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जंगल में सुरक्षा

26 मार्च 2022

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(  जंगल में सुरक्षा )  कहानी  प्रथम क़िश्त 
 
लक्ष्मी नारायण यादव गंडई ग्राम का निवासी है । वह भी अपने पिता की तरह चरवाहे का काम करता था । उसके घर में दो भैंसें व दो गायें थीं । वे जितनी दूध देती थी । उससे ज्यादा क़ीमत की चारा खा जातीं थी । अत: लक्ष्मी यादव के घर में ग़रीबी कई पुस्तों से उसके परिवार की साथ थी । लक्ष्मीनारायण के दो पुत्र थे नवरंग और बजरंग यादव । नवरंग की उम्र लगभग 13 वर्ष थी और बजरंग 11 वर्ष का था । नवरंग और बजरंग भी 5वीं तक की पढाई करके जानवर चराने के काम में लग गये थे और अपने बापू लक्ष्मी जी को सहयोग करने लगे थे । 
लक्ष्मी नारायण बस्ती के छोटे किसानों व अपने घर के जानवरों की भी देख रेख करता था । जबकि उसके दोनों बच्चे गांव के चार दाऊ लोगों के जानवरों को पास के जंगल में चराने ले जाते थे । नवरंग और बजरंग सुबह 10 बजे घर से जानवरों की बरदी को लेकर निकलते थे और फिर उन्हें चराकर शाम 6 बजे तक वापस गांव आते थे । जानवरों को चराते वक़्त उन दोनों के पास हाथों में लाठी रहती थी । कभी कभी वे कुल्हाड़ी लेकर भी जंगल जाते थे । कुल्हाड़ियों से वे जंगल से लकड़ियां काटकर लाते थे । जिन्हें घर में चुल्हा जलाने के काम लिया जाता था । 
नवरंग शरीर से हृष्ट पुष्ट था पर थोड़ा डरपोक था। वहीं बजरंग दुबला पतला था लेकिन वह बेहद ही हिम्मती था । 
दोनों भाई जानवरों को जंगल की शुरुवात में ही एक मैदानी हिस्से में चरने को छोड़कर एक पेड़ के नीचे बैठ जाते थे । फिर दोनों मिलकर या तो बिल्लस का खेल खेलते थे या गाना बजाना करते थे । 2 बजे दोनो अपने साथ लाए रोटी अचार खाकर कुछ देर के लिए सो जाते थे । लगभग चार बजे नींद से ऊठकर सारे जानवरों की गिनती करके वे घर वापस जाने की तैयारी करने लगते । 
सारे जानवर भी उनकी प्रवित्तियों को समझ चुके थे अत: वे सब चारा चरके 2 बजे उसी स्थान पर आकर आराम करते थे जिस स्थान पर नवरंग और बजरंग खेलते या आराम किया करते थे । 4 बजे के बाद सभी जानवर कतार बद्ध खड़े होकर घर जाने की तैयारी में लग जाते थे । इन जानवरों की एक खासियत थी । वे जब भी समूह में चलते थे । समूह के आगे और पीछे जवान और ताक़तवर जानवर रहते थे । जबकि कमज़ोर ,बूढे तथा शिशु जानवर समूह के मद्ध्य में रहते थे । ये सबकी सुरक्षा के लिए सबसे उचित तरीका उनको लगता था । 
 कभी कभी जब बजरंग बीमार पड़ता तो नवरंग अकेले ही उन जनवरों को जंगल ले जाता और ऐसे दिनों वह अपने साथ कहानी की किताब ले जाता था । खाली समय वह  कहानियां पढकर ही अपना समय बिताता था । वहीं कभी बजरंग अकेले जाता तो अपने साथ अपनी बांसुरी ले जाता था । और खाली समय वह बांसुरी बजाकर बिताया करता था ।  उसकी बांसुरी की आवाज़ इतनी मीठी होती थी कि जब वह बांसुरी बजाता तो अधिकान्श जानवर चारा चरना छोढकर बजरंग के सामने ही बैठ जाते । शायद बांसुरी की आवाज़ उन्हें भी सुकून पहुंचाती थी । 
उधर उनका पिता लक्ष्मीनारायण का सारा समय गायों व भैंसियों का दूध निकालने में , उन्हें चारा देने में  व दूध को ग्राहकों तक पहुंचाने में ही बीता जाता था । शाम पांच बजे के बाद वह चिलम में गांजा भरकर पीता था और फिर दो घंटों के लिए टुन्न हो जाता था । रात्रि वह बच्चों के साथ ही बैठकर खाना खाता था । बाप बेटे मिलजुलकर इतना तो कमा लेते थे कि उन्हें कभी किसी के सामने हाथ पसारने की नौबत नहीं आई । 
कुछ दिनों से गांव में यह हल्ला था कि कुछ ख़ूंख़ार जानवर घने जंगल से भटक कर गांवों के आसपास आ चुके हैं । और वे गांव के जानवरों पर हमला करके उन्हें अपना भोजन बनाने लगे हैं । अत: जानवरों की सुरक्षा और अपनी सुरक्षा के लिए सबको सतर्क रहने की ज़रूरत है । जब लोगों को यह बात पता चली तो अब वे गांव के बाहर जाने के समय कांधे पर कुल्हाड़ी और फ़र्सा रखने लगे थे। ताकि कभी जंगली जानवरों से पाला पड़ा तो अपनी सुरक्षा किया जा सके ।      
उधर लक्ष्मी नारायण जी ने अपने दोनों बच्चों को इस खतरे के बारे में आगाह किया और उन्हें सलाह दिया कि अभी कुछ दिनों तक जानवरों को आसपास ही घुमओ। ज्यादा दूर जंगल के अंदर मत ले जाओ । इसके अलावा तुम अपनी कमर में छुरी , चाकू भी रखो और कांधे पर कुल्हाड़ी भी रखना उचित होगा । दोनों बच्चे अपने पिता के समझाइस का अक्षरस: पालन करने लगे और सभी ज़रूरी सुरक्षा के इंतज़ाम के साथ जंगल की ओर जाने लगे । 
अब खाली समय में नवरंग और बजरंग अपने जानवरों को बहादुरी और चालाकी के किस्से सुनाने लगे कि कैसे एक गजराज ने अपने पैरों को मगरमच्छ से छुड़वाया। कैसे एक खरगोश ने एक शेर को कुएं में गिरने को मजबूर किया और कैसे एक बंदर ने चालाकी से एक मगरमच्छ से अपनी जान बचाई । इसके अलावा नवरंग तथा बजरंग ने आपस में मिलकर 6 हट्टे कट्टे जानवरों को आपस में लड़ने के लिए प्रेरित करने लगे । साथ ही उन्हें बचाव व आक्रमण का तरीका भी सिखाने की कोशिश करने लगे । उन्हें सिखाने लगे कि कैसे दुश्मन के नाज़ुक हिस्सों पर वार किया जाय । उन 6 जानवरों में एक बैल था और 5 भैंसे थे । बैल का नाम संग्राम सिंग रखा गया था और पांच बैंसों के नाम थे ज्वाला प्रसाद , बलबीर , काल भैरव , बहादुर प्रसाद और शक्ति कुमार ।  बजरंग ने उन सभी जानवरों के सिंगों को तराश कर एकदम  नोकिला कर दिया था । इसके अलावा उनकी पूंछों में कुछ खास तरीके से कांटों की लड़ियां पहना दी । साथ ही उनको ताकीद किया कि बाक़ी जानवरों को बचाना तुम सबका फ़र्ज़ है । केवल अपनी जान बचा कर भागना बुजदिलों का काम है किसी योद्धा का काम नहीं है । 
दो महीने गुज़र गए ऐसी वैसी कोई घटना नहीं हुई । किसी जंगली जानवर ने गांव के पालतू जानवरों पर हमला नहीं किया । यानी सारी वे बातें या तो झूठी थी या केवल अफ़वाह थी ।

    ( क्रमशः )
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जंगल में सुरक्षा
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गंडई के पास के जगलों मे एक समय शेर बहुत थे और वे पास के गावों में घुसकर जानवरों को मार डालते थे। एक गांव के चरवाहे के बच्चे ने अपने जानवरों की सुरक्षा का ऐसा इंतजाम किया कि शेर के हमले से उनके जानवर सुरक्षित रहे।

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