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जहाँ चाह वहाँ राह

14 अक्टूबर 2021

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जहाँ चाह वहाँ राह

       हरियाली पुर नामक एक छोटे से गाँव में हरिराम नाम का एक किसान अपनी पत्नी कजरी के साथ खुशी खुशी रहता था । हरिराम की, उषा और ज्योति नामक दो बेटियाँ थी । ऊषा, ज्योति से उम्र में छः साल बड़ी थी। उषा बहुत ही समझदार लड़की थी । हरिराम का एक ही सपना था कि, वह अपनी बेटियों को अच्छी से अच्छी शिक्षा दिलवाए, जिससे उसकी बेटियां बड़ी होकर कुछ बन सकें और पूरे गांव का नाम रोशन करें।
इसकेलिए वह ना सिर्फ अपने खेतों में काम करता बल्कि गाँव के मुखिया रामनाथ जी के खेतों में भी जी तोड़ मेहनत करता । रामनाथ जी हरिराम को काम करने के एवज में अपने खेत का चौथाई अनाज दे दिया करते थे । अतः इन्ही फसलों को बेच कर हरिराम पैसे एकत्रित कर रहा था, जिससे वह उषा और ज्योति का दाखिला शहर के अच्छे कॉलेज में करा सके ।
    एक बार जब हरिराम फसल के बीज लेने, बीज गोदाम जा रहा था, तो  रस्ते में सामने से तेज रफ़्तार से आने वाले एक ट्रक ने उसे टक्कर मार दी । टक्कर इतनी भीषण थी कि, हरिराम की वही मृत्यु हो गई ।
    हरिराम की मृत्यु की खबर सुन उसकी पत्नी और बेटियों का रो रो कर बुराहाल हो गया । उन्हें विश्वास ही नही हो रहा था कि, ऐसी कोई दुर्घटना भी हो सकती है । परंतु सत्य को झुठलाया तो नही जा सकता था ।
      जहाँ एक तरफ कजरी, हरिराम की पत्नी इस घटना से हिमम्त हार चुकी थी वही उषा दृढ़ता से परिस्थितियों का सामना कर रही थी । वह मन ही मन यही विचार करती कि अब जब फसल बोई ही नही गई तो घर कैसे चलेगा । उसने अपनी माँ कजरी से इस बारे में बात की तो कजरी ने कहा
" बेटा बीज के लिए पैसे नही है, जो थे तेरे पिता साथ ले जा रहे थे पर दुर्घटना के बाद वो पैसे कहाँ गए कुछ पता नही चला, मुझे तो बस तेरे पिता का शव ही मिला ।" इतना कह कर कजरी फिर रोने लगी ।

     उषा को यूँ बात बात पर रोना बिलकुल भी अच्छा नही लगता था उसने अपनी माँ को शांत करवाते हुए कहा,
" माँ, इस तरह रोने से समाधान नही निकलेगा, हमें कुछ तो करना ही होगा जिससे  घर का खर्चा निकल सके ।"

"पर हम अकेले क्या कर पाएंगे बेटी, मुझे तो कोई रास्ता नही दिखता, पिछले साल का जो अनाज बचा है उसके ख़त्म होने के बाद तो खाने को भी कुछ नही मिलेगा, ऐसे में तो मेरी बुद्धि ही काम नही कर रही, जाने हमारी किस्मत में क्या लिखा है विधाता ने ।"
      
" तुम चिंता ना करो माँ मैं अवश्य ही कोई उपाय निकलूंगी , जहाँ चाह होती है वहाँ राह अपने आप ही मिल जाती है ।  "
 
   उषा बिलकुल भी हार् मानने वाली नहीं थी । वह दिन भर यही सोचती कि, कैसे अपने परिवार की देख भाल के साथ साथ आने पिता के सपने को पूरा करे । अचानक एक दिन उसे मुखिया काका की याद आई, उसे याद आया की उसके पिता मुखिया के खेतों में भी काम करते थे, बस फिर क्या था अगले दिन सुबह सुबह वह पहुँच गई मुखिया के घर ।

" मुखिया काका, ओ मुखिया काका.." ऊषा ने आवाज़ लगाई ।

" अरें कौन चिल्ला रहा है भाई, आ रहा हूँ " भीतर से आवाज़ आई ।

कुछ ही देर में  मुखिया रामनाथ जी बहार आए । बहार उषा को खड़ा देख वह आश्चर्यचकित हो कर बोले, " तुम हरिराम की बेटी ऊषा हो ना।"

" जी काका, प्रणाम, मुझे आपसे कुछ मदद चाहिए थी ।"

" हाँ बेटा, बोलो क्या कर सकता हूं तुम्हारे लिए ..?"

" मुखिया काका क्या पिता जी की जगह कल से मैं, आपके खेतों में काम करने आ सकती हूं..?" वह सकुचाई हुई सी बोली ।

" मुझे तो कोई दिक्कत नही है बिटिया, पर तुम् जब खेतों में काम करोगी तो स्कूल कब जाओगी, पढ़ाई छोड़ रही हो क्या..? "

" नही काका मैं सुबह और शाम को काम कर दिया करुँगी, और दिन में स्कूल जाया करुँगी, बस आप इतनी मदद कर दें।"

" अगर तुम इतनी मेहनत करने के लिए तैयार हो तो, मैं तुम्हे नहीं रोकूँगा, कल से आ जाना काम पर ।"

" धन्यवाद काका ।" कह कर वो हर्षित मन से अपने घर चली गई ।

       अगली सुबह उषा जल्दी उठ मुखिया के खेत में काम करने चली गई । इधर कजरी (उषा की माँ) अब भी अपने गम में डूबी पड़ी थी । जबकी उषा रोज स्कूल जाने से पहले और आने के बाद मुखिया के यहाँ खेतों में काम कर आती । ऊषा को कम करते 1 हफ्ता बीत गया था । एक दिन जब वह सवेरे सवेरे खेतों के लिए निकल ही रही थी कि, कजरी की नजर पड़ गई । पर इससे पहले वह कुछ पूँछ पाती, उषा झट से सरपट कदमों से चल पड़ी । कजरी को यह बात बिलकुल भी अच्छी नही लगी और वह बात का पता लगाने ज्योति के पास गई ।
    ज्योति से पूंछने पर मुखिया के घर काम करने वाली बात कजरी को पता चल गई । कजरी मन ही मन अपनी बेटी की हिमम्त और सूझ बूझ को प्रणाम करने लगी । उषा को कम करता देख अब उसे भी हिमम्त आने लगी थी ।
     शाम को जब उषा घर आई तो कजरी ने उसे खेतों में काम करने जाने से रोक दिया , और कहा, " मेरी प्यारी बेटी  तेरे पिता के जाने के बाद मेरी बुद्धि पर ताले पड़ गए , पर अब तूने मेरी आंखे खोल दी है । अब तू बस अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे, ये सब मैं करुँगी ।"

" नहीं माँ हम सब मिल कर करेंगे ।" उषा ने उत्तर दिया ।

और दोनों माँ बेटी एक दूसरे के गले लग गई ।
अब मुखिया के घर कजरी काम करने जाने लगी, और उषा और ज्योति साथ साथ स्कूल जाती । पर इतने से तो सिर्फ खाने का बंदोबस्त ही हो पाया था । उषा जानती थी कि, स्कूल के बाद की पढ़ाई में अधिक ही खर्चा आएगा , और अब वह इस सोच में पड़ गई कि, और अधिक आमदनी का इंतजाम कैसे किया जाए ।
       शाम को जब उषा घर लौटी तो अपने साथ एक गाय भी लेती आई ।उसे देख कजरी ने पूँछा,
" ये गाय कहाँ से ला रही है उषा..? "

" माँ अपने गाँव में मंगल काका है ना, उन्ही की है । वो इसे बेचने जा रहे थे तो मैंने ले ली ।"

" अरें पर तेरे पास इतने पैसे कहाँ से आए..?"

" पैसों से नही माँ, दूध से " उषा ने मुस्कराते हुए कहा

" क्या....क्या मतलब है तेरा..??" कजरी ने चौंकते हुए पूँछा

" माँ, गाय तो काका की ही रहेगी, पर रहेगी हमारे पास, और जब यह दूध देगी तो आधा दूध हम काका को दे देंगे ।
आखिर गाय तो उनकी ही है ना।" उषा ने कहते हुए अपनी बुद्धिमत्ता का परिचय दिया ।

"अरें वह..!! मेरी उषा तो सच में बड़ी ही बुद्धिमान है " कहते हुए कजरी ने उसे गले से लगा लिया ।

     समय बीतता गया अब कजरी खेतों में काम करती उषा और ज्योति स्कूल जाती और गाय की देखभाल के साथ साथ घर का काम भी मिल बाँट कर करलेतीं । उनके घर अब पैसों की दिक्कत भी नही रही ।
      देखते देखते चार साल बीत गए, उषा स्कूल पास कर कॉलेज में दाखिला लेने गई । पर शहर के कॉलेज में फीस दे पाना अब भी उसके बस में नही था । अतः उसने अपने गाँव के पास के ही कॉलेज में दाखिला ले लिया ।  वह जानती थी कि, अगर मन में कुछ करने की चाह है तो कोई भी मुसीबत हमें रोक नही सकती, कोई विद्यालय नही बल्कि विद्यार्थी की प्रतिभा ही उसके गुणों को उजागर करती है । अब उषा के घर में एक नही चार चार गाए थी । उसकी ईमानदारी और निष्ठा देख उसका दूध का व्यपार बढ़ता ही जा रहा था । कजरी भी अब बस अपने खेतों में ही काम करती, बल्कि समय पड़ने पर एक दो मजदूर भी रख लेती थी ।
        उषा ने पास के ही कॉलेज से बी ए करने के बाद बी एड भी कर लिया । उसने ज्योति को भी अच्छी शिक्षा दिलवाई और ज्योति भी अपनी दीदी के सहयोग से आज सरकारी विश्वविद्यालय से पशु चिकित्सक की पढ़ाई कर रही है । और उषा अब अपना  खुद का स्कूल खोलने जा रही है । और कजरी भी समझ गई थी कि, हिमम्त है तो हर मुसीबत से पार पाया जा सकता है ।

शिक्षा :- यदि मन में कुछ करने की चाह है तो विकट से विकट परिस्थितियों में भी मार्ग मिल ही जाता है । जैसे उषा ने खोज निकाला , घर चलाने के साथ साथ अपनी पढ़ाई का मार्ग । अर्थात जहाँ चाह है वहाँ राह है ।

धन्यवाद 
विष्णुप्रिया आशा
     


     
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बेहद अच्छा लिखा छोटी

23 अक्टूबर 2021

विष्णुप्रिया

विष्णुप्रिया

24 अक्टूबर 2021

धन्यवाद भैया...💐💐🙏

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यह बाल कहानी साप्ताहिक प्रतियोगिता के अंतर्गत लिखी गई है

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