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आ जा मर गया तू?

6 अगस्त 2022

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वो कौन थी?
वो मेरी मां थी। बताया ना।
बहुत मुश्किल जगह में रहती थी। सब सोचेंगे कि ये मुश्किल जगह क्या होती है। जगह या तो ठंडी होती है, या गर्म। ज़्यादा बरसात वाली होती है। पथरीली, बंजर, पहाड़ी, मैदानी... पर ये मुश्किल जगह क्या होती है!
मुश्किल माने ऐसी जगह जहां अच्छे लोग नहीं होते। उसे इस बात का दुख नहीं होता था कि उसे चार किलोमीटर दूर से पीने का पानी लाना पड़ता है और गांव में ज़रूरत की चीज़ों तक की कोई दुकान नहीं है, बिजली नहीं आती, उबड़- खाबड़ रास्तों पर पैदल ही इधर - उधर जाना पड़ता है, कोई सवारी नहीं मिलती।
दुख तो था इस बात का कि यहां लोग अच्छे नहीं थे, एक नंबर के लड़ाका, एक- दूसरे से जलने वाले, बात बेबात के दूसरे को नुक़सान पहुंचाने वाले।
मेरी मां सुबह - सुबह दिन निकलने से भी पहले इतनी दूर जाकर नल से पानी भर के लाती थी। ज़रा सी देर हो जाए तो वहां भी नंबर नहीं आता था। फिर दिन भर गड्ढे का मटमैला पानी ही छान - छान कर पीना पड़ता था।
एक दिन मां को सुबह उठने में ज़रा सी देर हो गई। जब अपनी मटकियां लेकर नल पर पहुंची तो बहुत भीड़ थी। वो नज़दीक ही खड़ी थी कि उसने नल के पास रखी हुई एक बाल्टी के कुछ टेढ़ा होने के कारण उसमें से पानी छलकता देखा। शायद बाल्टी के नीचे कोई ईंट या पत्थर आ गया था। मां ने उसे उठा कर ठीक करना चाहा। वह बाल्टी को खिसका ही रही थी कि कहीं से भीड़ को चीरती हुई एक बूढ़ी औरत दनदनाती चली आई और मां को धक्का दिया। शायद उसे लगा कि मां उसका बर्तन हटा कर बीच में अपना बर्तन रख रही है। मां धक्के से तो संभल गई पर उसके हाथ की दोनों मटकियां गिर कर फूट गईं।
मां कुछ समझ पाती इसके पहले ही बूढ़ी औरत ने मां को मारना शुरू कर दिया और दोनों के बीच हुए इस एकतरफा झगड़े को तमाशबीन बनी भीड़ देखती रही। बूढ़ी औरत ने मां को बुरा- भला कहना जारी रखा। बड़बड़ाते हुए उसने मां को कोई भद्दी सी गाली भी दी। मटकियां फूटने से तिलमिलाई मां अपना आपा खो बैठी। उसने आव देखा न ताव, और एक ख़ाली चरी उठा कर पूरी ताक़त से बूढ़ी औरत के सिर पर दे मारी। बुढ़िया वहीं निढाल होकर गिर पड़ी। उसके प्राण पखेरू उड़ गए।
घर में पीने का पानी तो नहीं आया पर गांव से कुछ दूर के थाने की पुलिस ज़रूर आ गई।
मां को जेल हो गई। सलाखों के पीछे चली गई मेरी मां।
उसे घर के रोटी - पानी के झंझट से मुक्ति मिली।
मेरा पिता तो मज़दूर था। सुबह खेत जाकर लौटा तो उसे घर के चूल्हे में आग नहीं दिखी। उसे सुबह काम पर जाने से पहले रोटी नहीं मिली तो उसने खीज कर किसी दूसरी औरत का ठीहा सूंघना शुरू दिया। इस तरह मेरा घर खत्म हो गया।
गनीमत ये थी कि तब मैं नहीं थी। मैं इस दुनिया में आई ही नहीं थी। हां, आने वाली थी।


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रचनाएँ
आ जा, मर गया तू?
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यह किताब बारह भाषाओं में प्रकाशित बहुचर्चित उपन्यास "जल तू जलाल तू" के दो पात्रों के मानस संचार पर आधारित है जो मां बेटा हैं। कथानक में मां बेटे को बचाने की कोशिश में दिवंगत हो जाती है। फिर कालांतर में बेटे की मृत्यु होने पर वह उसे एक पत्र लिख कर सारी बात का ब्यौरा देती है और बताती है कि वह उसका इंतजार यहां करती रही है, और अब उसके मर कर यहां आने पर खुश है।
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6 अगस्त 2022
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मैं बरसों से चुप हूं। कुछ नहीं बोली। बोलती भी क्या? न जाने ये सब कैसे हो गया। मैं मर ही गई। मैं यहां परलोक में आ गई। तू वहीं रह गया था दुनिया में। मैं अभागी तो रो भी न सकी। कैसे रोती? दुनिया कहती कि क

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वो कौन थी? वो मेरी मां थी। बताया ना। बहुत मुश्किल जगह में रहती थी। सब सोचेंगे कि ये मुश्किल जगह क्या होती है। जगह या तो ठंडी होती है, या गर्म। ज़्यादा बरसात वाली होती है। पथरीली, बंजर, पहाड़ी, मैदानी.

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6 अगस्त 2022
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फ़िर मेरा जन्म हुआ। मेरे पैदा होने से पहले ही मेरे पिता मेरी मां को छोड़ कर जा चुके थे। कत्ल की आरोपी "खूनी" मां के साथ भला कौन रहता। सिवा मेरे, क्योंकि मैं तो उसके पेट में ही थी। मेरी मां बताती थी कि

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कुछ ही दिनों में मेरी ज़िन्दगी में एक बहुत मज़ेदार दिन आया। मैं आज भी पूरे दिन इस मज़ेदार दिन की बातें चटखारे लेकर करती रह सकती हूं। ये था ही ऐसा। मेरे जीवन का एक अहम दिन। इस दिन मैंने एक साथ सुख और द

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ये समय मेरे लिए तेज़ी से बदलने का था। बहुत सी बातें ऐसी थीं जिनमें मैं अपनी मां के साथ रहते- रहते काफ़ी बड़ी हो गई थी। अब मम्मी के साथ आकर मैं फ़िर से बच्ची बन गई। दूसरी तरफ कई बातें ऐसी भी थीं जिनमें

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तू धीरे- धीरे बड़ा होने लगा और तुझे देख देख कर ज़िन्दगी पर मेरा भरोसा बढ़ने लगा। मैं ख़ुश रहने लगी। ये कितनी अजीब बात है न? इमारतें, सड़कें, पुल, झीलें, झरने, बग़ीचे, बाज़ार, मोटर, रेल, दुकानें, खेत..

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मैं सतर्क हो गई। मैंने मन में ठान लिया कि तुझे इस नासमझी से रोकना ही है। अब मैं तेरी हर छोटी से छोटी बात पर नज़र रखने लगी। तुझे पता न चले, इस बात का ख्याल रखते हुए भी मैं तुझ पर निगाह गढ़ाए रहने लगी।

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कभी - कभी मुझे तुझ पर जबरदस्त गुस्सा आ जाता था। मैं सोचती, आख़िर तेरी मां हूं। तुझसे इतना क्यों डरूं? एक ज़ोर का थप्पड़ रसीद करूं तेरे गाल पर, और कहूं- खबरदार जो ऐसी उल्टी- सीधी बातों में टाइम खराब कि

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बेटा फ़िर एक दिन मैंने सोचा कि तूने तो अपने पिता को भी ढंग से नहीं देखा। तू तो छोटा सा ही था कि वो अचानक हम सब को छोड़ कर इस दुनिया से ही चले गए। तू भी तो मन ही मन उन्हें मिस करता होगा। अपने दूसरे दोस

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किंजान! बेटा बुढ़ापे को तो सब बेकार समझते हैं। है न! युवा लोग तो बूढ़े होना ही नहीं चाहते। उन्हें लगता है कि ये भी क्या कोई ज़िन्दगी है? बाल उड़ जाएं, दांत झड़ जाएं। हाथ कांपें, पैर लड़खड़ाएं। शायद इस

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छी- छी... हे भगवान! ये मैंने क्या किया? हे मेरे परमात्मा, तू ही कोई पर्दा डाल देता मेरी आंखों पर। ऐसा मंजर तो न देखती मैं! पर तुझे क्या कहूं, ग़लती तो मेरी ही थी सारी। मैं क्या करूं, मैं खुद भी अपने ब

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अब जो हो गया सो तो हो गया। उसे तो मैं बदल नहीं सकती थी। विधाता मुझे जो सज़ा देगा वो तो भुगतूंगी ही। अपराध तो था ही। कहते हैं कि दुनिया में सबसे बड़ा दुःख है अपनी औलाद का मरा मुंह देखना। पर बेटा, दुनिय

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नहीं। मेरी बात नहीं मानी उस लड़की ने। वो तो उल्टे मुझे ही समझाने बैठ गई। बोली- आंटी, मैं उसके मिशन में उसका साथ देने के लिए उसकी मित्र बनी हूं, उसे रोकने के लिए नहीं। वो बोली- "मुझे आपके बेटे का यही स

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अब ये बात बहुत पीछे छूट गई कि मैं तुझे जान पर खेलकर नायग्रा झरना पार करने से रोक पाऊंगी। मैं हार गई थी। तू अपनी नाव पर किसी रसायन का लेप लगवाने के लिए न्यूयॉर्क जाकर आया था। हडसन में तेरे काफ़िले को ह

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6 अगस्त 2022
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चल बेटा, अब बंद करती हूं। मैं ये तो नहीं कहूंगी कि तू मेरी ज़िंदगी से कोई सीख ले, पर ये ज़रूर कहूंगी कि मेरी ज़िंदगी ने ख़ुद मुझे बहुत सिखाया। वैसे भी, ये बेकार की बातें हैं कि दूसरों के जीवन से हम बह

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