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जरूरत

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कुँए में गिरे शेर को बंदर भी आँखें दिखाता है। कीचड़ फँसे हाथी को कौआ भी चोंच मारता है।।   मुसीबत में फँसा शेर भी लोमड़ी बन जाता है। मजबूरी के आगे किसी का जोर नहीं चलता है।।   विवशता नई-नई सूझ-बू

भावुक हृदय जलमग्न आंखे घोर वेदना के सिंधु में डूबते उतिराते है रोज की रात ऐसी ही होती है की क्रोध से कोपित हृदय है लावा भभकता उठ रहा है इस ज्वालामुखी को विवेक से शांत करते है अनर्थ हो रहा है अधर्म बढ़ रहा है कब तक शांत हो उठो जागो डोर थाम्हो कसो सीधे खींच

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