ख्वाहिसे-दिल बस इतनी है मेरी सुनने वालो से ,
इस ग़ज़ल पर उनका धीरे से इरशाद बहूत है |
उनकी उसूले-मोहबत्त पर किताब बहूत है ,
इजहारे मोहबत्त में निगाहों का हिसाब बहूत है |
आज जो भी दूर है तुझसे मुसाफिर , समझो की ,
उसकी निगाहों में तेरे गुनाहों का हिसाब बहूत है |
मेरा एक-एक एब आज भी सताता है उसको ,
इस सच्चाई के लिए उनका हिसाबे-निगाह बहूत है |
आज यंहा तू भी अपनी कीमत बोल दे मुसाफिर ,
बजारे-इश्क में तेरे लिए भी खरीदार बहूत है |
अगर किसी महफिल में बेगाना बना तो गम ना करना
वंहा नही तो और कही तेरे लिए खरीदार बहूत है |
ख्वाहिसे-दिल बस इतनी है मेरी सुनने वालो से ,
इस ग़ज़ल पर उनका धीरे से इरशाद बहूत है |