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आ जा मर गया तू?

6 अगस्त 2022

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ये समय मेरे लिए तेज़ी से बदलने का था। बहुत सी बातें ऐसी थीं जिनमें मैं अपनी मां के साथ रहते- रहते काफ़ी बड़ी हो गई थी। अब मम्मी के साथ आकर मैं फ़िर से बच्ची बन गई। दूसरी तरफ कई बातें ऐसी भी थीं जिनमें मैं अपनी मां के साथ रहते हुए बिल्कुल अनजान बच्ची ही बनी हुई थी पर मम्मी के साथ तेज़ी से बढ़ने लगी। ये दुनिया भी खूब है। जो मुझे दुनिया में ले आया उसने कुछ नहीं दिया और जिन्होंने मुझ पर तरस खाकर मुझे अपनाया उन्होंने मेरे लिए तमाम खुशहाली के रास्ते खोल दिए।
शुरू में कुछ दिन तक तो मैं कुछ समझ ही नहीं पाई कि ये सब क्या हुआ? कहीं ऐसा तो नहीं कि कभी मेरी पुरानी ज़िन्दगी फ़िर से लौट आयेगी। लेकिन धीरे- धीरे अपने पुराने नाम रसबाला के साथ मेरी पुरानी ज़िन्दगी भी मेरी यादों से निकल कर खोने लगी। अब मैं पूरी तरह रसबानो ही बन गई।
हमारा घर हिन्दुस्तान से बहुत दूर अरब देश में था। इंडिया में कुछ दिन घूम फ़िर कर हम लोग वापस आ गए।
बहुत बड़ा और खुला - खुला घर था। तमाम खूबसूरत पत्थरों से सजा हुआ। घर में मोटर तो थी पर साथ में मेरे मामा के पास एक से बढ़कर एक ख़ूबसूरत और कद्दावर घोड़े भी थे। उनका कारोबार था एक से एक उम्दा नस्ल के घोड़े खरीदना, उन्हें लड़ाई- युद्ध की नायाब ट्रेनिंग देना और फिर ऊंचे दामों पर बेच देना। ख़ूब धन बरसता था। अब्बा हुजूर का अपना लंबा चौड़ा कारोबार था।
मैं हर समय सजी संवरी रहती। मेरी पढ़ाई भी आलीशान स्कूल में हुई। जो मांगती मिलता। मेरी बहुत सी सहेलियां थीं। घर में कई बहन भाई भी।
हमारे घर मामा के साथ कभी- कभी उनके कुछ दोस्त भी आया करते थे। उन्हीं में से एक था जॉनसन।
मामा कहते थे कि ये सेना में है। और सेना भी अमरीका की।
उन दिनों अमरीकी सेना कई देशों में तैनात थी। मामा कहते थे कि जॉनसन सिर्फ़ उनका दोस्त ही नहीं है बल्कि उनके कारोबार में भी सहायता करता है। वो मामा को ऐसे लोगों से मिलवाया करता था जिन्हें बढ़िया घोड़ों की ज़रूरत रहा करती थी।
जॉनसन केवल बहादुर ही नहीं बहुत मिलनसार भी था। धीरे - धीरे बिल्कुल हमारे घर के सदस्य जैसा बन गया। कभी अकेले में मुझसे मिलता तो कहता था कि मैं तेरे मामा के लिए नहीं, तेरे लिए आता हूं तुम्हारे घर। मैं शरमा जाती।
अब वो जब भी आता ज़्यादा से ज़्यादा मुझसे अकेले में ही मिलने की कोशिश करता। मैं मन ही मन डरती थी कि कहीं कोई कुछ अनहोनी न हो जाए।
लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। जॉनसन समझदार था। संजीदा भी। शायद सैनिकों में एक आंतरिक नैतिकता तो होती ही है। वो चीज़ों को बिगड़ने से बचाना अच्छे से जानते हैं। शोहदों सी लापरवाही उनमें नहीं होती।
एक दिन जॉनसन की इच्छा मेरे मामा के ज़रिए मेरी मम्मी तक पहुंच गई और मम्मी ने अब्बा हुजूर को भी तैयार कर लिया कि मेरी कहानी को आख़िर परवान चढ़ा ही दिया जाए।
मैं जॉनसन की हो गई।


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रचनाएँ
आ जा, मर गया तू?
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यह किताब बारह भाषाओं में प्रकाशित बहुचर्चित उपन्यास "जल तू जलाल तू" के दो पात्रों के मानस संचार पर आधारित है जो मां बेटा हैं। कथानक में मां बेटे को बचाने की कोशिश में दिवंगत हो जाती है। फिर कालांतर में बेटे की मृत्यु होने पर वह उसे एक पत्र लिख कर सारी बात का ब्यौरा देती है और बताती है कि वह उसका इंतजार यहां करती रही है, और अब उसके मर कर यहां आने पर खुश है।
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मैं बरसों से चुप हूं। कुछ नहीं बोली। बोलती भी क्या? न जाने ये सब कैसे हो गया। मैं मर ही गई। मैं यहां परलोक में आ गई। तू वहीं रह गया था दुनिया में। मैं अभागी तो रो भी न सकी। कैसे रोती? दुनिया कहती कि क

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वो कौन थी? वो मेरी मां थी। बताया ना। बहुत मुश्किल जगह में रहती थी। सब सोचेंगे कि ये मुश्किल जगह क्या होती है। जगह या तो ठंडी होती है, या गर्म। ज़्यादा बरसात वाली होती है। पथरीली, बंजर, पहाड़ी, मैदानी.

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फ़िर मेरा जन्म हुआ। मेरे पैदा होने से पहले ही मेरे पिता मेरी मां को छोड़ कर जा चुके थे। कत्ल की आरोपी "खूनी" मां के साथ भला कौन रहता। सिवा मेरे, क्योंकि मैं तो उसके पेट में ही थी। मेरी मां बताती थी कि

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कुछ ही दिनों में मेरी ज़िन्दगी में एक बहुत मज़ेदार दिन आया। मैं आज भी पूरे दिन इस मज़ेदार दिन की बातें चटखारे लेकर करती रह सकती हूं। ये था ही ऐसा। मेरे जीवन का एक अहम दिन। इस दिन मैंने एक साथ सुख और द

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जॉनसन से मेरी शादी हो गई। और संयोग देखो, शादी के बाद तुरंत ही एक बार फ़िर मेरा देश छूट गया। हम अमरीका आ गए। जॉनसन ने मेरा सब कुछ बदल दिया। वो बहुत प्यारा इंसान था। उसने मेरा मुल्क तो बदला ही, मेरा नाम

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मैं सतर्क हो गई। मैंने मन में ठान लिया कि तुझे इस नासमझी से रोकना ही है। अब मैं तेरी हर छोटी से छोटी बात पर नज़र रखने लगी। तुझे पता न चले, इस बात का ख्याल रखते हुए भी मैं तुझ पर निगाह गढ़ाए रहने लगी।

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कभी - कभी मुझे तुझ पर जबरदस्त गुस्सा आ जाता था। मैं सोचती, आख़िर तेरी मां हूं। तुझसे इतना क्यों डरूं? एक ज़ोर का थप्पड़ रसीद करूं तेरे गाल पर, और कहूं- खबरदार जो ऐसी उल्टी- सीधी बातों में टाइम खराब कि

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बेटा फ़िर एक दिन मैंने सोचा कि तूने तो अपने पिता को भी ढंग से नहीं देखा। तू तो छोटा सा ही था कि वो अचानक हम सब को छोड़ कर इस दुनिया से ही चले गए। तू भी तो मन ही मन उन्हें मिस करता होगा। अपने दूसरे दोस

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किंजान! बेटा बुढ़ापे को तो सब बेकार समझते हैं। है न! युवा लोग तो बूढ़े होना ही नहीं चाहते। उन्हें लगता है कि ये भी क्या कोई ज़िन्दगी है? बाल उड़ जाएं, दांत झड़ जाएं। हाथ कांपें, पैर लड़खड़ाएं। शायद इस

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छी- छी... हे भगवान! ये मैंने क्या किया? हे मेरे परमात्मा, तू ही कोई पर्दा डाल देता मेरी आंखों पर। ऐसा मंजर तो न देखती मैं! पर तुझे क्या कहूं, ग़लती तो मेरी ही थी सारी। मैं क्या करूं, मैं खुद भी अपने ब

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अब जो हो गया सो तो हो गया। उसे तो मैं बदल नहीं सकती थी। विधाता मुझे जो सज़ा देगा वो तो भुगतूंगी ही। अपराध तो था ही। कहते हैं कि दुनिया में सबसे बड़ा दुःख है अपनी औलाद का मरा मुंह देखना। पर बेटा, दुनिय

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नहीं। मेरी बात नहीं मानी उस लड़की ने। वो तो उल्टे मुझे ही समझाने बैठ गई। बोली- आंटी, मैं उसके मिशन में उसका साथ देने के लिए उसकी मित्र बनी हूं, उसे रोकने के लिए नहीं। वो बोली- "मुझे आपके बेटे का यही स

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अब ये बात बहुत पीछे छूट गई कि मैं तुझे जान पर खेलकर नायग्रा झरना पार करने से रोक पाऊंगी। मैं हार गई थी। तू अपनी नाव पर किसी रसायन का लेप लगवाने के लिए न्यूयॉर्क जाकर आया था। हडसन में तेरे काफ़िले को ह

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चल बेटा, अब बंद करती हूं। मैं ये तो नहीं कहूंगी कि तू मेरी ज़िंदगी से कोई सीख ले, पर ये ज़रूर कहूंगी कि मेरी ज़िंदगी ने ख़ुद मुझे बहुत सिखाया। वैसे भी, ये बेकार की बातें हैं कि दूसरों के जीवन से हम बह

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