क्षेत्रों में अपना प्रभुत्व जमा रखा है। आज से लगभग पांच सौ वर्ष पूर्व गैलीलियो ने अपनी बनाई दूरबीन के माध्यम से जब चाँद की अनेक जानकारियाँ दी तो उसी के परिणामस्वरूप आज के वैज्ञानिक अंतरिक्ष-यान की उड़ान भरकर नए-नए आविष्कार करने में सफल हो रहे हैं।
भले ही हमारे महाभारत और पौराणिक ग्रंथों में चंद्र व अन्य ग्रहों की यात्रा का वर्णन मिलता है, लेकिन यदि हम आधुनिक सन्दर्भ में वास्तविक धरातल पर आकर देखते हैं तो अंतरिक्ष-यात्रा का प्रारम्भ ४ अक्टूबर, १९५७ को माना जाएगा क्योंकि इस दिन रूस ने सर्वप्रथम अपना कृत्रिम भू-उपग्रह 'स्पूतनिक-१ अंतरिक्ष भेजा था, जो तीन माह तक पृथ्वी के चक्कर लगाता रहा। इसके बाद उन्होंने 'स्पूतनिक-२ छोड़ा, जिसमें लाइका नामक कुतिया थी। इसके बाद अमेरिका ने २१ जनवरी १९५८ को अपना 'एक्सफ्लोरर-१' नामक अपना पहला भू-उपग्रह छोड़ा और फिर १७ मार्च, १९५८ को 'बेनगार्ड-१' उपग्रह छोड़ा, जो जो हज़ार वर्ष तक पृथ्वी के चक्कर लगाता रहेगा।
अंतरिक्ष सम्बन्धी अनेक प्रयोगों के पश्चात रूस ने १२ अप्रैल १९६१ को प्रथम मानव यात्री यूरी गागारिन को अंतरिक्ष में भेजा। उनके इस सफल परीक्षण के बाद अमेरिका ने अपने 'जैमिनी-११ एवं जैमिनी-१२ ' उपग्रह में एक-एक मानव भेजे। दोनों देश अंतरिक्ष में जाकर अनेक प्रकार के परीक्षण करते रहे। इन्हीं परीक्षणों का परिणाम रहा कि अमेरिका ने सबसे पहले अंतरिक्ष में स्टेशन निर्माण कर २१ जुलाई १९६९ को 'अपोलो-११' में तीन यात्रियों को चन्द्रमा पर भेजा, जिसमें से सर्वप्रथम चाँद पर कदम रखने वाले यात्री बने- नीलआर्म स्ट्रांग और एडविन एल्ड्रिल।
अमेरिका ने अपोलो-११ के चार माह पश्चात 'अपोलो-१२' छोड़ा, जिसमें तीन यात्री थे, जो २१ नवंबर १९६९ को रात्रि में चाँद के तूफनी महासागर में उतरे, जहाँ उन्होंने अधिक समय तक चाँद पर विचरण किया। वे इस दौरान वहां से मिट्टी व चट्टानों के अनेक नमूने साथ लाये, जिनका अध्ययन विश्व के वैज्ञानिकों के साथ ही हमारे भारत के वैज्ञानिकों ने किया। यद्यपि चाँद के बारे में अनेक गुत्थियां भी अनसुलझी हैं।
चाँद के बाद अंतरिक्ष-अनुसन्धान का नया लक्ष्य बना मंगल ग्रह, जिसमें सबसे पहले अमेरिका सफल रहा। उनका २० अगस्त १९७५ को 'वाइकिंग-१' यान २० जुलाई, १९७६ को मंगल ग्रह पर उतरा। यद्यपि इसमें को मानव नहीं था, लेकिन यह मंगल पर सफलता का पहला कदम था। आज अंतरिक्ष में अमेरिका और रूस के साथ ही हमारे भारत का भी झंडा लहरा रहा है। इस क्षेत्र में अनुसन्धान दिन-प्रतिदिन प्रगति पर हैं। वैज्ञानिकों का अंतरिक्ष में मानव जीवन के लिए कल्याणकारी और मंगलकारी अभियान निरंतर जारी हैं।