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आ जा मर गया तू?

6 अगस्त 2022

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जॉनसन से मेरी शादी हो गई। और संयोग देखो, शादी के बाद तुरंत ही एक बार फ़िर मेरा देश छूट गया। हम अमरीका आ गए।
जॉनसन ने मेरा सब कुछ बदल दिया। वो बहुत प्यारा इंसान था।
उसने मेरा मुल्क तो बदला ही, मेरा नाम भी बदल दिया। मैं अब रस्बी हो गई। मैं भी प्यार से उसे जॉनी कहने लगी।
प्यार बड़ी अद्भुत चीज़ है। ये दुनिया की तमाम बातों से आपका ध्यान हटा देता है। ये जीने के दस्तूर ही बदल देता है। आप अपने से ज़्यादा किसी दूसरे के लिए जीने लगते हैं। वो आहिस्ता- आहिस्ता आपके भीतर उतरने लगता है।
उसकी चीज़ें आपके व्यक्तित्व में समाने लगती हैं।
फ़िर उसका जिगर और आपका दिल मिल कर जैसे आपस में होली खेलने लगते हैं।
और... खेल- खेल में एक तीसरी दुनिया आपके भीतर सांसें लेने लगती है।
फ़िर एक दिन ऐसा आया कि हमारी ज़िंदगी में तू आ गया।
तेरे पिता ने तेरा नाम रखा किंजान।
मैं तो देश- देश की बंजारन ठहरी। कुछ समझती नहीं थी। मेरे तो बार - बार नाम बदलते गए। मेरे धर्म बदलते गए, मेरे शहर बदलते गए।
पर बेटा, मेरा ईमान कभी नहीं बदला।
मैं तो इसी में ख़ुश थी कि तेरे नाम में तेरे पिता का नाम भी समाया हुआ है। मैं तो तुझ में समाई हुई थी ही। तूने महीनों तक मेरे पेट में रह कर वक्त गुज़ारा था। तेरी सांसें, तेरी लातें सब मुझे याद थीं।
बेटा, मैं तुझे एक बात ज़रूर कहूंगी कि ज़िन्दगी में सुख- दुख पर कभी दिल मत लगाना। इन पर भरोसा भी मत करना। ये ठहरते नहीं हैं। जैसे आसमान में बादल आते- जाते रहते हैं वैसे ही जीवन में इनका भी आना- जाना होता है, धूप- छांव की तरह।
मैं अभी तेरी पैदायश के सुख- झरने में नहा ही रही थी कि जॉनसन, तेरा पिता, फ़िर मुझे दुनिया में अकेला कर गया। इस बार वो नहीं, उसकी खबर घर लौटी।
लेकिन इस बार मैं अकेली नहीं थी। मेरे साथ तू था।
मेरे एक हाथ में दुखों की पोटली आ गई, दूसरे हाथ में तू।
मैंने तुझे ही अपनी पतवार बनाया और ज़िन्दगी के दरिया में अपनी हिचकोले खाती नाव को लेकर उतर गई।
तेरे पिता इतना तो छोड़ गए थे कि हम दोनों अपना पेट आराम से भर सकें। लेकिन मैंने हमेशा उनके छोड़े हुए धन को तेरी ही अमानत माना। मैं हमेशा कुछ न कुछ छोटा - मोटा काम करके थोड़ा बहुत कमाती रही ताकि अपनी और तेरी परवरिश करने के साथ ही तुझे पढ़ा लिखा कर किसी काबिल बना सकूं।
मैं कभी किसी दुकान में काम कर लेती तो कभी अपने घरों या हस्पतालों में रहते अकेले बुजुर्गों के लिए खाना - पीना और ज़रूरत की चीजें पहुंचा कर कुछ आमदनी कर लेती।
जब तक तू छोटा था तब तक मैं हमेशा यही सोचती रहती थी कि तुझे भी तेरे पिता की तरह सेना में ही भेजूंगी। लेकिन जैसे जैसे तू थोड़ा बड़ा होता गया मेरा भी मन बदलता गया।
तू बहुत प्यारा बच्चा था। मैं चाहने लगी कि मैं तुझे कभी खतरों से न खेलने दूं। सेना के जोखिम भरे काम में तुझे भेजने में भी मेरा मन डरने लगा।


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रचनाएँ
आ जा, मर गया तू?
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यह किताब बारह भाषाओं में प्रकाशित बहुचर्चित उपन्यास "जल तू जलाल तू" के दो पात्रों के मानस संचार पर आधारित है जो मां बेटा हैं। कथानक में मां बेटे को बचाने की कोशिश में दिवंगत हो जाती है। फिर कालांतर में बेटे की मृत्यु होने पर वह उसे एक पत्र लिख कर सारी बात का ब्यौरा देती है और बताती है कि वह उसका इंतजार यहां करती रही है, और अब उसके मर कर यहां आने पर खुश है।
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मैं बरसों से चुप हूं। कुछ नहीं बोली। बोलती भी क्या? न जाने ये सब कैसे हो गया। मैं मर ही गई। मैं यहां परलोक में आ गई। तू वहीं रह गया था दुनिया में। मैं अभागी तो रो भी न सकी। कैसे रोती? दुनिया कहती कि क

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वो कौन थी? वो मेरी मां थी। बताया ना। बहुत मुश्किल जगह में रहती थी। सब सोचेंगे कि ये मुश्किल जगह क्या होती है। जगह या तो ठंडी होती है, या गर्म। ज़्यादा बरसात वाली होती है। पथरीली, बंजर, पहाड़ी, मैदानी.

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फ़िर मेरा जन्म हुआ। मेरे पैदा होने से पहले ही मेरे पिता मेरी मां को छोड़ कर जा चुके थे। कत्ल की आरोपी "खूनी" मां के साथ भला कौन रहता। सिवा मेरे, क्योंकि मैं तो उसके पेट में ही थी। मेरी मां बताती थी कि

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कुछ ही दिनों में मेरी ज़िन्दगी में एक बहुत मज़ेदार दिन आया। मैं आज भी पूरे दिन इस मज़ेदार दिन की बातें चटखारे लेकर करती रह सकती हूं। ये था ही ऐसा। मेरे जीवन का एक अहम दिन। इस दिन मैंने एक साथ सुख और द

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ये समय मेरे लिए तेज़ी से बदलने का था। बहुत सी बातें ऐसी थीं जिनमें मैं अपनी मां के साथ रहते- रहते काफ़ी बड़ी हो गई थी। अब मम्मी के साथ आकर मैं फ़िर से बच्ची बन गई। दूसरी तरफ कई बातें ऐसी भी थीं जिनमें

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तू धीरे- धीरे बड़ा होने लगा और तुझे देख देख कर ज़िन्दगी पर मेरा भरोसा बढ़ने लगा। मैं ख़ुश रहने लगी। ये कितनी अजीब बात है न? इमारतें, सड़कें, पुल, झीलें, झरने, बग़ीचे, बाज़ार, मोटर, रेल, दुकानें, खेत..

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मैं सतर्क हो गई। मैंने मन में ठान लिया कि तुझे इस नासमझी से रोकना ही है। अब मैं तेरी हर छोटी से छोटी बात पर नज़र रखने लगी। तुझे पता न चले, इस बात का ख्याल रखते हुए भी मैं तुझ पर निगाह गढ़ाए रहने लगी।

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कभी - कभी मुझे तुझ पर जबरदस्त गुस्सा आ जाता था। मैं सोचती, आख़िर तेरी मां हूं। तुझसे इतना क्यों डरूं? एक ज़ोर का थप्पड़ रसीद करूं तेरे गाल पर, और कहूं- खबरदार जो ऐसी उल्टी- सीधी बातों में टाइम खराब कि

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बेटा फ़िर एक दिन मैंने सोचा कि तूने तो अपने पिता को भी ढंग से नहीं देखा। तू तो छोटा सा ही था कि वो अचानक हम सब को छोड़ कर इस दुनिया से ही चले गए। तू भी तो मन ही मन उन्हें मिस करता होगा। अपने दूसरे दोस

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किंजान! बेटा बुढ़ापे को तो सब बेकार समझते हैं। है न! युवा लोग तो बूढ़े होना ही नहीं चाहते। उन्हें लगता है कि ये भी क्या कोई ज़िन्दगी है? बाल उड़ जाएं, दांत झड़ जाएं। हाथ कांपें, पैर लड़खड़ाएं। शायद इस

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छी- छी... हे भगवान! ये मैंने क्या किया? हे मेरे परमात्मा, तू ही कोई पर्दा डाल देता मेरी आंखों पर। ऐसा मंजर तो न देखती मैं! पर तुझे क्या कहूं, ग़लती तो मेरी ही थी सारी। मैं क्या करूं, मैं खुद भी अपने ब

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अब जो हो गया सो तो हो गया। उसे तो मैं बदल नहीं सकती थी। विधाता मुझे जो सज़ा देगा वो तो भुगतूंगी ही। अपराध तो था ही। कहते हैं कि दुनिया में सबसे बड़ा दुःख है अपनी औलाद का मरा मुंह देखना। पर बेटा, दुनिय

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नहीं। मेरी बात नहीं मानी उस लड़की ने। वो तो उल्टे मुझे ही समझाने बैठ गई। बोली- आंटी, मैं उसके मिशन में उसका साथ देने के लिए उसकी मित्र बनी हूं, उसे रोकने के लिए नहीं। वो बोली- "मुझे आपके बेटे का यही स

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अब ये बात बहुत पीछे छूट गई कि मैं तुझे जान पर खेलकर नायग्रा झरना पार करने से रोक पाऊंगी। मैं हार गई थी। तू अपनी नाव पर किसी रसायन का लेप लगवाने के लिए न्यूयॉर्क जाकर आया था। हडसन में तेरे काफ़िले को ह

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चल बेटा, अब बंद करती हूं। मैं ये तो नहीं कहूंगी कि तू मेरी ज़िंदगी से कोई सीख ले, पर ये ज़रूर कहूंगी कि मेरी ज़िंदगी ने ख़ुद मुझे बहुत सिखाया। वैसे भी, ये बेकार की बातें हैं कि दूसरों के जीवन से हम बह

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