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आ जा मर गया तू?

6 अगस्त 2022

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मैं बरसों से चुप हूं। कुछ नहीं बोली। बोलती भी क्या? न जाने ये सब कैसे हो गया। मैं मर ही गई।
मैं यहां परलोक में आ गई। तू वहीं रह गया था दुनिया में। मैं अभागी तो रो भी न सकी। कैसे रोती? दुनिया कहती कि कैसी पागल औरत है, इस बात पर रोती है कि इसका बेटा मरा नहीं।
अरे बात तो एक ही है न। तू जीवित रहा, पर मैं तो मर गई न। बिछुड़ तो गए ही हम। मैं जब मर कर यहां आई तो मैंने तुझे खूब ढूंढा। पर तू मुझे कैसे मिलता? तू तो वहीं दुनिया में ही था।
जब मुझे पता चला कि मेरे साथ धोखा हो गया है। मैं मर गई और तू वहीं है, मरा नहीं, तो मैं चुप हो गई। कहती भी क्या? किससे कहती?
पर अब मैं बोलूंगी। मुझे तुझसे कुछ नहीं कहना। पर दुनिया को तो बताना है न।
तुझसे क्या कहूंगी? तुझे देख पा रही हूं यही बहुत है मेरे लिए। बरसों इंतजार किया है मैंने तेरा।
समय ने कैसा गुल खिलाया कि मैं, तेरी मां, बरसों से तेरे मरने का इंतजार कर रही हूं।
अब दुनिया को बताना तो पड़ेगा न, कि ये सब क्या गोरखधंधा है। नहीं तो दुनिया मुझे पागल समझेगी। धूर्त समझेगी। ऐसी पिशाचिनी समझेगी जो अपने पुत्र के मरने की बात करती है।
नहीं- नहीं, मैं अब कुछ होने से नहीं डरती, डरती हूं समझे जाने से। मैंने बहुत दुःख सहे हैं। अब नहीं।
मैं दुनिया को सब कुछ बता देना चाहती हूं।
ये दुनिया कुछ भी भूलती नहीं है रे। सब याद रखती है। हमें ज़िन्दगी तो साठ- सत्तर- अस्सी बरस की मिलती है पर लांछन सदियों के मिल जाते हैं।
याद है एक बार एक मां ने अपने बेटे के लिए राज मांग लिया और अपनी सौत के बेटे को जंगल में भिजवा दिया था। बस, इतनी सी बात थी, पर दुनिया आज तक कुछ नहीं भूली। उस मां को आज तक लोग पापन समझते हैं।
लोगों ने उस पर इतनी लानतें बरसाईं कि बाद में एक मां ने दूसरे के बेटे की जान बचाने के लिए अपने ख़ुद के बेटे की बलि चढ़ा दी। अब लोग तो उस मां को महान कहने लगे पर ख़ुद उसके बेटे के दिल से कोई पूछे। उस बेचारे की क्या ग़लती थी जो ख़ुद उसकी मां ने ही उसे मरने के लिए छोड़ दिया?
ख़ैर, जाने दे। दूसरों से मुझे क्या। मैं तो बस अपनी बात करूंगी।
जो जैसा करेगा, वैसा भरेगा।
मैं तो बस यही कहूंगी कि मैंने जो कुछ किया वो क्यों किया? क्या मजबूरी थी कि मैं तुझे, मेरे ही बेटे को वो सब करने से रोकती रही जो वो करना चाहता था।
दुनिया ये तो जानती है कि मैं तेरी मां थी, मुझे हर हाल में तेरा ख़्याल रखना चाहिए था क्योंकि तू मेरा बेटा था। तुझे वो सब करने देना चाहिए था जो भी तू करना चाहता था।
पर बेटा, ये भी तो सोच, कि मेरी भी एक मां थी।
मैं पहले तुझे ये तो बता दूं कि वो कौन थी???


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रचनाएँ
आ जा, मर गया तू?
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यह किताब बारह भाषाओं में प्रकाशित बहुचर्चित उपन्यास "जल तू जलाल तू" के दो पात्रों के मानस संचार पर आधारित है जो मां बेटा हैं। कथानक में मां बेटे को बचाने की कोशिश में दिवंगत हो जाती है। फिर कालांतर में बेटे की मृत्यु होने पर वह उसे एक पत्र लिख कर सारी बात का ब्यौरा देती है और बताती है कि वह उसका इंतजार यहां करती रही है, और अब उसके मर कर यहां आने पर खुश है।
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वो कौन थी? वो मेरी मां थी। बताया ना। बहुत मुश्किल जगह में रहती थी। सब सोचेंगे कि ये मुश्किल जगह क्या होती है। जगह या तो ठंडी होती है, या गर्म। ज़्यादा बरसात वाली होती है। पथरीली, बंजर, पहाड़ी, मैदानी.

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कुछ ही दिनों में मेरी ज़िन्दगी में एक बहुत मज़ेदार दिन आया। मैं आज भी पूरे दिन इस मज़ेदार दिन की बातें चटखारे लेकर करती रह सकती हूं। ये था ही ऐसा। मेरे जीवन का एक अहम दिन। इस दिन मैंने एक साथ सुख और द

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छी- छी... हे भगवान! ये मैंने क्या किया? हे मेरे परमात्मा, तू ही कोई पर्दा डाल देता मेरी आंखों पर। ऐसा मंजर तो न देखती मैं! पर तुझे क्या कहूं, ग़लती तो मेरी ही थी सारी। मैं क्या करूं, मैं खुद भी अपने ब

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नहीं। मेरी बात नहीं मानी उस लड़की ने। वो तो उल्टे मुझे ही समझाने बैठ गई। बोली- आंटी, मैं उसके मिशन में उसका साथ देने के लिए उसकी मित्र बनी हूं, उसे रोकने के लिए नहीं। वो बोली- "मुझे आपके बेटे का यही स

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चल बेटा, अब बंद करती हूं। मैं ये तो नहीं कहूंगी कि तू मेरी ज़िंदगी से कोई सीख ले, पर ये ज़रूर कहूंगी कि मेरी ज़िंदगी ने ख़ुद मुझे बहुत सिखाया। वैसे भी, ये बेकार की बातें हैं कि दूसरों के जीवन से हम बह

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